28 मई 2016

बुद्ध और देवकन्या

बोधिसत्व एक दिन सुन्दर कमल के तालाब के पास बैठे वायु सेवन कर रहे थे । कमल की मनोहारी छटा ने उन्हें अत्यधिक आकर्षित किया । तो वे चुप बैठे न रह सके उठे और सरोवर में उतरकर निकट से जलज गंध का पान कर तृप्ति लाभ करने लगे ।
तभी किसी देवकन्या का स्वर सुनाई पड़ा -  तुम बिना कुछ दिए ही इन पुष्पों की सुरभि सेवन कर रहे हो । यह चौर कर्म है । तुम गन्ध चोर हो ।
तथागत उसकी बात सुनकर स्तम्भित रह गये । तभी एक व्यक्ति आया और सरोवर में घुसकर निर्दयतापूर्वक कमल पुष्प तोड़ने लगा । बड़ी देर तक उस व्यक्ति ने पुष्पों को तोड़ा मरोड़ा पर रोकना तो दूर किसी ने उसे मना तक भी न किया ।
तब बुद्धदेव ने उस कन्या से कहा -  देवि । मैंने तो केवल गन्धपान ही किया था । पुष्पों का अपहरण तो नहीं किया था । तोड़े भी नहीं । फिर भी तुमने मुझे चोर कहा और यह मनुष्य कितनी निर्दयता के साथ फूलों को तोड़कर तालाब को अस्वच्छ तथा असुन्दर बना रहा है । तुम इससे कुछ नहीं कहतीं ? 
तब वह देवकन्या गम्भीर होकर कहने लगी - तपस्वी, लोभ तथा तृष्णाओं में डूबे संसारी मानव धर्म तथा अधर्म में भेद नहीं कर पाते । अतः उन पर धर्म रक्षा का भार नहीं है । किन्तु जो धर्मरत है । सदअसद का ज्ञाता है । नित्य अधिक से अधिक पवित्रता तथा महानता के लिए सतत प्रयत्नशील है । उसका तनिक सा पथभ्रष्ट होना एक बड़ा पातक बन जाता है ।
1 ज्ञानी के उत्तरदायित्वों की तुलना अज्ञानी के उत्तरदायित्वों से नहीं की जा सकती ।
2 जिनके ऊपर समाज को दिशा और प्रेरणा देने का उत्तरदायित्व है । उनके छोटे से छोटे आचरण भी शुद्धतम होने चाहिए ।

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