20 दिसंबर 2015

योगी भोगी

घर घर हम सबसों कही, शब्द न सुनै हमार ।
ते भवसागर डूबही, लख चौरासी धार ।
छन्द - 
पित्त अगुंली तीन जानो, पाँच अंगुल दिल कही ।
सात अंगुल फेफङा है, सिन्धु सात तहाँ रही ।
पवन दर निवार तन सो, साधु योगी गम लहै ।
यहि कर्म योग किये रहती नाही, भक्ति बिनु जोइन बहै ।
कबीर साहब धर्मदास से कहते हैं कि - 3 अंगुल का यकृत ‘पित्त का थैली’ है । तथा 5 अंगुल का हृदय है । 7 अंगुल के फेफङे हैं । जिनमें 7 समुद्र हैं कृमश: - क्षार, मदिरा, क्षीर, दधि, घृत दुर्गन्ध तथा इक्षु रस समुद्र हैं । इन पवनों का निराकरण शरीर में साधु योगी ही कर सकता है ।
परन्तु कर्मयोग, अष्टांग योग, आसन भेद प्राणायाम, कुम्भक साधना, पंचमुद्रां, समाधि, हठयोग, अष्टसिद्धि, 9 निधि, कल्प सिद्धि आदि से कोई जन्म मरण से नहीं छूट सकता है । बिना भक्ति के 84 लाख योनियों में ही बहना पङेगा ।
सोरठा -
ज्ञान योग सुख राशि, नाम लहै निज घर चले ।
अति प्रबल को नाश, जीवन मुकता होय रहे ।
कबीर साहब धर्मदास से कहते हैं कि - ज्ञान योग ही भरपूर ढेर सारा सुख देने वाला है । तथा सत्यनाम का स्मरण अपने निज घर सत्यलोक ले जाने वाला है । काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रुपी शक्तिशाली दुश्मनों को मारकर ही जीवन मुक्त हो सकते हैं ।
योगियों का मत -
यह लेख कबीर मंसूर ( अर्थात स्वसं वेदार्थ प्रकाश ) पृष्ट संख्या ( 1152 ) द्वारा लिखा गया है ।
वेद ही से योग समाधि तथा षट दर्शन निकले माने जाते हैं । योगी योग से अपने को अमर समझते हैं । भ्रम में पडकर वे अपने को कृतार्थ समझते हैं । पर यह नहीं समझते कि - जैसा भोग वैसा ही योग भी है । दोनों निर्मूल और तुच्छ है ।
योगी नाद के द्वारा ऊपर को चढ़ता है । भोगी बिन्दु के द्वारा नीचे आता है । अतः -
आधार चक्र भेद - योगी अपान वायु के द्वारा गणेश क्रिया करता है । आधार चक्र को साधता है । अर्थात गुदा द्वार से जल खींचकर ऊपर चढाता है । फिर गिरा देता है । फिर चढ़ाता और गिराता है । ऐसे ही बारबार करने से आधार चक्र टूट जाता है । और उससे योगी ऊपर को चलता है । तब आधार चक्र सिद्ध कहलाता है । 6 चक्रों में यह प्रथम चक्र है ।
स्वाधिष्ठान चक्र भेद -- आधार चक्र के ऊपर स्वाधिष्ठान चक्र है । जब आधार चक्र सिद्ध हो जाता है । तब स्वाधिष्ठान चक्र भेदने की चिंता बढ़ती है । इसके लिये युक्ति करता है । 12 अंगुल की सलाका बनाकर लिंग द्वार में उसे बारबार चलता है । जिससे उपस्थेन्द्रीय का छिद्र शुद्ध और साफ हो जाता है । फिर उपस्थ इन्द्रिय से जल खींचकर चढ़ाता है । जल अच्छी तरह चढ़ाने और उतारने का अभ्यास पड़ जाता है । तब कृमश: दूध और मधु को चढ़ता है । जब मधु के चढ़ाने उतारने का अभ्यास पूरा हो जाता है । तो स्वाधिष्ठान चक्र सिद्ध होता है । फिर योगी आगे को बढ़ता है । यह क्रिया, प्रायः वाममार्गी और अघोरी तथा गौसाई ब्रह्मचारी नाम के भेषधारी अन्य विषयी लोग साधते हैं ।
मणिपूरक चक्र भेद - फिर योग अपान और समान वायु का सम्मिलन करके धातु क्रिया करने का समय आता है । 9 गज लम्बा ( कही कही 15 हाथ लिखा है ) 4 अंगुल चौड़ा बारीक और नरम वस्त्र लेता है । उसको मुख के राह से निगल कर बाहर निकालता है । पानी पीकर भीतर आंतों को साफ करता है । फिर कपड़े में लगे हुये कफ आदि को साफ करके फिर निगलता है । ऐसे ही बारबार करने से अभ्यास पड़ जाता है । तो गज 2 भर चौड़ा और 9 गज लम्बा भी निगलता और निकाल देता है । इस प्रकार जब यह क्रिया पूरी होती है । तो योगी नाभि से वायु को उठाकर मणिपूरक चक्र में भरता है ।
अनाहत चक्र - तब योगी अपान और प्राण को एक करता है । सवा हाथ की एक दातुन बनाकर कंठ के मार्ग से पेट में चलता है । पेट भर पानी पीकर बाहर निकलता है । जिससे अन्दर पेट, कलेजे और फेफड़ो के कफ आदि निकल जाते हैं । इस क्रिया को कुंजर क्रिया कहते हैं । इस क्रिया से बङा आनन्द और प्रकाश मिलता है । इसी क्रिया से योगी अनाहत शब्द सुनने लग जाता है । 
यद्यपि अनाहत शब्द में बहुत प्रकार के शब्द सुनाई देते हैं पर सब में 10 प्रकार के शब्द प्रधान हैं ।
1 घण्ट का शब्द  2 शंख का शब्द 3 छोटी 2 घंटियों का शब्द 4 भँवरे की गुंजार का शब्द
5 पहाड़ से पानी नीचे गिरने के समय जैसा शब्द होता है वैसा शब्द 6 बाँसुरी का शब्द  7 शहनाई का शब्द 8 छोटे 2 पक्षियों का शब्द 9 वेणु का शब्द 10 चंग ( सीटी का ) शब्द
यही 10 प्रकार के प्रधान अनाहत शब्द हैं । इनके अतिरिक्त नाना प्रकार के बाजे आदि के शब्द भी सुनाई देते हैं । जिससे मन को बड़ा आनन्द होता है । फिर इसको भी वेध के आगे को बढ़ता है ।
विशुद्ध चक्र भेद -- प्राण अपान और समान तीनों वायु को कण्ठ स्थान में योगी एकत्रित ( समान ) करता है । इस साधन को लम्बिका योग कहते है । इसके साधने के समय केवल दूध ही पीकर रहना होता है । अनाज नही खाना पड़ता ।
मक्खन और सेंधे नमक से जीभ को नित्य रगड़ के पतला करना और जीभ की जड़ की रगों को
शनै: शनै: काट के ( जीभ को ) इतना बढ़ाना पड़ता है कि 10वें द्वार तक पहुँच सके । जीभ को उलट कर ब्रम्हारंध्र के मार्ग को रोककर ऊपर से टपकते हुये अमृत को पीता है । इसके पीने में शरीर की कांति तेजोमय हो जाती है । इस प्रकार अमृत पीने का आनन्द प्राप्त हो जाता है । तो योगी को लम्बिका योग का साधन पूरा हो जाता है ।
अग्नि चक्र - इस विशुद्ध चक्र के आगे अग्नि चक्र है । इसे सिद्ध करने के लिये योगी को नेति क्रिया करने की आवश्यता होती है । सूत की एक वित्ते भर की बत्ती बनाकर नाक में चला, ब्रह्माण्ड को भली प्रकार साफ करके अपने कण्ठ की वायु को अग्नि चक्र में स्थापित करना होता है । योगी अग्नि चक्र में वायु को स्थापित करके बड़ा आनन्द प्राप्त करता है । वायु को ऊपर चढ़ा कर जीभ से मार्ग को रोक के कुम्भक कर समाधि को प्राप्त करता है । शरीर शक्तिहीन मृतक समान हो जाता है । दसवें द्वार में पहुँचकर योगी निर्विकल्प समाधि को प्राप्त हो जाता है । इस स्थान पर पहुँचकर योगी अष्ट सिद्धि और नव निधि को प्राप्त करता है ।
अष्ट सिद्धि - 1 अणिमा 2 महिमा 3 गरिमा 4 लघिमा 5 प्राप्ति  6 प्रकाशित । ( काम )  7 ईशता 8 वशीकरण ।
1 अणिमा - योगी जिस सिद्धि से अपने शरीर को जितना छोटा चाहे बना लेता है । 
2 महिमा के द्वारा योगी अपनी देह को जितना चाहे बड़ा कर सकता है । 
3 गरिमा के द्वारा जितना चाहे भारी हो जाता है । 
4 लघिमा के बल से अपने शरीर को हलके से हल्का बना सकता है । 
5 प्राप्ति से ही योगी जहाँ चाहता है । चला जाता है । 
6 प्रकाशिता से मनवांछित फल प्राप्त हो जाता है । 
7 ईशता से अपने को सबसे श्रेष्ठ प्रमाणित करा सकता है ।
8 वशीकरण के द्वारा विश्व को अपने वश मे कर सकता है ।
नवनिधि ।
1 महापद्ध 2 पद्ध 3 कच्छप 4 मकर 5 मुकुंद 6 खर्व 7 शंख 8 नील  9 कुंद ।
इन 9 के भिन्न 2 गुण हैं । प्रत्येक निधि पर देवताओं की चौकी रहती है । जब इन 9 निधियों के देवता वश में हो जाते हैं । तो योगी इनको प्राप्त कर लेता है । वह अपनी शक्ति से जिसको चाहे राजा बना सकता है । अथवा दरिद्र कर दे । उसमें सब ऐश्वर्य आ जाते हैं । इसी स्थान को सहस्त्रदल कमल कहते हैं । यहाँ निरंजन का वास है । इस स्थान पर पहुँचकर योगी, निरंजन से एकता कर परमानन्द का अनुभव करता है । इसी अवस्था में अपने आपको अजर, अमर, सर्व शक्तिमान समझता है । इसकी सब सिद्धियाँ दासी हो जाती है । अपनी विद्या के बल से त्रिकालज्ञ हो जाता है । ईश्वर के समान ऐश्वर्य को प्राप्त हो जीव से ईश्वर हो जाता है । संसार में ईश्वर के समान पूज्य हो जाता है । पर जब तक ब्रह्माण्ड स्थित है । तब तक ही तक योगी भी स्थित है । जब तक योगी का ज्ञान है । तब ही तक उसको सब कुछ प्राप्त है । उपरोक्त सब साधना गुरु के द्वारा प्राप्त होती है । 
गुरु की ही शरण प्राप्त कर सफल काम होता है ।
( नोट - नेति, धौति, वस्ति आदि क्रियाएं शरीर की शुद्धि के लिये हैं । चक्र भेद तो प्राण वायु से होता है । पाठक सतलोक वासी स्वामी परमानन्द जी के चक्र भेदन को इससे सुधार कर पढ़ लें । )
उपरोक्त योग क्रिया बाजीगर का कौतुक है । योगियों को अपनी योग क्रिया का बड़ा अभिमान होता है । सब भूल में पड़कर बन्धन में पड़े हैं ।
योग भोग दोनों ही भ्रम और अनित्य हैं । योग भोग दोनों क्रिया समान ही है । जिस प्रकार योगी 6 चक्र वेधता है । उसी प्रकार भोगी भी 6 चक्र तोड़कर ही आनंद को प्राप्त करता है । केवल उतना ही भेद है कि योगी नीचे से ऊपर को चढ़ता है । भोगी ऊपर से नीचे को आता है । पर दोनों ही परमानन्द को प्राप्त करते हैं ।
भोगियों का चक्र भेद ।
भोग का वर्णन लिखता हूँ । जिसके विचारने से जान पड़ेगा कि योगी और भोगी में कुछ भेद नही है । जिस प्रकार योगी षट चक्र को वेध कर योग सिद्ध हो अमर मानता है । उसी प्रकार भोगी भी षट चक्र वेधकर योग सिद्ध और अमर होता है । भोगी स्त्री पुरुष मिलकर सिद्धि प्राप्त करता है । यानी भोग करने के समय जब मत्था से मत्था मिलता है । तो पहला चक्र टूटता है ।
जब आंख से आँख मिलते ही द्वितीय चक्र विद्ध होता है । मुँह से मुँह मिलते ही तृतीय चक्र टूटता है । छाती से छाती मिलाते ही चतुर्थ चक्र टूटता है ।
नाभि से नाभि मिलते ही पंचम चक्र विद्ध होता है । भग और लिंग का संयोग होने से छठा चक्र वेधा जाता है । जब भोगी उपरोक्त रीति से 6 चक्रों को भेद चुकता है । तब वायु और अग्नि के बल से नीचे को वीर्य उतरता है । वह 6 चक्रों को वेधता हुआ सातवें स्थान गर्भाशय में जा स्थित होता है । भोगी अपने आपको अमर जानता है । क्योंकि जब तक भोगी की संतान पृथ्वी पर वर्तमान है । तब तक वह अमर ही है ।
समन्वय - जैसे योगी को ज्ञान और सिद्धि मिलती है । वैसे ही भोगी को सन्तान मिलती है ।
जो माता पिता थे । वही पुत्री और पुत्र रूप में वर्तमान रहते है । दोनों ( योगी और भोगी) सातवें चक्र में अपने को अमर अनुमान करते है ।
( योग भोग दोनों ही मिथ्या भ्रम है )
( सदगुरु कबीर साहब वचन )
जो नहीं माने शब्द हमारा, सो चले जइ है यम के द्वारा ।
जो कोई माने शब्द हमारा, सो चले अइ है लोक मंझारा ।


साभार - एक फ़ेसबुक पेज

19 दिसंबर 2015

Just An Illusion !

अन्तिम पदार्थ को खोजने की बेहतरीन कोशिश ।
साभार - विजय सिंह ठकराय On FaceBook
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ये दुनिया एक कंप्यूटर प्रोग्राम है - MATRIX RELOADED
LIGHT यानी प्रकाश की गति अदभुत है ।
इनफ़ेक्ट सिर्फ एक सेकंड में आपको पलक झपकाने में लगे समय के अंदर लाइट इस पृथ्वी के चक्कर लगा सकती है - 7 बार ।
Impressive, प्रकाश की गति 299792 Km/Sec ब्रह्माण्ड की सबसे तेज गति है । इससे तेज गति कर पाना ब्रह्माण्ड में किसी भी चीज के लिए संभव नहीं है ।
लेकिन मेरा सवाल है - WHY
लाइट की गति 5 लाख km/sec क्यों नहीं ?
या लाइट की स्पीड 10 लाख/sec क्यों नहीं है ?
Ok Now We Are Getting Somewhere !
ऐसा इसलिए नहीं है कि हमारे यन्त्र इस गति से तेज गति को नहीं नाप सकते । बल्कि ऐसा इसलिए है । क्योंकि ये ब्रह्माण्ड का ही फंडामेंटल स्ट्रक्चर है । जिस कारण प्रकाश से तेज गति की कल्पना करते ही ब्रह्माण्ड के सभी नियम टूट जाते हैं । और ब्रह्माण्ड Collapse हो जाता है ।
क्योंकि शायद इन नियमो में ही ब्रह्माण्ड का एक महान सत्य छुपा हुआ है ।
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अपने घर के बाहर पार्क में इस पोस्ट को लिखते हुए अक्सर पार्क में बने हुए खूबसूरत फाउंटेन यानी पानी के फव्वारे पे ध्यान चला जाता है । फाउंटेन को देखना बेहद खुशनुमा एहसास है । लेकिन एक मिनट के लिए मान लीजिये । अगर हम फव्वारे को किसी शक्तिशाली माइक्रोस्कोप की सहायता से देख रहे होते तो ?
तो शायद प्रकृति के इस खूबसूरत करिश्मे की जगह हम हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं का प्रवाह देख रहे होते । जो शायद इतना खूबसूरत नहीं होता ।
कुछ चीजें हैं । जो मुझे हमेशा परेशान करती हैं - जैसे कि ये दुनिया अणुओं, परमाणुओं से क्यों बनी है ? हमारी आँखे परमाणुओं को क्यों नहीं देख पाती ? क्यों हमें लिमिटेड सेन्सस के साथ पैदा किया गया है । जिससे हम नंगी आँखों इस इस सृष्टि को इसके मूल स्वरुप में नहीं देख पाते ?
आपके चाय बनाने से लेकर सूर्य में संपन्न हो रही नाभिकीय प्रक्रिया तक एक ब्रेड टोस्ट बनाने से लेकर हाइड्रोजन एटम से आयरन बनने की प्रक्रिया तक ब्रह्मांड का हर कण हर क्रिया कणों की प्रकृति पूर्व निर्धारित क्यों है ?
Why So Much Physics & Chemistry In Life ?
well दुनिया बनाने वाला तो ‘आबरा का डाबरा’ बोल के भी दुनिया बना सकता था ।
तो उसने ऐसी दुनियाँ क्यों बनाई । जहाँ कण कण एक पूर्व निर्धारित प्रक्रिया अर्थात ‘प्रोग्राम’ का अनुसरण करता है । और ईश्वर का दिमाग समझने के लिए इस प्रोग्रामिंग को समझने के लिए हम अक्सर पदार्थ के अंदर झांकते हैं ।
Like. अणु, परमाणु, इलेक्ट्रॉन, प्रोटान, क्वार्क । और अंत में पदार्थ गायब हो जाता है
रह जाते है तो सिर्फ - कंप्यूटर कोडस !
जी हाँ, दुनिया के कण कण के मूल में और कुछ नहीं बाइनरी डिजिटस में एक्सप्रेस होने वाले अर्थात 0 और 1 की भाषा में कंप्यूटर कोडस मिलते हैं । जो साफ़ साफ़ कहते हैं कि - ये दुनिया. एक कंप्यूटर प्रोग्राम है ।
MATRIX | PROGRAMME | SIMULATION
सीट बेल्ट बाँध लीजिये । आज मैं आपको कुछ ऐसे तथ्य बताउगा कि अगर आप सामान्य भौतिकी का ज्ञान भी रखते हैं । तो आप खुद कहेगे कि - ये दुनिया कंप्यूटर प्रोग्राम है ।
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1 - FINITE SPEED OF LIGHT
प्रकाश से हम सब भलीभाँति परिचित हैं । लेकिन वास्तव में प्रकाश होता क्या है ?
देखा जाए तो प्रकाश ब्रह्माण्ड के दो कणों के बीच इनफार्मेशन पहुँचाने का कार्य करता है ।
चाहे देखने के लिए प्रकाश का इस्तेमाल हो । या इलेक्ट्रिसिटी या इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड दुनिया के हर काम में दो चीजें आपस में फोटॉन का एक्सचेंज करती हैं ।
अर्थात लाइट ब्रह्माण्ड में ‘Information Processing’ का कार्य करती है ।
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अब आपके मोबाइल की स्क्रीन पर आते हैं ।
हर वर्चुअल रियलिटी अथवा डिजिटल प्रोजेक्शन पिक्सल से मिलकर बनी होती है । पिक्सल से छोटा कुछ नहीं हो सकता ।
Luckily हमारा ब्रह्माण्ड भी Pixelated है । और एक पिक्सल का साइज़ 1.616199*10^-35 होता है ।
अर्थात 0.00000000000000000000000000000000016 मीटर !
ब्रह्माण्ड की इस सबसे छोटी दूरी की यूनिट को हम ‘प्लांक डिस्टेंस’ के नाम से जानते हैं ।
किसी भी प्रोग्राम में एक पिक्सल को प्रोसेस करने के लिए मिनिमम टाइम लगता है ।
Luckily हमारे ब्रह्मांड में भी समय की सबसे छोटी इकाई होती है ।
यानी .00000000000000000000000000000000000000000005 सेकण्डस
या 5.39*10^-44 सेकण्डस, जिसे हम ‘प्लांक टाइम’ के नाम से जानते हैं ।
किसी भी सॉफ्टवेयर गेम में एक पिक्सल को प्रोसेस करने में लगा मिनिमम समय उस सॉफ्टवेयर की "मैक्सिमम प्रोसेसिंग स्पीड" कहलाती है ।
हमारे ब्रह्माण्ड में सबसे छोटे पिक्सल को प्रोसेस करने में लगे सबसे छोटे समय का अनुपात निकाल जाए ।
अर्थात. प्लांक डिस्टेंस/प्लांक टाइम
1.616199×10^−35/5.39106×10^−44
तो हमारे पास जवाब आता है - 299792 ! 
Whoaaa Speed Of Light !
अर्थात हमारे ब्रह्माण्ड में लाइट मैक्सिमम स्पीड इसलिए है । क्योंकि ये ब्रह्माण्ड के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के ट्रांसिस्टर्स की अधिकतम गति है ! 
HENCE PROVED ! 
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2 - TIME DILATION
हम सभी जानते हैं कि अधिक द्रव्यमान वाले पिंड, जैसे ब्लैक होल्स के आसपास समय की गति बहुत कम अथवा शून्य हो जाती है ।
लेकिन कैसे ?
पदार्थ विज्ञान इस बात का जवाब कभी नहीं दे सकता ।
लेकिन बहुत ज्यादा मैटर एक जगह एकत्रित होने के कारण अगर ब्लैक होल को एक हैवी फ़ाइल मान लिया जाए ।
तो इसकी आसानी से व्याख्या हो सकती है ।
Or To Be Simple
एक कंप्यूटर में.. हैवी फाइल्स के आसपास हमेशा प्रोसेसिंग स्लो अथवा लगभग शून्य हो जाती है ।
यही कारण है कि सदियो से ‘ग्रेविटी’ के स्त्रोत की तलाश में घूम रहे वैज्ञानिकों को ऐसा कोई स्त्रोत मिला ही नहीं । क्योंकि ग्रेविटी कोई फ़ोर्स है ही नहीं ।
बल्कि ग्रेविटी ब्रह्माण्ड के कणों की प्रोसेसिंग से उत्पन्न एक ‘यूज़फुल बाय प्रोडक्ट’ मात्र है ।
Gravity Is Simply Not Real
But An Illusion Only ! 
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3 - A UNIVERSE FROM NOTHING
चाहे प्राचीन ऋषियो का चिंतन हो । या आधुनिक वैज्ञानिकों के निष्कर्ष, एक बात पर दोनों सहमत है कि - ये ब्रह्माण्ड शून्य से उत्पन्न हुआ है - This Universe Came Out Of Nothing !
पर ऐसा कैसे संभव हो सकता है ? प्राचीन ऋषियो ने इसे परमेश्वर की इच्छा का परिणाम कहा ।
लेकिन 21वीं सदी में अवतरित एक महान संत विजय कुमार झकझकिया के अनुसार परमेश्वर की इच्छा और कुछ नहीं । ब्रह्माण्ड के सर्किट का पॉवर बटन ON होना था ।
Yeah किसी भी सॉफ्टवेयर में इलेक्ट्रॉन्स शून्य आयाम में ही होते हैं । जब तक प्रोग्राम चालू न किया जाए । और प्रोग्राम के on होते ही - You Have A Universe Which Popped Out Of "NOTHING" 
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4 - QUANTUM ENTANGLEMENT
ये दिमाग का दही करने के लिए पर्याप्त है । विज्ञान द्वारा सत्यापित है कि इस ब्रह्माण्ड का एक कण.. दूसरे कण को प्रभावित कर सकता है - Faster Than Light
भले ही दोनों कण ब्रह्माण्ड के दो अलग अलग कोनों पर हों ।
How This Is Possible Even ?
Well पॉसिबल है ।
अपनी कंप्यूटर स्क्रीन देखिए । स्क्रीन के सबसे टॉप पर मौजूद पिक्सल और सबसे नीचे मौजूद पिक्सल के बीच की दूरी "एक स्क्रीन" है । लेकिन दोनों पिक्सल्स की कंप्यूटर के कमांड सेंटर से दूरी समान है । इस तरह - ब्रह्मांड एक इकाई है ।
हमारे बीच दूरियां हो सकती है । लेकिन.. ब्रह्माण्ड की परम चेतना "UNIVERSAL CONSCIOUSNESS" हम सभी के समानांतर रहती है ।
एक हाइड्रोजन एटम के भी खरबवें के अरबवें हिस्से के बराबर दूर मौजूद "समानांतर आयाम"में
( इस विषय पर विस्तृत टॉपिक "ब्रह्माण्ड की परम चेतना" फिर कभी )
इसी कारण Quantum Entanglement जैसी घटनाएं इस ब्रह्माण्ड में संभव हैं ।
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5 - DEFORMED HUMANS 
कुछ बच्चे जन्म से विकृत क्यों हो जाते है ? क्या प्रकृति अपने आप में परिपूर्ण नहीं ?
बिलकुल.. ऐसा ही है । कोई भी प्रोग्राम परफ़ेक्ट नहीं होता ।
और प्रोग्रामिंग में किसी भी फाइल्स का करप्ट हो जाना है नार्मल बात है ।
तो दूसरे शब्दों में ये विकृत बच्चे और कुछ नहीं । नेचर की प्रोग्रामिंग एरर मात्र है ।
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और भी दर्जनों ऐसे कारण हैं । जिनके बल पर ब्रह्माण्ड को एक प्रोजेक्टेड रियलिटी सिद्ध किया जा सकता है । पर वे इतने टेक्निकल है कि उन्हें लिख कर मैं आपका दिमाग ही खराब करूँगा ।
इसलिए कुछ बिन्दुओं को मैं छोड़ रहा हूँ । जिन्हें मैं अपनी किताब ( अगर लिखता हूँ तो ) में इस्तेमाल करना चाहूँगा ।
अब सवाल ये उठता है कि पदार्थ तक तो ठीक है ।
पर.. क्या हमारी चेतना हमारे एहसास, सुख दुःख को प्रोग्राम किया जा सकता है ?
मेरी बीवी को किस करते वक़्त जिस सुख की अनुभूति मुझे होती है । वो प्रोग्राम नहीं हो सकता ।
Oh Really ?
आपकी चेतना आपके एहसास सुख दुःख आनंद.. भी और कुछ नहीं इलेक्ट्रो केमिकल रिएक्शन से बने सर्किट मात्र है ।
जब आपने अपनी बीवी को किस किया । तो आपको बेशक अच्छा एहसास हुआ हो । लेकिन उस वक़्त आपका दिमाग "डोपेमिन" नामक केमिकल आपके सर्किट में रिलीज कर रहा था । बेशक आप अपने दिल को अपने हर एहसास के लिए जिम्मेदार मानें । पर वास्तव में आपके सुख, दुःख, ख़ुशी, गम सब कुछ आपके दिमाग में चल रहे केमिकल लोचे मात्र हैं ।
आपके दिमाग की चेतना ब्रह्माण्ड से इतर कोई अलग ऊर्जा नहीं । बल्कि आपको भ्रम में डालने के लिए "लिमिटेड सेंस" के साथ डिज़ाइन किया एक प्रोग्राम मात्र है । इस प्रोग्राम को बिलकुल तैयार किया जा सकता है ।
Artificial Intelligence !
मैंने जैसा कि अपने पूर्व प्रकाशित टॉपिक "Matrix-1 "You Live In Simulation" में कहा था कि
हम आलरेडी एक सेकंड के लिए मानव चेतना को सिमुलेट करने में सफल रहे हैं । इनफ़ेक्ट अगर हम 10^16 ऑपरेशन्स प्रति सेकंड अंजाम दे पाये । तो हम आसानी से एक चेतनशील वर्चुअल ब्रेन बना सकते हैं । और अगर हम 10^36 ऑपरेशन्स प्रति सेकंड अंजाम दे पाये । तो हम पृथ्वी जैसा एक डिजिटल ग्रह तैयार कर सकते हैं ।
करना सिर्फ ये है कि हम एक वीडियो गेम तैयार करके उसमें मौजूद करैक्टर को लिमिटेड सेन्सस वाली चेतना के साथ डिज़ाइन करें । तो वीडियो गेम में मौजूद वो इंसान हमारी तरह सोचेगा ।
वीडियो गेम में मौजूद पृथ्वी को अपना घर समझेगा ।
और हमेशा अपने अस्तित्व को लेकर परेशान रहेगा ।
और कंप्यूटर्स की हर वर्ष बढ़ती गति को लेकर एस्टिमटेड है कि मिनिमम 2042 और मैक्सिमम सन 2192 वो वर्ष होगा । जब हम इंसान खुद के वर्चुअल ब्रह्माण्ड बनाने में सफल हो जायेंगे ।
अगर ऐसा कभी संभव हो पाया ।तो क्या ये सबसे बड़ा प्रमाण नहीं कि - हम खुद एक कंप्यूटर प्रोग्राम में है ?
हम इंसान भी और क्या है ?
फंडामेंटल लेवल पर आपका शरीर भी इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स से बना हुआ एक जाल मात्र है । जो अपने आसपास मौजूद बाइनरी डिजिटस को पढता है । उनसे इंटरैक्ट करता है । उन बाइनरी डिजिटस को खाता पीता और जीता है ।
For Example Water ! 
पानी इसलिए पानी प्रतीत होता है । क्योंकि हमारा दिमाग एक निश्चित फ्रीक्वेंसी को पढ़ के उसे हमें पानी रूप में दर्शाता है । लेकिन पानी और आपके पैर में पहने जूते में क्या अंतर है ?
आपके अनुसार काफी अंतर हो सकता है ।
लेकिन फंडामेंटल लेवल पर आपके जूते और पानी में सिर्फ इतना फर्क है कि आपके जूते को बनाने वाली एनर्जी स्ट्रिंग्स की वाइब्रेशन फ्रीक्वेंसी अर्थात बाइनरी डिजिट संख्या पानी से भिन्न है ।
अर्थात दुनिया की हर चीज में मूलभूत अंतर सिर्फ इतना है कि हर चीज में प्रति सेकंड वाइब्रेशन की संख्या अलग अलग होती है । जिन वाइब्रेशन को पढ़ के आपका वाइब्रेशन रीडर ब्रेन आपको अलग अलग चीजों का एहसास कराता है
Everything Around Us Are Vibrating Strings - Life Is So Digital !
क्या पता पूर्व में किसी एडवांस एलियन सभ्यता ने हमारे लिए इस ब्रह्मांड रुपी वीडियो गेम को डिज़ाइन किया हो । और क्या गारंटी है कि..जिस सभ्यता ने ये किया हो । वो खुद किसी वीडियो गेम का हिस्सा नहीं हो ? स्वपन के भीतर स्वपन की अनंत परतें हो सकती हैं । अंतिम परत परम सत्य तक पहुचना शायद संभव नहीं है । ( और शायद संभव हो भी सकता है )
खैर इस ब्रह्मांड के प्रोग्राम होने पे अधिकतर वैज्ञानिक सहमत हो सकते हैं । लेकिन एक चीज है । जो संभव नहीं दिखती कि किसी भी एडवांस एलियन सिविलाइज़ेशन के पास इतनी कंप्यूटिंग पॉवर नहीं हो सकती कि 8 अरब मानवों और 94 अरब प्रकाश वर्ष लंबे इस ब्रह्माण्ड को प्रोग्राम किया जा सके ।
ओके !
किसने कहा कि ये ब्रह्माण्ड 94 अरब प्रकाश वर्ष लंबा है ? हो सकता है कि इस आकाश गंगा के बाहर दिखाई देने वाला ब्रह्माण्ड फेक हो ।
Just An Illusion !
हो सकता है कि रात के आसमान में झिलमिलाते ये असंख्य तारे किसी फ़िल्म का प्रोजेक्शन मात्र हो । और किसने कहा कि दुनिया की पापुलेशन 8 अरब है ।
May Be All Of Them Are Not Real !
आप सभी ने एक बेहतरीन वीडियो गेम "VICE CITY" अवश्य खेला होगा । जिसमें एक शहर की सड़कों पर भटक रहे नायक का लक्ष्य अपनी मंजिल तक पहुँचना होता है । अपने इस सफ़र में नायक.. सड़कों पर आ जा रहे दर्जनों Fake लोगों को देखता था । पर नायक से इंटरेक्शन की सूरत में वे लोग रियल हो जाते थे ।
अब मैं जो कहने जा रहा हूँ । उसे कुर्सी पकड़ के पढ़िए । अपना मोबाइल सामने मेज पे रख दीजिये । और एक मिनट के लिए आँखे बन्द कर लीजिये । एक मिनट के बाद आँखे खोलिए ।
Done ?
तो साहेबान जब आपकी आँखे बन्द थी । तो आपका फोन कहाँ था ? क्या कहा ? सामने मेज पर ?
नहीं आपका फोन मेज पे नहीं था । बल्कि ऊर्जा बनकर अदृश्य हो गया था । जैसे ही आपने आँखे खोली । वैसे ही आपकी चेतना का संपर्क मोबाइल के अणुओं से होते ही मोबाइल स्थूल रूप प्रकट हो गया ।
I Know आप सोच रहें है कि मेरे दिमाग का कोई सर्किट हिल गया है । लेकिन Unfortunately आप गलत हैं ।
ब्रह्मांड में मौजूद सभी कण क्वांटम-ली वेव रूप में सुपर पोजीशन स्टेट में मौजूद रहते हैं । पदार्थ रूप में तभी प्रकट होते हैं । जब कोई इन्हें देख रहा हो । ये बात प्रयोगशाला में हजारो बार प्रमाणित है ।
Observer Effect
पर वेव फंक्शन collapse हो के पदार्थ के रूप में प्रकटीकरण इतने सूक्ष्म समय में होता है कि ये हमारी मानवीय इन्द्रियों के परे है । ( इस विषय पे अलग पोस्ट जल्द )
तो साहेबान हो सकता है कि किसी स्मार्ट एलियन सभ्यता ने आपको भ्रम में रखने के लिए फेक लोगों का भी निर्माण किया हो ।
Lets Say 999 Fake For Every Real Person !
सड़कों पर आते जाते जिन हजारों लोगों को आप देखते हैं । शायद वे सभी वास्तविक ना हों ।
पर जैसे ही आप किसी से इंटरेक्शन करते हैं । वैसे ही वो इंसान एक्टिवेट हो जाता है ।
एक जिंदगी की कहानी के साथ -
So Funny Enough
कल सुबह जब आप ऑफिस जाने के लिए सड़क पार कर रहे हों । तो सड़क पर गुजरती भीड़ को देख एक सवाल खुद से पूछियेगा कि - WHO ARE YOU ?
क्या आप वो एक इंसान हैं । जिसके लिए सड़क पर मौजूद 999 लोगों को बनाया गया है ।
Or May Be - You Are A Part Of Those 999
Who Think. They Are Real
BUT
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Don't Forget To Share!!
And As Always
Thanks For Reading !!!!
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सिर्फ़ 2% सही तथ्य, वो इसलिये कि नजरिया सिर्फ़ पदार्थ ( और स्थूल ) विज्ञानी है । अगर.. 
आत्म > चेतन > कंप > इच्छा > वृति > गुण = प्राप्त ( कल्पित पदार्थ ) पद + अर्थ
इस शाश्वत सूत्र से गुत्थी हल करते तो कोई रहस्य ही नहीं बचता - राजीव कुलश्रेष्ठ ।

29 अक्तूबर 2015

गाय रामजी की हम लालूजी के

यह भावनात्मक पत्र पढ़ने के बाद मैं शेयर करने पर मजबूर हो गया । एक दुखियारी भैंस का प्रधानमंत्री जी को ‘मन की बात’ में भेजा गया पत्र ।

प्रिय प्रधानमंत्री जी,
सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं ना आज़म खां की भैंस हूं । और ना लालू यादव की । ना मैं
कभी रामपुर गयी । ना पटना । मेरा उनकी भैंसों से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है । यह सब मैं इसलिये बता रही हूं कि कहीं आप मुझे विरोधी पक्ष की भैंस ना समझे लें ।
मैं तो भारत के करोड़ों इंसानों की तरह आपकी बहुत बड़ी फ़ैन हूं । मेरे साथ की सारी भैंसें मुझे ‘भक्त भैंस भक्त भैंस’ कहकर चिढ़ाती रहती हैं । लेकिन मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । मैं आपकी
फ़ैन थी, हूं और सदा रहूंगी । चाहे कोई कुछ भी कहता रहे ।

जब आपकी सरकार बनी । तो जानवरों में सबसे ज़्यादा ख़ुशी हम भैंसों को ही हुई थी । हमें लगा कि ‘अच्छे दिन’ सबसे पहले हमारे ही आयेंगे । लेकिन हुआ एकदम उल्टा । आपके राज में तो हमारी
और भी दुर्दशा हो गयी । अब तो जिसे देखो वही गाय की तारीफ़ करने में लगा हुआ है । कोई उसे माता बता रहा है । तो कोई बहन ।
अगर गाय माता है । तो हम भी तो आपकी चाची, ताई, मौसी, बुआ कुछ लगती ही होंगी । हम सब समझती हैं । हम अभागनों का रंग काला है ना । इसीलिये आप इंसान लोग हमेशा हमें ज़लील करते रहते हो । और गाय को सर पर चढ़ाते रहते हो ।
आप किस किस तरह से हम भैंसों का अपमान करते हो । उसकी मिसाल देखिये ।
आपका काम बिगड़ता है अपनी गलती से । और टारगेट करते हो हमें कि देखो - गयी भैंस पानी में । गाय को क्यूं नहीं भेजते पानी में । वो महारानी क्या पानी में गल जायेगी ?
आप लोगों में जितने भी लालू लल्लू हैं । उन सबको भी हमेशा हमारे नाम पर ही गाली दी जाती है - काला अक्षर भैंस बराबर । माना कि हम अनपढ़ हैं । लेकिन गाय ने क्या पीएचडी की हुई है ?
जब आप में से कोई किसी की बात नहीं सुनता । तब भी हमेशा यही बोलते हो कि - भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फ़ायदा । आपसे कोई कह के मर गया था कि हमारे आगे बीन बजाओ ? बजा लो अपनी उसी प्यारी गाय के आगे ।
अगर आपकी कोई औरत फैलकर बेडौल हो जाये । तो उसे भी हमेशा हमसे ही कंपरयर करोगे कि
भैंस की तरह मोटी हो गयी हो । करीना और कैटरीना गाय और डॉली बिंद्रा भैंस ।
वाह जी वाह । गाली गलौज करो आप और नाम बदनाम करो हमारा कि - भैंस पूंछ उठायेगी तो गोबर ही करेगी । हम गोबर करती हैं । तो गाय क्या हलवा हगती है ?
अपनी चहेती गाय के ऊपर तो आज तक आपसे बस एक ही कहावत बन पायी है और वो भी ऐसी कि जिसे सुनकर हमारी जांघ सुलग जाये । गाय की मिसाल आप सिर्फ़ तब देते हो । जब आपको किसी की तारीफ़ करनी होती है - वो तो बेचारा गाय की तरह सीधा है, या - अजी, वो तो राम
जी की गाय है । तो गाय तो हो गयी राम जी की और हम हो गये लालू जी के । वाह रे इंसान ।
ये हाल तो तब है । जब आप में से ज़्यादातर लोग हम भैंसों का दूध पीकर ही सांड बने घूम रहे हैं । उस दूध का क़र्ज़ चुकाना तो दूर, उल्टे हमें बेइज़्ज़त करते हैं ।
एक बात बताओ । आपने कभी किसी भैंस को गायों की तरह सड़कों पर आवारा घूमते और
पन्नी खाते देखा है क्या ? बताओ । असल में, सच्चाई ये है कि आप हमें ऐसे फालतू समझकर छोड़ ही
नहीं सकते । हम हैं ही इतने काम की चीज़ ।
आपकी चहेती गायों की संख्या तो हमारे मुक़ाबले कुछ भी नहीं हैं । फिर भी, मेजोरिटी में होते हुए भी हमारे साथ ऐसा सलूक हो रहा है । 
प्रधानमंत्री जी, आप तो मेजोरिटी के हिमायती हो, फिर हमारे साथ ऐसा अन्याय क्यूं होने दे
रहे हो ? प्लीज़ कुछ करो ।
आपके ‘कुछ’ करने के इंतज़ार में - आपकी एक तुच्छ प्रशंसक..
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साभार - एक फ़ेसबुक पेज से 

04 अक्तूबर 2015

कलियुग में मोक्ष कैसे - पागल बाबा

सतनाम साहेब         सतनाम साहेब           सतनाम साहेब
कबीर साहिब के वचनों से कलियुग में मोक्ष उपाय
पागल बाबा द्वारा - मेरे मार्ग पर चलने के लिये आपको पूरी बात समझनी होगी । सिर्फ़ जीते जी मुक्ति है । मरने के बाद किसी ने कहा नहीं कि स्वर्ग में गया या नर्क में गया । इसका कोई पता नहीं चला ।
जहिया जन्म मुक्ता हता तहिया हता न कोय ।
छटी तुम्हारी हौं जगह, तू क्यों चला बिगोय । बीजक
- हे जीव तू मुक्त है । तेरे ऊपर कोई दूसरा कर्ता नहीं है । संसार में आकर के तेरे ऊपर बहुत से आवरण या गिलाफ़ चढ गये । काम क्रोध लोभ मोह अहंकार, मरने जीने का नर्क और स्वर्ग का ये तेरे सारे झूठे आवरण हैं । तू अजर अमर अविनाशी है ।
गीता में श्रीकृष्ण महाराज ने अर्जुन को समझाया है कि तुझे शस्त्र काट नहीं सकता । आग जला नहीं सकती । जल गला नहीं सकती । वायु सुखा नहीं सकती । फ़िर तुझे किसका भय है । तू अविनाशी मरने जीने वाला नहीं है ।
इसका उपाय श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है - तू किसी तत्वदर्शी सन्त के पास जा । दण्डवत प्रणाम कर । उसकी सेवा कर । सेवा करने पर प्रसन्न होकर तुझे तत्व का बोध करायेंगे । तेरे जन्म मरण का वो बन्धन छुङा देंगे । गीता में जीव मुक्त बताया है । और जिसका लोग भजन करते हैं । वो भी मुक्त बताया है । वो भी मरने  जीने वाला नहीं है । ये दोनों बनने बिगङने वाले नहीं हैं फ़िर भजन किसका ?
इस बात को समझें । लोग कहते हैं कि संसार किसी ने बनाया है । मैं कहता हूँ कि यदि संसार बनाया गया है । तो पहले बीज बना या वृक्ष ? ये अनादि है । किसी का बनाया हुआ नहीं है । पाँच तत्व छटवां जीव ( या बीज ) एक ही है । छह के अलावा जो कुछ भी दिखायी दे रहा है । सब बनने बिगङने वाला है ।
सदगुरु की पहचान - पहले गुरु को समझो । गुरु से सतसंग करो । गुरु से सतसंग करने से ही गुरुतत्व प्राप्त होगा । उसी को सदगुरु कहते हैं । सदगुरु देहधारी नहीं होता । गुरु देहधारी होता है । जब सदगुरु प्रकट हो जायेगा । तब तुम्हारे सब बन्धन छुट जायेंगे ।
कोई न काहू सुख दुख करि दाता । निज करि कर्म भोग सब भ्राता ।
फ़िर दूसरा कौन है । कौन कर सकता है ?
जीव दया और आतम पूजा । मुक्त उपाय और नहिं दूजा ।
तेरे पास दो मार्ग हैं - एक शुभ कर्म और एक अशुभ कर्म ।
सुमार्ग पर जायेगा । तो राम, कृष्ण, कबीर सी पूजा होगी । कुमार्ग पर कंस रावण जैसा विनाश होगा । अब तू दोनों मार्ग समझ । किस पर चलेगा ?
हम घर जारों आपना, लूका लीनों साथ, जो घर जारे आपना चले हमारे साथ ।
जो काम क्रोध, लोभ मोह अंहकार, को तोङ देगा । वही इस मार्ग पर पहुँचेगा ।
भक्ति का पहला मार्ग - मात पिता की सेवा, संसार से प्रेम, स्त्रियों के लिये सास ससुर की सेवा और पति को परमेश्वर मानना । बेटियों के लिये गुरु करने की आवश्यकता नहीं । अनसूया का कोई गुरु नहीं था । अपने पतिवृत धर्म से बृह्मा विष्णु शंकर को बालक बना दिया था ।
सत्यनाम - ये ज्ञान कबीर ने धर्मदास को कराया । वो ये ज्ञान है । राजा जनक ने शुकदेव को कराया । जनक को अष्टावक्र ने । श्रीकृष्ण ने अर्जुन को । सूर्य ने अपने पुत्र इच्छ्वाक को ।
जीव पर जब तक आवरण चढा है । तब तक जीव जीव है । आवरण हटने पर शिव हो जाता है ।
ज्ञान करने की विधि - पहले अनुलोम विलोम सुखासन पर बठकर । धीरे धीरे एक घन्टा चालीस मिनट करने पर आपको नासिका के अग्रभाग पर ध्यान को देना होगा । इतना होने के बाद फ़िर किसी तत्वदर्शी सन्त के पास जाना होगा । वो आपको पूर्ण ज्ञान करा देंगे । इससे आवागमन छुट जायेगा
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पिंडे सोई बृह्मांडे..बाहर सोई अन्दर, दोनों की जानकारी करने चाहते हो तो सम्पर्क करें । सभी मजहब व सभी संप्रदायों के लिये ।
शब्द की जानकारी, नाम की जानकारी, रुहानी मंडल की जानकारी, सारशब्द की जानकारी, दसवें द्वार की जानकारी, पाँच तत्वों की जानकारी, दस इन्द्रियों की जानकारी, कुन्डलिनी की  जानकारी, परमहंस की अवस्था, उनमुनी, बालवत, पिशाच, सुजान । अवस्थाओं की जानकारी, जाग्रत स्वपन सुषुप्ति, तुरीया, तुरीयातीत ।
इस बात को समझें । और अपनी मंजिल तक पहुँचे ।
रामायण का नाम - कहाँ लगि करिहों नाम बढाई । सके न राम नाम गुण गाई ।
नानक साहब का शब्द - शब्द हि धरनी शब्द अकाशा । शब्दई शब्द भयो प्रकाशा ।
सोई शब्द घट घट में आछे । सगली सृष्टि शब्द के पाछे ।
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मन को जानो, मन क्या है ?
पाँच तत्वों की पच्चीस प्रकृतियों के नाम और काम । पच्चीस प्रकृतियों पाँच देवताओं के वास । पाँच तत्वों के पाँच विषयों का निर्णय । पच्चीसों के विषय व चाल । पाँच मुद्राओं पाँच शब्दों का निर्णय ।
पाँच देह का कोष्ठक निर्णय । पाँच देह का न्यारा न्यारा अर्थ विवरण । मात्राओं के अर्थ । मात्रा अकार उकार मकार । नाम शब्द और मन की जानकारी के लिये फ़ोन पर जानें । और मार्ग पर पहुँचना है । तो स्वयं मिलें ।
- सन्त पागलदास
कैलाश मठ, पैरा मेडिकल के पास
नगला भाऊपुरा, सैफ़ई, इटावा ( उ.प्र )
संपर्क - 0 96340  76821
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नोट - लेख के तथ्य श्री पागल बाबा के कथनों पर आधारित है । ब्लाग की सहमति अनिवार्य नहीं ।

08 जुलाई 2015

तेलियाकंद 1

बिहार की प्रष्ठभूमि पर लिखी गयी श्री अनिल यादव जी कहानी ‘तेलियाकंद’ एक सशक्त व्यंग्य भी है । और किसी भी सामाजिक ताने बाने का सटीक चित्रण भी ।
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बरखा की व्याकुल प्रतीक्षा थी । घरों के भीतर सांस फूलने तक हौंस उठाती गेहूं की भटकती गर्द और बाहर धूप में चमकती अरहर की भाले जैसी खूटियों की चमक मंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी । गरमी के नीरस, लंबे दिनों में उन्मादी बवंडरों के नाच ने कतरीसराय के लोगों को इतना भ्रमित किया कि उन्हें अपने फुटकर दुख भी अंतहीन लगने लगे । उकताहट के मारे बदहवास हो जाने से खुद को बचाने के लिए वे किसी उत्तेजना की खोज कर रहे थे । रहस्यमय ढंग से वे यकीन करने लगे कि रेखिया उठान सूरे को एक जहरीला, चमत्कारी नर पौधा रातों में बुलाता है । और मादा उसके सम्मुख रोती है ।
प्रधानपति के औसारे के एक कोने में चलते डाकखाने में रखा रहने वाला अखबार पढ़ कर मौसम का हाल बताने वालों की सात पीढिय़ां गप्पी घोषित की जा चुकीं । तब कहीं जाकर आसमान में बादल घिरते दिखे । पहला दौंगरा सावन में गिरा । और गांव व्यस्त हो गया । जमीन से फूटे नए, फिर से पनपे पौधों, जानवरों, कीड़ों और मायके लौट रही लड़कियों से जुड़ी स्मृतियों की शामत आ गई । लड़के लाठियों से पीट कर झाडिय़ों का कचूमर निकाले दे रहे थे । उनके भीतर उफनाती हिंसा प्रहारों से लपलपाती हवा से होती हुई शिशुओं में उतर रही थी । जो सींकों से लौकी की कुरमुरी लतरें पीट रहे थे ।
गांव के पिछवाड़े, घरों के बीच की संकरी अंधेरी गलियों में, घूरों पर जालों में लिपटे नागफनी, झड़बेरी, सूरन और अमोला धांगते लड़के जानते थे कि जिस चमत्कारी पौधे की तलाश उन्हें है । वे यह नहीं हैं । लाठियां किसी अदृश्य पर पड़ रही थीं । जिसे कल्पना में तबाह कर डालने का काम काफी जिम्मेदारी का था । और इसमें एक मजा भी था । वे पीटे गए पौधे की कोई पत्ती उंगलियों से मसल कर देखते, सूंघते, जड़ खोद कर उलटते पुलटते आगे बढ़ जाते । अचानक कोई खरहा प्रकट होता । तो आदमियों और पालतू कुत्तों के भीतर दुबका शिकारी हड़बड़ा कर सक्रिय होता । लिहो लिहो करता हुआ सीवान में दूर तक पीछा करता । बहुतेरे चूहे, छछूंदर, गिरगिट, तितलियां, झींगुर और एक गोह बेमौत मारे गए ।
गलियों में फेंकी गई पुरातन गठरियों, हांडियों की कमी नहीं थी । जिनमें भरी मिट्टी में कल्पना किसी भ्रूण का आकार खोज लेती थी । कोई भी ढेला गर्भपात से मार डाले गए बच्चे का सिर हो सकता था । और घास की जड़ें कोमल अस्थिपंजर में बदल सकती थीं । इन्हीं पुरातात्विक प्रमाणों की रोशनी में कई परिवारों की कामुकता का इतिहास, अवैध संबंधों से बने बिगड़े सामाजिक समीकरण और प्रेम के किस्से फुसफुसाती आवाजों में उतराते हुए सतह पर आ रहे थे । गांव में किसी भी और जगह से ज्यादा गाढ़ा बतरस डाकखाने की दोपहरी में महुए की तरह चूता था । जहाँ पोस्टमास्टर और पोस्टमैन प्रधानपति के चमचों, भेदियों, नैतिकता के कपटी भाष्यकारों और निठल्लों के साथ ताश खेलते थे । वह ओसारा कब का समय बिताने के लिए विभोर होकर गप्पे हांकने वाले सीधे सादे ग्रामीणों की मिलने की जगह से जमाने की लहरें गिनने वाले चौकन्ने गिरोह के सभाकक्ष में बदल चुका था । जहाँ पोस्टमास्टर की मुट्ठी गरम कर किसी और के नाम आई चिट्ठी भी खरीदी जा सकती थी ।
लाठियां कंधों पर उठाए ताल से गांव की ओर लौटते लड़के वनस्पतियों की तरह महकते थे । शरीर पर लगे तितलियों के पंखों के चमकते रंगों और खरोचों के कारण वे सामूहिक स्मृति को मथने वाले देवदूतों का आभामंडल पा जाते थे । जो कलयुग के सार्वजनिक पतित दौर में एक जरूरी दायित्व निभा रहे थे । दिशा मैदान को निकले बूढ़े पोखर में बादलों की परछाई कौवे की तरह गरदन घुमा घुमा कर देखते । किसी लड़के को बुलाकर कहते - तुम्हारी नई आंख है । देखो पनिया में तेल है क्या ?
- पानी में छिपकर कोई कोल्हू हांक रहा है क्या ? जो आपको चारों ओर तेल दिखाई दे रहा है ।
सूरे का जीवन पौधों, कीड़ों, जानवरों से कोई बेहतर नहीं था । लड़के उसे देखकर सुदीर्घ आक्रामक टिटकारी मारते । देर तक लयबद्ध ठो ठो ठो फिर डुर्र होइ...। अर्थहीन लगती ध्वनियों का जैविक अर्थ ऐसा था कि न जाने कबसे उनका इस्तेमाल सांड़ को उत्तेजित कर गरम गाय से मिलन संभव बनाने के लिए किया जा रहा था । पंचायती सांड़ के कूल्हे पर गरम लोहे से दाग कर काढ़ा गया एक ठप्पा होता है । जिसे उसके घूमने के लिए निर्धारित इलाके का पता चलता है । दुनियां की वे सारी जगहें सूरे के इलाके में आती थीं । जहाँ रोशनी नहीं पहुँचती । उसे संगीतमय टिटकारियों के आरोह अवरोह से हर दिन कई बार दागा जाता था । साफ नजर आता कि वह अपने उजले दांत डर को छिपाने के लिए दिखा रहा है । जबकि उसका सारा ध्यान खपरैल जैसे फैले पैरों से अपने खड़े होने की जगह को लगातार टटोलते हुए किसी अनहोनी पर लगा रहता था । ढेले सनसनाते तब उसके होंठ तनाव से ऐंठने लगते । वह सदमें से चिंहुक कर ‘वाह रे आदमी’ कहता हुआ हाथों से सिर और मुंह ढक कर बचने की कोशिश करता । लेकिन दो तीन ढेले लगने के बाद उसका डर खत्म हो जाता । वह क्रोध से किचकिचाता । लंबे काल फेंकता । ढेलों की दिशा में दौड़ पड़ता । इतनी देर में लड़के जरा दूर हटकर अन्य लोगों के साथ अपनी हंसी की दुष्ट आवाज दबा रहे होते थे ।
वह जन्म से अंधा था । माथे के नीचे कोटर में पलकों की चिरान का आभास भर होता था । जिन पर दो फुंसियाँ थीं । जैसे किसी ने गर्भ में उसकी आंखें निकाल ली हों । और निशान रह गए हों । अंधेरी दुनिया का रहस्य भेदने की कोशिश में वह निरंतर भौहें उचकाता रहता था । वह घरवालों के लिए अंधेरे का एक खंभा या भारवाही जीव था । जो कितना भी बोझा लाद दिया जाए । डगमगाकर अंतत: खड़ा हो ही जाता था । फसल कटाई के दिनों में वह कोस भर दूर नदी पार से खलिहान से घर तक उखड़ती सांसों पर काबू पाने के लिए हुंकारता हुआ अनवरत चलता रहता था । वह चीजों को छूने से पहले या छूते ही जान लेता था । यह विलक्षण पूर्वबोध के कारण ज्यादातर समय वह अपने में मगन रहता था । उसका अपना संसार था । जहाँ प्रकाश की अनुपस्थिति में चीजों के रहस्य बिलकुल भिन्न तरीके से खुला करते थे ।
काफी परेशान किया जाता या हाथ थाम कर कोई मदद करने आता । तो इन दो स्थितियों में अदृश्य तरंगों पर टिका उसका आंतरिक संतुलन बुरी तरह गड़बड़ा जाता था । उसके भीतर लाचार क्षोभ की ऊंची लहरें उठने लगने लगतीं । वह रात को चुपके से गायब हो जाता । और लोग जानने लगते थे कि उसे किसी बिरवा या पेड़ ने बुलाया है । संभवत: पेड़ नदी के किनारे था । जिसे वह अंकवार में भरकर आवाज फट जाने तक चिंघाड़ता था । उसका क्रुद्ध रुदन गांव के सीमांत पर पांत बांध कर चिल्लाते सियारों की हुआं हुआं में खो जाता था । उससे पूछा जाता कि - रात में कहां जाता है । तो वह हंसता । कैसी रात कैसा दिन ? घाम, पानी में झंवाये उसके सुगठित शरीर पर अपने बड़े भाई का दिया पुराना पैन्ट होता था । जिसे वह मूंज की रस्सी से कमर पर बांधता था । उसकी देह से मिठास लिए एक तीखी गंध फूटती थी । और टांगों के बीच झूलती रस्सी धूल सने वीर्य के पपडिय़ाए धब्बों की ओर इशारा करती थी । लड़के उन्हें गिनते थे - सपना संख्या सात... सपना संख्या नौ... सपना संख्या ग्यारह ।
पतिहारा लड़कों को ललकारते - अरे ऊ सपना नहीं । महान मतदाता हैं । जो खतम हो गए ।
प्रधानी के पिछले चुनाव में मतगणना के आखिरी दौर में रिटायर्ड सूबेदार रामनिहोर चौधरी का नाम पतिहारा पड़ गया । वोटों का अंतर इतना हो चुका था कि अब उनकी पत्नी के जीतने की संभावना नहीं बची । वह सेना की नौकरी के दौरान फुर्सत के समय में फेंकी और लपेटी गयी अच्छी बातों और कई साल से जमा की गई रियायती दर वाली मिलिट्री कैन्टीन की रम की लाल बोतलों के भरोसे चुनाव जीत कर गांव का अनुशासित विकास करने के मंसूबे बांध रहे थे । उधर नोट और नायलान की साडिय़ां बांट कर दूसरा पक्ष बाज़ी मार ले गया था । उन्होंने सूरे के पैंट पर बने मानचित्रकार धब्बों की ओर देखते हुए सोच में डूबी आवाज में कहा था - ये सब वोट थे । उनकी पक्की राय बन चुकी थी कि सूरे नहीं गांव के सारे वयस्क अंधे हैं । जिन्हें फुसलाकर प्रधानी से लेकर संसद तक के चुनाव में उनकी सबसे कीमती चीज ले ली जाती है । उन्होंने क्या दे डाला है । यह उन्हें कभी ठीक से पता भी नहीं चलने पाता ।
चुनाव ने अनपढ़ सावित्री देवी की घुटन भरी जिन्दगी में एक दरवाजा खोल दिया था । जिससे होकर बाहरी बतास के साथ एक भूत आने लगा था । उसने अपने प्रत्याशी होने का पहचान पत्र, लकड़ी के सस्ते फ्रेम में मढ़ी इंदिरा गांधी की एक फोटो, पर्चा भरने के समय पहनाई गई गेंदे की एक सूखी माला और चुनाव चिन्ह जलता बल्ब छपा बैलेट पेपर सबसे कीमती चीज़ों के साथ सहेज कर अपने बक्से में रखा था । आए दिन जानवरों की नाद में पानी भरने या घूरे पर कूड़ा फेंकने के बीच वह धीमे से सरक कर उन दो सौ ग्यारह मतदाताओं के पास चली जाती थी । जिन्होंने उसे अपनी नेताइन चुना था । वह उन घरों की औरतों के दुख सुख, बाल बच्चों, खेती बारी का हाल पूछती । और अगले चुनाव में जीतने पर डीह बाबा को पियरी करहिया चढ़ाने की मनौती करती । औरतें सकपका कर हँसने लगती थीं । वह विचित्र ढंग से ताड़ते हुए अचानक कहती - और देस की पालटिस कैसी चल रही है ?
उसे पकड़ पाने में नाकाम होकर पतिहारा चारा पानी करते हुए शाम से पहले डीह बाबा के चौरे तक जाकर बबूल का एक छरका तोड़ लाते थे । क्योंकि वह रात में सोते वृक्ष को तकलीफ देने के सख्त खिलाफ थे । रम का दूसरा पैग पीते हुए अनियंत्रित सांसों के बीच वह सिविलियनों में डिसिपलिन की कमी और समय की कद्र न करने की आदत पर गंभीर चिंतन करते । पत्नी के लौटते ही, साली लौट आई पार्लामेन्ट से बैरक में हुंकारते हुए उसके नितंब और पीठ लहुलूहान हो जाने तक पीटते । सावित्री देवी पर भूत चढ़ता । वह बचपन से उस दिन तक के अपने दुख गाते हुए बोलने लगती । जानवरों को खूंटा तुड़ाने की हद तक भड़काने वाली हिचकियों से बांधे गए उसके गीत की टेक होती - अगर भतार इंदिरा गांधी को इसी तरह कूटता । तो क्या वे कभी प्रधानमंत्री बन सकती थीं ? उन्माद के कारण पडऩे वाले डरावनी हंसी के दौरों के बीच अचानक वह गाय भैंसों के पगहे खोल कर उनके पीछे बाहर निकल जाती । दीया बाती के समय बाल खोले, खून से तर ब्लाऊज पेटीकोट पहने, हाथ फैंकती गांव की गलियों में कंपकंपाते महीन क्रुद्ध स्वर से चिल्लाती - जंगी नेउर मतलबी यार बिलुक्का बंद हड़ताल...। उधर पतिहारा अंधेरे खेतों में सिविलियनों को गालियां देते हुए अपने जानवरों को खोज रहे होते ।
एक दिन ढेला मारते लड़कों को कई पीढिय़ों से विस्मृत पुरखों के नामों के हवाले से गरिया कर भगाने के बाद वह बांह से घेर कर डेभा तिवारी सूरे को एकांत में ले गए । गंभीर आवाज में नकली समझाइश से बोले - अब तुम्हारी विवाह की अवस्था हो गई है । कानी-कोतर लड़कियों की कमीं नहीं है । कहो तो कहीं बात चलाएं । नहाते हो । तब सुथना जरूर फींच लिया करो । नहीं ये लड़के परेशान करते रहेंगे । अच्छा, एक बात बताओ । ये कैसे हो जाता है ? सपने में कौन दिखाई देता है । फुसलाने से निरपेक्ष वह काठ की तरह खड़ा रहा । जब डेभा, तिवारी का धीरज छूटने लगा । तो उसने वैरागी संत की तरह कहा - वाह रे आदमी, जब कुछ नहीं दिखता । तो सपना ही कैसे दिख जाएगा ।
- तब कैसे सरऊ ?
पंडित की पीठ पर हाथ फिराते हुए लरजती आवाज में उसने कहा - बोली सुनाई देती है । महक जाती है । लगता है किसी ने सचमुच छू दिया हो । 
उस स्पर्श में कुछ ऐसी हीन कर देने वाली थरथराहट थी कि डेभा तिवारी का खून सूख गया । जिसके कारण चेहरे का रंग उड़ गया । उसके बाद वह फिर कभी सूरे के साथ नहीं फटके ।
गांव के पुरुषों को संदेह के पारदर्शी झोल में लिपटा हुआ पक्का यकीन था कि कई औरतों, लड़कियों के सूरे से अंतरंग संबंध हैं । सीवान में निकलने वाली दूसरे गांवों की भी औरतें, लड़कियां उसे अपने साथ मनमानी करते के लिए ले जाती हैं । अंधा होने के कारण वह किसी को पहचान नहीं सकता । इसलिए बदनामी का खतरा नहीं है । अगर बात खुल भी जाए । तो कोई कभी साबित नहीं कर पाएगा । दबी हुई नाटकीय कराहों में तस्वीर उभरती । जैसे सूरे कोई मदमाता पंचायती सांड़ है । अक्सर जिसका शिकार चतुर कामुक महिलाओं का एक गिरोह किया करता है । कोई कितनी भी कोशिश कर ले रंगे हाथ नहीं पकड़ सकता । क्योंकि घास छीलती लड़कियां सीवान में दूर तक नजर रखती हैं । और खतरा भांप कर किसी गुप्त संकेत से सही ठिकाने पर चेतावनी भेज देती हैं । थोड़ी देर बात सूरे कहीं दूर दांत चियारता मिलता है । जिसे उल्टा टांग देने पर भी कोई कुछ नहीं जान सकता ।
औरतें और ज्यादा हंसने लगी थीं । वे पहले भी बेवजह हंसती रहती थीं । अब तो उन्हें मर्दों की मूर्खता पर मुग्ध होने का जरिया मिल गया था । भूख और थकान को चुनौती देती हुई वे घर दुआर बुहारने लीपने, कंडा पाथने, चारा पानी करने, बच्चों को नहलाने के बाद दोपहर में दातुन करतीं । और दिन में झपकी आ जाने पर खुद को अपराधी मानते हुए बेना, डलिया पर फूल पतियां काढऩे लगतीं । गृहस्थी और किसानों के कामों से उन्हें जरा भी फुर्सत तीसरे पहर मिलती । तब वे चारपाई की रस्सियों की तरह खींच कर अपनी लड़कियों की चोटियां बांधते हुए धमकातीं - अगर ज्यादा हंसोगी । तो सूरे जैसे किसी आदमी से ब्याह दी जाओगी । और जिन्दगी भर ढेला खाओगी ।
रात तक खटने के बाद जब वे अपने पतियों से अपनी छोटी छोटी इच्छाएं फुसफुसातीं । अपने घर में अपनी जगह के बारे में पूछतीं । या शिकायत करतीं । तो वे उनके मां बाप को कोसते हुए गालियां देने लगते । वे हर तरफ से निरूपाय होकर अंतत: अपने आनुवांशिक बोध से मानव इतिहास की आदिम, सहज और गुप्त हड़ताल कर देती थीं । नतीजे में पिटती थीं । उसमें से बहुत कम का रूदन सावित्री देवी की तरह घर की दीवारों से बाहर आ पाता था । आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन की कामयाबी एक तुक्का थी । गांधी के पैदा होने के भी हजारों साल पहले से महिलाएं उसी तरीके से अपनी स्वायत्तता का आंदोलन चलाते हुए पिट रही हैं ।
सतत त्रास से सूरे की अकेली राहत बच्चे थे । जो डीह बाबा के चौरे पर खेलते थे । वे आंख बंद कर उसके संसार में उतरने की कोशिश करते । वहां जो अज्ञात था । उसे जानना ही उनका खेल था । वे एक दूसरे को और चीजों को टटोल कर पहचानते थे । अंधे की तरह तब तक चलते थे । जब तक किसी से टकरा कर गिर न पड़ें । उनके झगड़े सुलटाने के लिए सूरे से अच्छा पंच कोई मिल नहीं सकता था । जो उनकी बकबक को इतने ध्यान से सुनता । और उन पर यकीन करता हो ।
- मैं गदहिया गोल में पढ़ती हूं न सूरे ।
- हां ।
- मैं इससे गोरी हूं न सूरे ।
- हां ।
- पार साल से मैं बड़ा हो गया हूं न सूरे ।
- हां ।
बां डेभा तिवारी की लड़की थी । जिसे चरवाहों ने सूरे के साथ एक खेत में देखा था । उसी रात उन्होंने अपने बाबा की पोथियां पटनी से उतारी थीं । और गांव के सबसे बड़े रहस्य की खोज शुरू की थी । पंद्रह साल की बां का दिमाग चवन्नी कम था । लेकिन भूख और गुस्सा जरा ज्यादा था । ठिगनी और थुलथुल होने के कारण उसके चलने में एक उन्मादी हिलोर आ गई थी । जिससे वह चकनी हाथी लगती थी । वह गांव में घूम कर खाना मांगती थी । जात कुजात या डेभा तिवारी के डर से नहीं देने पर नथुने फुलाते हुए गालियां देती थी । जानवरों पर थूकती थी । और दरवाजे पर पेशाब कर देती थी । ताज्जुब था कि उसे भूख और पेशाब हमेशा कैसे लगी रहती थी । डेभा की पत्नी जब पेट से थी । तो उन्होंने उसे बहुत पीटा था । जिस कारण लड़की मतिमंद पैदा हुई थी ।
उस दिन सूरे नदी पार से चरी का पुरहर बोझ लिए लौट रहा था कि बां उसे घेर कर चीन्हा-चीन्ही खेलने की जिद करने लगी । सूरे ने जाने देने के लिए बहुत निहोरा किया । लेकिन उसने धक्का देकर बोझ गिरा दिया । अब किसी बोझ उठवाने वाले के आने तक इंतजार करना सूरे की मजबूरी थी ।
जब वह छोटी बच्ची थी । तब यह खेल सूरे के साथ खेला करती थी । वह एक अंधे के प्रति बच्चों की संवेदना का खेल था । जिसमें दोनों एक दूसरे के अंगों को बारी बारी से छूते हुए जानबूझ कर गलतियां करते थे । फिर आत्मीय ढंग से सही पहचानते थे । बां के असामान्य बड़े सिर को सूरे ने हथलियों में भरा । खोपड़ी की ढलान को महसूस करते हुए वह आंख, नाक, गालों, होठों से होता हुआ गरदन तक आया । तभी उसके शरीर की महक से अनियंत्रित होकर खून उसके हृदय में उछला । वह डर गया । वह उसके सिर को गगरी और कानों को सूप बता कर आगे बढऩा चाहता था । लेकिन वह सहसा चिल्लाया । जैसे किसी बस को रोकने के लिए आवाज दे रहा हो - हे हे रुको, तुम तो सयान हो रही हो । वह पीछे हटकर अपना बोझ टटोलने लगा । तो बां को जैसे दौरा पड़ गया । उसने दौड़कर सूरे की छातियों में नाखून गड़ा दिये । और झकझोरने लगी । वह नीचे दब जाने से घबराकर चिल्लाया । जिसे सुनकर चरवाहों ने चीटों की तरह गुत्थमगुत्था दोनों को अलग किया ।
डेभा तिवारी ने बाँ को फुसला कर जानने की कोशिश की कि सूरे ने उसके साथ क्या किया था । जो नाराज होकर उसने बकोटने लगी थी । देर तक मुंह फुलाए रहने के बाद उसने बताया कि खेल बीच में छोड़ कर भाग रहा था । फिर वह बाप को भी गालियों देने लगी । बेटी के साथ मां की भी धुनाई करने के बाद वे पूरी सांझ सिर पर हाथ रखकर बैठे रहे । रात में उन्हें अपने वैद्य बाबा की याद आई जो कहा करते थे - औरत में भेद छिपाने की क्षमता आदमी से तीन गुना और गरमी नौ गुना ज्यादा होती है । और उसे सिर्फ ज्ञान के अंकुश से ही काबू में रखा जा सकता है । वह पटनी पर चढ़कर किसानी के कबाड़ से लाल कपड़े में बंधी बाबा की थाती उतार लाए । जिसमें पुराण, पंचाग, कर्मकांड की विधियों, पुरानी चिट्ठियों, बदबूदार बुरादा बन गई जंगली गुलाब की पखुंडिय़ों और मूसों की लेंडिय़ों के बीच वे दो किताबें मिलीं । जिनकी करामात से उनके परिवार की आजीविका आधी सदी तक सम्मानजनक ढंग से चलती रही । अगली पीढ़ी में उनके पिता के गंजेड़ी होकर बहक जाने के कारण विद्या परिवार से चली गई । और तब से यह गठरी दरिद्र वर्तमान की सोहबत में उपेक्षित पड़ी हुई थी ।
सामलसा गौर लिखित जंगल की जड़ी बूटी और निघण्टु भूषण नामक दो किताबों को झाड़ पोंछ कर उन्होंने पढऩा शुरू किया । कपूर से तपा कर उनकी गंध को सहनीय बनाने के साथ चले एक सप्ताह के अनवरत अध्ययन से उन्होंने उस विलुप्तप्राय वनस्पति का पता लगा लिया । जिससे राजपुरुषों का यौवन कायम रहता था । और तांबे को सोने में बदला जाता था । लेकिन अब कलयुगी स्त्रियों के छिनालपन में सहायक हो रही थी । उनके भीतर बाबा की लुप्तप्राय स्मृति के पुनर्जीवन के साथ श्रद्धा का नया बहाव शुरू हुआ । जिसके अतिरेक में उन्होंने बस्ते के लाल मारकीन और ओसारे में लटके उनके फोटो के फ्रेम को साबुन से धुलकर गेंदे की दो मालाओं से सजा दिया ।
गांव के डाकखाने में छठे छमाहे डेभा तिवारी के बाबा के नाम एक पोस्टकार्ड आ जाया करता था । रोग के लक्षण बताकर दवाई भेजने का सविनय निवेदन करने वाले इन दुर्लभ मरीजों में इतनी हताशा होती थी कि उनका कामन सेन्स चाट चुकी होती थी । वे यह नहीं सोच पाते थे कि किसी वैद्य की मृत्यु भी हो सकती है । अगर उनके बाबा जिन्दा होते । तो कम से कम सवा सौ साल के होते । उन्हें गुजरे चालीस साल हो चुके थे । लेकिन पोस्टकार्ड आए जा रहे थे । जो डेभा तिवारी के लिए पदक थे । वे पोस्ट आफिस रोज जाने वालों में से थे । लेकिन जब पोस्टकार्ड आता । तो निठल्लों के बीच वीआईपी हो जाते । घर लौटते हुए गांव के कई ठीहों पर ठिठकते हुए धोती के फेंटे से निकाल कर पोस्टकार्ड को जोर से पढ़ते । और आसमान की ओर उठा कर कहते - भेज दीजिए वहीं से दवाई । अब तो कतरीसराय में गुप्त रोग के दुखियारों की सुनने वाला कोई रहा नहीं ।
प्रधानपति ने डेभा तिवारी को कई दिनों तक सुबह सुबह तालाब, नदी के किनारे उगे जंगली पौधों का सर्वे करते देखा । तो अनुमान के अनिश्चय से पूछ लिया - खरबिरइया खोज रहे हो । जानो पंडितान में बैदही शुरू होने वाली है ।

तेलियाकंद 2

- इलाके में फिर से तेलियाकंद उगने लगा है । सब उसी का चूरन फांक रही हैं । पानी के साथ एक फंकी मार लेने से एक महीने तक गर्भ नहीं ठहरता । उन्होंने सहमे हुए भेद भरे ढंग से बताया ।
प्रधानपति की आंखें फैल गईं । और होंठ लटक गए । उसने महिला सीट हो जाने के कारण मजबूरी में अपनी बीए पास पत्नी को प्रधान तो बनवा दिया था । लेकिन आफत मोल ले ली थी । वह जिला मुख्यालय पर हाकिमों की बैठकों में उसके मना करने के बावजूद अकेले जाती थी । सरकारी कागज पतर खुद रखती थी । और हमेशा पीछा करने के लिए अकेले में झिड़क भी देती थी । पहले वह मारपीट बर्दाश्त कर लेती थी । लेकिन इधर एक साल से अलग सोने लगी थी । वह गालियां देता हुआ दिन रात सुलगता रहता था । दिमाग में संदेह के लाखों कीड़े कुलबुलाते थे । लेकिन कोई उपाय नहीं था । क्योंकि उसी के दस्तखत से कमीशन के लाखों रूपए घर में आते थे । और प्रधानी से परिवार का रूतबा था । एक बार तो उसने उन्माद में कुदाल से अपने कमरे की सिटकनी को उखाड़ फेंका । प्रधान ने ससुर से सलाह करने के बाद लोहार बुलाकर घर के सभी कमरों पर भुन्नासी ताले लगवा दिए । और डाकखाने की मुंगरी जैसी घुंडीदार मुहर को तकिए के नीचे रख कर सोने लगी । एक सुबह प्रधानपति को नहाते देखकर कुएं की जगत पर बैठे लोग सनाका खा गए । उसके एक कूल्हे, टांगों और पेट पर पोस्ट आफिस कतरीसराय के गोलाकार गाढ़े हल्के कत्थई ठप्पे लगे हुए थे । लोगों ने बहुत बाद में जाना कि उसकी जिन्दगी बदलने में पोस्ट आफिस की महत्वपूर्ण भूमिका का यह स्पष्ट पूर्व संकेत था ।
पंडित के अनुसंधान का नतीजा जानने के बाद उसे सिनेमा का परदा दिखने लगा । गांव की औरतें खामोशी से मर्दों के खिलाफ गोलबंद हो रही हैं । उन्होंने सबसे नाजुक नस पकड़ ली है । अब वे मान मर्यादा को चूल्हे में झोंककर मर्दों को काम की अग्नि में जलाकर मार डालना चाहती हैं । पंडित को महसूस हुआ कि उनके भीतर कुछ शक्तिशाली, पुरातन, सूक्ष्म, शांत, गरिमामय तरंगों के रूप में बह रहा है । यह ज्ञान के आसपास किसी चीज की सुप्त आनुवांशिक अनुभूति थी । जो प्रधानपति पर पड़े प्रभाव की प्रतिक्रिया में जागृत हा रही थी । तुरंत उसकी चाल और वाणी थिर हो गई । उन्होंने प्रधानपति को ऐसे देखा । जैसे वह संसार के मेले में भटका हुआ अनाथ बच्चा हो । उसके भीतर गुप्त खुशी फूटी कि अचानक वे एक नवधनिक के रूतबे के असर से बाहर हो गए हैं । लेकिन अगले ही पल झेंप गए । क्योंकि वे उनके सामने फटा गमछा पहने नंगे बदन खड़े थे । उन्होंने निश्चय किया - अब वे पूरी जिंदगी बिना साफ धोती पहने घर से नहीं निकलेंगे । गमछे की जगह कंधे पर है । और वह वहीं रहा करेगा ।
गांव में अब डेभा तिवारी ऐसे चलते । जैसे पेशी पर कचहरी जा रही हों । और देर हो गई हो । चमत्कारी कंद के बारे में जानने को आतुर कोई न कोई पीछे लग लेता था । वह रहस्य जानने वाले की पात्रता को तौलने के बाद फुसफुसाते - जहरी पौधा है । जिसकी रक्षा भयंकर सर्प करते हैं । नदी ताल के तीर पर मिलता है । जहां उगलता है । हर तरह के कीड़े मकोड़े मर जाते हैं । घास तक खत्म हो जाती है । मिट्टी तेल पीकर काली पड़ जाती है । पत्ते आम के जैसे लेकिन छोटे होते हैं । सिर्फ एक पीला फूल सांप के फन की तरह खिलता है । बकरी के मक्खन जैसी महक आती है । बारह साल तक सिर्फ बरसात में पौधा पनपता है । बाकी समय आदमी के कपाल के आकार का सवा तीन सेर भारी चित्तीदार कंद जमीं के भीतर पड़ा रहता है । अगर विधि का विधान हो । तभी तेलिया आदमी को अपने पास बुलाता है । वरना सामने होते हुए भी दिखाई नहीं पड़ेगा । पहचान यह है कि नर कंद में हंसुआ धंसाओ । तो फल गलकर गिर जाएगा । और मादा से सिसकी लेने की आवाज सुनाई पड़ेगी ।
वह प्रभाव का अनुमान लगाते हुए अपने मन में प्रभावशाली ढंग से बोलने का अभ्यास करते -रसशास्त्र के सुवर्ण तंत्र ( परशुराम - परमेश्वर संवाद ) नामक ग्रंथ में लिखा है । कैसा बी विषधर सांप काट ले । एक बूंद रस जहर उतार देता है । लेकिन किसी गुणी आदमी के हाथ तेलिया कंद लग जाए । तो वह पलक झपकते राजा बन जाता है । क्योंकि उसके रस में पकाने से पारा, तांबा और चांदी सोने में बदल जाते हैं । कैंसर, नपुसंकता, जलोदर समेत दुनिया की कौन सी असाध्य बीमारी है । जो उसके रस से ठीक नहीं हो सकती । आदमी पंद्रह दिन तक इसका चूर्ण दूध के साथ पी ले । तो बुढ़ापा पास नहीं आता । औरतें पीयें । तो सदा जवान रहेंगी । और हमल नहीं ठहरेगा ।
जो शहर में नौकरी करने वाले ज्यादा पढ़े लिखे लोगों से कहते । वह यह था - इसी पौधे के कारण भारत को सोने की चिडिय़ा कहा जाता था । जहाँ युगों तक विदेशियों के लूटने के बाद भी कभी सोने की कमी नहीं होने पायी । पुराने जमाने के राजा महाराजा खुले हाथ से प्रतिदिन कई क्विंटल सोने का दान इसी कीमियागिरी के चलते करते थे । अब टाटा, बिड़ला, अंबानी, जिन्दल जैसे उद्योगपति और कुछ खानदानी नेता जंगलों में रहने वाले सिद्ध महात्माओं को बुलाकर उसका सेवा सत्कार कर अपने घरों में सोना बनवाते हैं । यही कारण है कि उनको व्यापार में कभी घाटा नहीं लगता । और संपत्ति दिन दूना रात चौगुनी बढ़ती जाती है ।
तेलियाकंद खोजने का चस्का गांव को लग चुका था । कई पुराने चोर और भाग्य के धक्के से अचानक धनी हो जाने की कल्पनाओं से लाचार दुस्साहसी रातों में सूरे पर नजर रखने लगे थे । एक अंधे का पीछा करने में कोई रोमांच नहीं था । लेकिन सूरे सीवान में उनकी उपस्थिति भांपकर बौखलाया फिरता था । बेटे को काम धाम छोड़ कर कई दिन अकेले भटकते और डेभा तिवारी से कानाफूसी करते देखा । तो प्रधान ससुर चिंतित हो गए । उन्हें लगा ठगने का नया बंधान पंडित ने तैयार कर लिया है । उन्होंने उसे समझाया - यह सब गप्प है । डेभा के खानदान में एक से एक फेंकू गुजरे हैं । इसके बाबा भी शिलाजीत के नाम पर बबूल का लासा बेचते थे । ऐसे काबिल वैद्य थे । तो अपनी रतौंधी का इलाज क्यों नहीं कर लिया । सांझ होते ही लड़कियों की पीठ पर खरहरा करने लगते थे । क्योंकि उन्हें दिखाई देना बंद हो जाता था ।
बाबा के प्रति नयी जन्मी आस्था को गहरी ठेस लगी । और डेभा तिवारी के सिर से एड़ी तक आग लग गई । सूरज निकलने से पहले ही अन्न जल त्यागने का एलान करने के बाद वे मुरैठा बांधकर चिंघ्घाडऩे लगे - गांव में जिस भी नए पुराने ने साइंस साइड से पढ़ाई की हो । प्रधान के दरवाजे पर आए । वे आज सोना बनाने की विधि बताएंगे । अगर कोई गलत साबित कर देगा । तो कल ही खेत बारी बेचकर परिवार समेत गांव छोड़ देंगे । और पानी नए ठीहे पर जाकर पीएंगे ।
तीसरे पहर जब प्रधान के द्वार पर गांव उलट पड़ा । तो उन्होने एक लकड़ी से गोला खींचकर किसी को भी लकीर न पार करने की चेतावनी दी । उसके भीतर उन्होंने गीली जमीन पर अंग्रेजी में 2Hg + S = Hg2S (-2e) = Gold  लिख कर नीचे इतनी गहरी लकीर खींची कि लकड़ी मिट्टी में फंस गई । और वे झटका खाकर लडख़ड़ा गए । मंगलाचरण का सस्वर पाठ करने के बाद कमर सीधी करते हुए उन्होंने आत्मविश्वास से कहा - आयुर्वेद के हिसाब से तो पारा शंकर भगवान का रूप है । और गंधक पार्वती हैं । दोनों मिलकर मृत्युलोक में धनधान्य बनाए रखते हैं । लेकिन ज्यादा पढ़े लोग इस पर विश्वास नहीं करेंगे । इसलिए पुरखों की पोथी से यह फार्मूला निकाल कर लाना पड़ा । यहां भी लड़के धीमी आवाजों में टिटकारी मारते हुए सूरे को घेरे के भीतर ठेल रहे थे । लेकिन पूर्वाभास से उसने सटीक जान लिया था कि ज्ञान के आतंक की चौहद्दी कहां है । मौके की नजाकत तो वह समझ ही रहा था । पैर रोप कर मुस्कराता हुआ किनारे अड़ा रहा ।
गोले की लकीर पर मुर्गे की तरह चलते हुए डेभा तिवारी ने किसी सनकी प्रोफेसर की बदमिजाजी से कहा - जो लोग इस लिखे का मतलब नहीं समझते । वे अपना टाइम खोटा न करें । जाकर गोरू बछरू देखें । जो इन जिन्सों के रासायनिक नामों को जानते हैं । उन्हीं के लिए यह फार्मूला है । पारे को जब गंधक के तेल में घोटा जाता है । तो पारे के फालतू इलेक्ट्रान गंधक खा जाता है । और बदले में अपना पीला रंग दे देता है । तेलिया कंद की सिफत यह है कि वह पारे को उडऩे नहीं देता । जब इस मिश्रण को तेलिया के रस में पकाया जाता है । तो पारा मजबूत होकर सोना बन जाता है ।
कतरीसराय के दो बेरोजगार नौजवानों के पास के शहर के डिग्री कालेज में मेडजी ( मेड ईजी ) टीपकर बीएससी की डिग्री पाई थी । जो पारे से ज्यादा तेलियाकंद के बारे में जानते थे । और डेभा तिवारी को जमीन पर सरपट अंग्रेजी लिखते देखकर प्रभावित हुए थे । उनमें से एक को जब ठेलकर आगे किया जाना लगा । तो वह ‘भक्क’ कह कर भाग खड़ा हुआ । दूसरे को, जो प्रधानपति का छोटा भाई था । जब पिता ने प्रश्नवाचक निगाह से देखा । तो गोले में आना ही पड़ा । वह कहना चाहता था - विद्या माई की कसम ! मुझे नहीं पता कि गंधक कैसे पारा खाता है । मैंने इलेक्ट्रान सिर्फ कागज पर लिखा देखा है । क्योंकि हमारे कालेज की लैबोरेटरी में मैनेजर साहब की जर्सी गाएं बंधी रहती थीं । मैं न ही तेलियाकंद कैसा होता है । यह जानता हूं । लेकिन पता करने की कोशिश करूंगा । और एक दिन आप सबको जरूर बताऊंगा ।
पता नहीं कैसे लोगों ने उसे कहते सुना - फार्मूला का हाल तो पंडित जानें । लेकिन जापान से लेकर अफ्रीका तक इस संसार में जहां जहां जमीन पर तेलियाकंद पाया जाता है । नीचे सोना होता है ।
अंतत: प्रधान ससुर के हाथ से लोटा लेकर पानी पीने के बाद डेभा तिवारी ने गर्व से होंठ भींचकर भीड़ की ओर देखते हुए लंबी डकार ली । यह उदघोष था । जिसके बाद खुले तौर पर गांव की स्त्रियों को पतित होने से रोकने के लिए तेलियाबंद के पौधे को खोजकर हमेशा के लिए नष्ट कर देने और गुप्त रूप से अपनी अतृप्त इच्छाओं से प्रेम कहानियों के निर्माण का अभियान शुरू हुआ था ।
जिउतिया के रोज की बात है । शाम को निर्जला व्रत का पारायण कर नदी से लौटती औरतों ने बताया कि पानी में कहीं से बहता हुआ तेल अ रहा है । प्रधानपति के कान खड़े हो गए । उसने जाकर डेभा तिवारी को बताया । तो वह झटके से थैली से तंबाकू निकाल कर चुनौटी में दबाकर भरने लगे । जैसे तुरंत किसी लंबे सफर पर निकलना हो । फिर कुछ सोचते हुए घर में गए । और बाबा के बस्ते से पंचाग निकाल लाए । लालटेन की रोशनी में देखकर उन्होंने कहा - मुहूर्त अच्छा है । हो सकता है । आज रात सूरे को तेलियाकंद फिर बुलाए । और उसका पीछा करते हुए हम लोग वहां तक पहुंच जाएं । तय हुआ कि सूरे को देखते रहा जाए । और एक घड़ी रात गए निकलने की तैयारी रखी जाए । लेकिन सूरे जो दोपहर को नदी की तरफ गया । अब तक लौटा ही नहीं था । उसकी मां डीह बाबा के चौरे पर बैठी गालियां देती हुई रास्ता अगोर रही थी । टोह लेने गए भेदिए ने जब लौटकर बताया । तो दोनों की आंखें मिलीं । उसी वक्त तारे बादलों से ढंक गए । और बूंदे पडऩे लगीं । इसका मतलब था - मुहूर्त तो सचमुच अच्छा है ।
उस रात भी गांव की गलियों में अपने खून से भीगी जुझारू नेताइन की चिंचियाती नारीवादी पुकार, जंगी नेउर मतलबी यार... बच्चों को डरा रही थी ।
कुत्तों और सियारों के अलावा बाकी आवाजें मंद पडऩे लगीं । गांव में सोचा पड़ गया । तब दोनों अलग अलग रास्तों से छाता, लाठी और टार्च से लैस होकर निकले । गांव का आखिरी घर पार करते न करते कारतूस का पट्टा लटकाए, दुनाली बंदूक लिए अपने पालतू कुत्ते के साथ प्रधानपति का भाई भी आ मिला । जिले में कुढञ रहे बाप ने अंगरक्षक की भूमिका निभाने के लिए भेज दिया था । बाप ने चलते समय चेताया था - देखना पंडित के कहने पर कोई खरपतवार न खाने पाए । और किसी तीसरे आदमी के मिलने पर जबरदस्ती टांग कर घर लौटा लाना । दोनों ने अपनी लुंगियां घुटनों पर चढ़ा लीं । और पंडित ने धोती का कछौटा बांध लिया था । अंधेरे में खेतों को आंखों से छानते चलने के कारण मेड़ों से बिछलते हुए ये चारों नदी की आवाज सुनाई देने तक एक कतार में चुपचाप चलते रहे । डेभा तिवारी ने नदी किनारे के एक छतनार बरगद से खोज शुरु करने के फैसला किया । जिसके ऊपर बादलों में एक टिटहरी लगातार चीखती मंडरा रही थी । उनका अंदाजा था कि सूरे बारिश से बचने के लिए किसी पेड़ के नीचे बैठा हो सकता है ।
हवा में उमस थी । तीनों नदी के पेटे में उतर कर टार्च की रोशनी से पानी देखते रहे । लेकिन कहीं तेल का नामोनिशान नहीं था । किनारे पर मेढकियां फुटक रही थीं । कुत्ता टांगों के बीच कूद रहे टिड्डों को मुंह से दबोचने में लग गया । कभी कभार कोई छोटी मछली धार में चमक उठती थी । बरगद के पत्ते बूंदों से पट पट बज रहे थे । लेकिन टार्च से आवाज का पीछा करने पर उल्टे लटकते सैकड़ों चमगादड़ दिखाई देते थे । कहीं दूर सियारों की आवाजें छोटी छोटी लहरों की तरह उछल बैठ रही थीं । झाड़ झंखाड़ से ढके अंधेरे विस्तार में सूरे जैसे बेढब आदमी को खोज पाना असंभव लग रहा था । क्योंकि पूरब से बादल चढ़े आ रहे थे । कई लंबी सांसे लेने के बाद भाई ने कहा - लौट चलिए । लग रहा है बारिश तेज होगी । कल बुलाकर पूछिएगा । तो बता देगा । सीधा आदमी है ।
पंडित छाते के नीचे बैठे खैनी बना रहे थे । डूबी हुई आवाज में बोले - उसको औरत का स्वाद लग चुका है । बताना होता । तो पहले किसी औरत को बताता । और अब तक सारे जवार को पता चल चुका होता ।
झाडिय़ों की ओट में नदी की घुमान पर आवाज बदली । जैसे कोई हड़बड़ाकर पानी में घुसा हो । कुत्ता भौंकते हुए भागा । तो डेभा तिवारी हल्की कराह के साथ उठे । लाठी कंधे पर रखकर चल पड़े । दोनों भाई जरा देर एक दूसरे को अंधेरे में देखते रहे । फिर पीछे हो लिए । यह किनारे पर मडिय़ा मारे पड़ा एक छुट्टा भैसा था । जो आदमियों को देखकर उस पार जा रहा था । उसकी पीठ और पुट्ठों पर सूखी मिट्टी की मोटी पपड़ी जमी थी । और आंखें टार्च की रोशनी में अंगारों जैसी लग रही थीं । उम्मीद के विफल हो जाने पर प्रधानपति ने खोखली हंसी के साथ कहा - पंडित ये अढ़ाई लाख का भैंसा है । जो आजकल बहुत बीमार है ।
डेभा तिवारी ने नदी की धार देखते हुए कहा - आईसीयू में भर्ती है क्या ?
- पिछले साल पशुपालन विभाग में मजबूत बजट आ गया था । मार्च में खपाने के लिए अफसरों ने डाक्टर से लिखवा लिया कि जिले के सभी उन्नत नस्ल के सांड़ भैसों को कोई भारी बीमारी हो गई है । इलाज के लिए विदेशी इंजेक्शन मंगाए गए थे । हर छुट्टा जानवर पीछे दो लाख का खर्चा आया था । इन भैंसाराम का इलाज तो अभी चल ही रहा है ।
- बड़ा किस्मत वाला है भाई ।
तेज हवा के झोंके से पंडित का छाता उलट गया । वह भी पीछे भहराने को थे । तभी बिजली की चमक में तेल का एक बड़ा चकता दिखाई दिया । जो किनारे की ओर फैलता हुआ पानी पर धीरे धीरे हिल रहा था । उन्होंने टार्च एक जगह स्थिर कर दी । बादलों की गडग़ड़ाहट के बीच अब तीनों रोशनी में उतराते हुए नीले रेशे देख रहे थे । आगे एक और चकता थिर चाल से चला आ रहा था । हवा ठंडी हो चुकी थी । पूरब से तेज पानी चला आ रहा था । आसमान का रंग देखते हुए फैसला किया गया - एक साधे सब सधे । यानि धारा के उल्टे चलते हुए पता लगाया जाए कि यह तेल कहां से आ रहा है । संभवत: वहीं तेलियाकंद और सूरे दोनों एक साथ मिल जाएंगे । पंडित ने छाता सीधा करने की नाकाम कोशिश से झल्ला कर प्रधानपति के भाई को देखा । जिसका मतलब था - तुम्हारी बात मान लेते । तो यह मौका हाथ से गया था । उसने जल्दी से छाता हाथ में ले लिया । लेकिन झकोरों के आगे वह भी सीधा नहीं कर पाया ।
खड़े कगार पर आधा कोस चलने पर आंधी में झांय झांय करते ताड़ के तीन पेड़ दिखे । पानी तेज बरसने लगा । तिरछी बूंदों से चोट लग रही थी । हवा उनकी कतार तोड़ कर बारबार लडख़ड़ाने को मजबूर कर रही थी । कुत्ते ने पूंछ टांगों के बीच दबा ली । और कूं कूं करता हुआ भागकर एक आम के पेड़ के नीचे खड़ा हो गया । उसकी विनम्र सलाह मानकर तीनों भी पीछे से वहां पहुंच गए । और बूंदों की मार से बचने का जतन करने लगे । पेड़ के नीचे कच्ची ईंटों से बना दैतराबीर बाबा का एक छोटा चौरा था । जिसके आले में दो गुडिय़ा, माला के टूटे मनके, भैंस के सींग की एक कंधी और आइने के कई टुकड़े रखे थे । नीचे बहुत सी सीपियां और छोटे घोंघों के खोल पड़े थे । दैतराबीर मल्लाहों के देवता थे । जिनसे बाढ़ उतरने की मनौती की जाती थी । खेतों में काम करने वाली औरतें इस एकांत में कंघी से जुएं निकालती थीं । लड़कियां एक दूसरे को सजाती थीं । और चीथड़ों से बने गुड्डे गुडिय़ा का ब्याह रचाती थीं । सीपियां सूख जाने पर पत्थर पर घिस कर आलू, आम की छिलनी और शिशुओं को दूध पिलाने की सुतुही बनाई जाती थी ।
डेभा तिवारी के मन में भैंसे के इलाज वाली बात घूम रही थी । उन्होंने बेकार हो गए छाते की नोंक से गुडिय़ों को गिराते हुए कहा - सिंगार पटार का काफी इंतजार है । गमछा और धोती निचोडऩे के बाद चेहरे से पानी पौंछते हुए उन्होंने ठंड से सिसियाते प्रधानपति की ओर देखा - यहां भी बुढिय़ा चौथेपन में दुलहिन बनने की प्रेक्टिस कर रही है ।
प्रधानपति मुसकराया । वह पंडित का इशारा समझ गया था । बुढिय़ा बनने की विधि का आविष्कार थोड़े दिन पहले अपनी जाति के बाहर पक्के वोट बैंक की तामीर के लिए किया गया था । जिसे कतरीसराय में भी कामयाबी से चलाया जा रहा था । पहले गरीबी रेखा से नीचे की लिस्ट में चुने हुए परिवार फर्जी तरीके से जोड़े जाते थे । पंचायत सेकेट्री के सत्यापन के बाद सरकारी डाक्टर उन लड़कियों को साठ की उम्र का सर्टिफिकेट देता था । कोआपरेटिव बैंक में खाता खोलने के बाद प्रधान की सिफारिश के साथ भेजी गई अर्जी को समाज कल्याण विभाग का बाबू ऊपर बढ़ा देता था । इस प्रकार लड़कियों, नवविवाहितों को हर महीने तीन सौ रुपये की वृद्धावस्था पेन्शन मिलने लगती थी । जो सरकारी तौर पर उनकी मृत्यु प्रमाणित होने तक जारी रहनी थी । यह पक्के वोटर की वफादारी का ईनाम था । जिसे सरकारी अफसरों की मिलीभगत से प्रधान, विधायक, सांसद हर स्तर के जनप्रतिनिधि प्रजा को बांट रहे थे ।
- तो पंडित तुम भी फार्म भर दो । जिस पर हाथ रख दोगे । वह बुढिय़ा कमाऊ हो जाएगी । उसने तेलियाकंद मिलने के बाद की संभावनाओं पर विचार करते हुए प्रस्ताव किया । जलती टार्च हाथ में लिए डेभा तिवारी कुछ कहने दूर खड़े हैं । अंधड़ में अचानक ताड़ का एक पत्ता लंबे डंठल समेत उखड़ कर लहराता हुआ आम के पेड़ पर झप्प से गिरा । कुत्ता बौखला कर भौंकने लगा । डेभा तिवारी शीशे के टुकड़े के बजाय टार्च फेंककर गिरते पड़ते भागे । बाकी तीनों भी दूर तक पीछे दौड़ गए । उखड़ी सांसों के बीच आतंकित पंडित ने कहा - साले ओझैतों ने हर पेड़ पर भूत बांध रखे हैं । आंधी पानी में भी शरण का ठौर नहीं बचा । पेड़ के नीच उधियाती पत्तियां और गीली घास टार्च की रोशनी में चमक रही थीं ।
प्रधानपति के भाई ने हिम्मत बटोर कर कंधे से बंदूक उतारते हुए कहा - जरा देखें । कहीं सूरे ही तो हम लोगों को डराने के लिए चढ़कर पेड़ नहीं झोर रहा है । उसे सख्ती से बरजने के बाद पंडित ने गांव जवार के सभी जागृत देवताओं का सुमिरन और तीन बार हनुमान चालीसा का तेजी से पाठ किया । उन्होंने उसे बिना ऊपर देखे टार्च लेकर भाग आने को कहा । इसके बाद छाते, लाठियां कांख में दबाए चौकड़ी आगे की ओर चली । 
कगार पर आगे सरपत का लंबा जंगल था । उसके बाद मलाही टोला था । जहां नदी पर डोंगियां थीं । खूंटे गाड़कर नदी के पार पार मछली मारने के जाल बंधे थे । जिसमें फंसकर गिरने का खतरा था । साक्षात भूत देख लेने के बाद वैसे भी सरपत में जाने का सवाल नहीं उठता था । प्रधानपति ने फैसला सुनाया - किसी मल्लाह को जगाकर नाव से चला जाए । और एक झंझट आज ही खत्म किया जाए ।
खेतों के लंबे रास्ते कीचड़ में होकर मलाही टोला पहुंचने पर हांव हांव करते कुत्ते झपटने लगे । उसने पीछे नशे में लडख़ड़ाता लंबा, हडिय़ल रम्मन मल्लाह प्रकट हुआ । जो कभी इलाके में सेंधमारी का उस्ताद रहा था । वह आधी रात के बाद भी नदी के तीर पर अपने छप्पर में जागा हुआ चिलम पी रहा था । सरकारी पंचायती राज आने के बाद चोरी चकारी जैसे छोटे अपराध होने बंद हो गए थे । क्योंकि बटमारी के नए सुरक्षित रास्ते खुल रहे थे । प्रधानपति ने नाव खोलने को कहा । तो पहले वह तरह तरह से भेद लेने की कोशिश करता रहा कि - इस समय कहां और क्यों जाना है ? फिर साफ इनकार करके उल्टे पांव लौटने लगा । पीठ पीछे से पंडित ने उसे किसी तरह रोकने के लिए कहा - सबेरे मल्लाहों को तालाब का पट्टा देने वाले विभाग के अफसर तुम्हारे टोले में आने वाले हैं । नदी भी देखेंगे । उन्हीं के दौरे का इंतजाम करने हम लोग निकले हैं । तब वह धीमे से पलटा । और नकली सिसकियां लेते हुए एक विलाप गीत गाने लगा । बड़ी देर बाद मतलब निकलना शुरू हुआ - मेरे पास एक घूर जमीन नहीं है । बरसात छोड़ नदी पार करने के लिए कोई पूछता नहीं । और घर में खाने वाले ग्यारह मुंह हैं । कैसा अन्याय है कि ट्रैक्टर, राइफल वाले बड़े काश्तकार गरीब का भेष बनाकर जमीन के पट्टे और सरकारी पैसा खींच रहे हैं । उठती उमर की सुंदरियां बुड्ढों की पेन्शन हड़प रही हैं । और हट्टे कट्टे जवान विकलांग बनकर सरकारी नौकरी कर रहे हैं । कैसा सतयुग आया है । खड़ंजे की ईंटों से नोना और सरकारी हैंडपंपों से पानी के बजाय रूपया झर रहा है । इतने दाताधर्मी के रहते इस गांव में कैसा जुल्म हो रहा है । लगता है । पानी के देवता, सूर्यनारायण, संझा माई सभी अंधे हो गए हैं ।
ठंड से दांत किटकिटाते प्रधानपति ने अपनी दो बेटियों को वृद्धावस्था पेन्शन, घर बनवाने के लिए जमीन का पट्टा और दैत्रावीर बाबा के लिए तीन भरी गांजा का पक्का वादा लेने के बाद ही उसने हाथ उठाकर एक जर्जर नाव पर बैठने का संकेत किया । सबसे पहले कुत्ता छलांग मारकर बैठा । मलाही टोला कि कुत्ते उसे फाड़ डालने पर आमादा थे । नदी में पानी अभी कम था । वह लंबी लग्गी से नाव ठेलते हुए उल्टी धारा में बढ़ चला । अब तेल के चकते तेजी से पीछे छूट रहे थे । बारिश थम गई थी । तारे फिर से छिटक गए थे । झींगुरों की झन झन से भीगी रात और भारी लग रही थी ।
एक लंबे मोड़ पर बड़े से कुंड में ढेर सा तेल भंवर में घूम रहा था । प्रधानपति ने अचरज से देखते हुए कहा -  इतना ज्यादा तेल कहीं खदान खुल गई है क्या ? डेभा तिवारी ने कुछ समझ में न आने वाले भाव से जंभाई ली । कुछ अंदाजा नहीं था । कितनी दूर जाना है । सो समय काटने के लिए रम्मन मल्लाह ने प्रधानपति के कुत्ते की नस्ल, वफादारी और भाग्य की प्रशंसा शुरू कर दी । उन तीनों के साथ जब कुत्ता भी ऊंघने लगा । तो उसने कहा - मालिक, क्या कातिक क्या फागुन । अब आदमियों की तरह कुत्तों के लिए भी सब बराबर है । लेकिन मलाही टोला में एक जवान ऐसा है । जो साल के तीन सौ पैंसठ दिन तीन तीन ठौर कुकुरगठिया फंसाए रहता है । उसकी ताकत का राज यह है कि कोई जड़ी जानता है । जिसे चुपके से खा आता है । सारी मलाही टोला कुत्तों के साथ महीनों से उसका पीछा कर रहा है । लेकिन क्या मजाल कि कोई माई का लाल उस जादू के पौधे तक पहुंच जाए ।
प्रधानपति ने थकान से भारी आंखें आधी खोल कर उसे देखा - लगता है गांजा से दिमाग फिर गया है । बहुत बोल रहे हो ।
रम्मन ने फिर से विलाप गीत शुरू कर दिया - आदमियों की गिजा कुत्ते खा रहे हैं । कैसा अन्याय है । मालिक कैसा अन्याय है ।
आसमान में शुक्र तारे के नीचे कतरीसराय ग्राम पंचायत को जिला मुख्यालय से जोडऩे वाली सड़क को सिर पर रखे तीन खंभे वाला पुल दिखाई दे रहा था । पुल के नीचे अंधेरे में एक बड़ा टीला था । जैसे कोई बड़े आकार का विचित्र जानवर मुंह खोले नाव का इंतजार कर रहा हो । रम्मन ने बताया - यह डीजल टैंकर है । जो तीन रोज पहले ड्राइवर को झपकी आ जाने के कारण रेलिंग तोड़ता हुआ नीचे गिर गया था । टैंकर का केबिन नदी में धंसा था । और पीछे का हिस्सा किनारे की जमीन पर उठा हुआ था । जिससे वह अभी भी छलांग के बीच में लग रहा था । नाव के बिल्कुल पास पहुंच जाने के बाद प्रधानपति ने टूटे शीशों के उस ओर केबिन में टार्च घुमाते हुए पूछा - ड्राइवर अभी इसी में पड़ा है क्या ?
- संजोग से ड्राइवर बच गया था । उसी समय भाग गया । टैंकर का मालिक आया था । जिले से क्रेन लाने गया है । रम्मन नाव रोकते हुए बोला ।
तीनों नाव से मक्खियों की तरफ उड़कर तरह ट्रक के बोनट से चिपक गए । टार्च की रोशनी में उन्होंने हैरत से देखा । ड्राइवर की सीट पर सूरे स्टेयरिंग थामे बैठा हुआ था । पता नहीं जगा था । या सो रहा था । लेकिन उसके सफेद दांत दिख रहे थे । चेहरे पर वही डर को छिपाने वाली मुस्कान थी । अपना परिचय बताने के लिए नाव में बैठा कुत्ता एक बार भौंककर चुप हो गया ।
- सूरेए । तीनों एक साथ चिल्लाए ।
- हरामजादों, तुम लोग जैसे जीते हो । वैसे ही औरतों को भी कब जीने दोगे ? सूरे ने होठों के सिवा चेहरे की अन्य एक भी मांसपेशी हिलाए बिना जहर बुझी आवाज में कहा ।
कहते हैं । उसी क्षण नदी के पानी में बिजली चमकी । एक जोर का धमाका हुआ । और सूरे उन लोगों को तेलियाकंद का पता बताकर अंतर्ध्यान हो गया । जो आज तक वापस नहीं लौटा है । कुछ लोग यह भी कहते हैं कि प्रधानपति ने किसी अंग्रेज डाक्टर से उसकी आंखें खुलवा दी हैं । उसे किसी बड़े शहर में छिपाकर रखा गया है । वह नेपाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश के जंगलों से तेलियाकंद लाकर दवाएं बनाने के बाद उन्हें देता है । सकारात्मक सोच वाले भले लोगों की तरह हमें भी यही आशा करनी चाहिए कि सूरे के साथ कोई अनहोनी नहीं हुई होगी । वह जहां भी होगा । ठाठ से होगा ।
सूरे के लापता होने के बाद प्रधानपति और डेभा तिवारी ने साझे में एक फार्मेसी का रजिस्ट्रेशन कराया । जो देश के प्रमुख अखबारों, पत्रिकाओं में विज्ञापन देने के बाद वीपीपी और पार्सल के जरिए महात्मा सूरे का असली तेलियाकंद सप्लाई करने लगी । विज्ञापनों में तेलियाकंद के तेल और चूर्ण का चमत्कारी महात्मय बताया गया था कि मर्दाना कमजोरी, शुक्राणुओं की कमीं, शीघ्रपतन, नपुसंकता, सेक्स के प्रति अरूचि समेत ढेरों बीमारियां उनके सेवन से छू मंतर हो जाती हैं । जल्दी ही देश के अधिकतर प्रांतों में ही नहीं । नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका में भी पोस्टकार्ड और मनीआर्डर हर दिन आने लगे । दो साल के भीतर कतरीसराय में स्वयंभू वैद्यों की भरमार हो गई । और गांव के एक तिहाई घरों पर दवा निर्माता कंपनियों के साइन बोर्ड लग गए । जो तेलियाकंद से कामशक्तिवर्धक दवाएं बनाकर बेचने लगीं । पहली बार गांव में पुरानी दुश्मनियों पर बेल की तरह चढ़ी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा की शुरूआत हुई । और एक दूसरे के क्लाइंट तोड़े जाने लगे । पोस्टमास्टर कैश आन डिलीवरी और वीपीपी के आर्डर वाले पोस्टकार्डों को छांटकर अपनी जेब में रख लेता था । वैद्यगण इन पोस्टकार्डों को फीस देकर खरीदने के बाद दिए गए पते पर दवा भेज देते थे । सबसे अधिक चूना सबसे पुरानी मशहूर हो चली फार्मेंसी को लग रहा था ।
जिले के कलेक्टर से भी पहले मोबाइल फोन प्रधानपति के हाथ में आया था । ग्राहकों की संख्या को मद्देनजर उसका भाई दिल्ली जाकर दो युवकों, आंध्र प्रदेश के चंद्रशेखरन और तमिलनाडु के एम. श्री निवास मारन को नौकरी करने के लिए लाया । जिन्हें गांव में बसा दिया गया । अब मामूली वेतन पर पड़ोसी देशों के युवक भी आ गए हैं । जो मोबाइल पर मरीज की अपनी बोली में सहानुभूतिपूर्वक मर्ज का हाल पूछते । और आर्डर लेते हैं । जब कोई पत्र लिखकर या फोन करके महात्मा सूरे की जन्मतिथि और उनके जीवन के बारे में पूछता है । तब अनायास ध्यान जाता है । ये कबकी कहानी है - उस समय से पहले की जब पंचायतों में परमेश्वर बसते थे । या उसके बाद की जब पंचायतें लड़कियों के जीन्स पहनने, मोबाइल फोन रखने और प्रेम करने पर ढाठी देने लगी थीं । हां, समय निर्धारित करने में यह तथ्य जरूर सहायक हो सकता है कि भारत का पहला कॉल सेन्टर कतरीसराय गांव में खुला था । और गोपन के छिलके उतारने वाली भाषा के आत्मीय स्पर्श की आउटसोर्सिंग वहां अमेरिका से भी पहले शुरू हुई थी ।
पत्रों की मौत के जमाने में भी कतरीसराय सैकड़ों पत्र रोजाना आते हैं । वहाँ का डाकखाना सबसे अधिक राजस्व देने वाले मुफस्सिल के डाकखानों में से एक है । क्योंकि दुनिया में कामदेव से शापित लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है ।
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साभार
लेखक परिचय - अनिल यादव उत्तर-पूर्व की अपनी यात्राओं के लिये जाने जाते हैं । उनका पहला और एकमात्र कहानी संग्रह ‘नगर वधुएं अखबार नहीं पढ़ती’ काफी चर्चित है । 1967 में जन्मे अनिल पेशे से पत्रकार हैं । और ‘द पायनियर’ के प्रधान संवाददाता हैं । लखनऊ में रिहाइश ।

18 जून 2015

भारत के परमाणु बम से दूसरे देशों को तकलीफ़

राजीव दीक्षित की मृत्यु के उपरान्त उनके स्वदेशी आन्दोलन का प्रभाव और जमीनी गतिविधियां अब देखने में सामने आने लगी है । भारत का युवा देश स्वाभिमान और उन्नति को लेकर जाग गया है । पश्चिमी संस्कृति के अकारण पिछलग्गुओं में भी बदलाव की सुखद आहट है । पर अभी भी ये शुरूआत ही है । इसके देशव्यापी प्रसार की बेहद आवश्यकता है । जिसके लिये अन्य कोई नहीं । प्रत्येक स्थान के स्थानीय युवा ही सबल भूमिका निभा सकते हैं । अतः जागो और नवनिर्माण करो - राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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स्व राजीव दीक्षित के 330 घंटे के व्याख्यानों के नाम और links 
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1 - आजादी का असली इतिहास
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=5
2 - आजादी के बाद भी चल रहा लार्ड मैकाले का Indian Education System
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=6
3 - आजादी के बाद भी गुलामी की निशानियां
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=7
4 - आजादी के बाद भी गुलामी की निशानियां ( other Audio )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=8
5 - आजादी के बाद स्वदेशी अपनाने की जरूरत क्यों At patanjli
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=9
6 - आजादी नहीं ये धोखा है At Akola
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=10
7 - आजादी से पहले स्वदेशी आन्दोलन की लङाई  At hubli ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=11
8 - आपका NonVeg खाना Global Warming का सबसे बङा कारण
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=12
9 - आर्थिक गुलामी में धंसता हुआ भारत
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=13
10 - अर्थव्यवस्था ( Economy ) के बरबाद होने का कारण और निवारण
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=14
11 - अभी भी भारत वैसा ही गुलाम है at Mumbai Bonashai
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=15
12 -  अगर आप कार्यकर्ता है । तो आपको किन नियमों का पालन करना चाहिये ?
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=16
13 - All About Coke Pepsi Superb Exposed
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=17
14 - अमेरिका का भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध AT thane
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=18
15 - आन्दोलन का मीडिया कैसा होगा ? By Rajiv Dixit
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=19
16 - अंग्रेज तो चले गये । लेकिन अंग्रेजियत नहीं गयी । at Nasik
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=20
17 - अंग्रेजी ( English ) भाषा की गुलामी
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=21
18 - अंग्रेजी कानून व्यवस्था
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=22
19 - अंतर्राष्ट्रीय संधियों ( international treaties ) में फ़ंसा भारत ।
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=23
20 - Anti hindu NGOs अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति Exposed
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=24
21 - अर्थव्यवस्था में मन्दी के कारण और निवारण
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=25
22 - Ayurved organic Farming Black Money At Ratlam
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=26
23 - आयुर्वेद और राष्ट्रीय समस्या Ayurveda And National Problems At Vilaspur
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=27
24 - आयुर्वेद बनाम एलोपैथी Ayurveda vs Allelopathy Comparative Study
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=28
25 - आयुर्वेदिक चिकित्सा Ayurvedic Chikitsa
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=29
26 - आयुर्वेदिक चिकित्सा At Dhamtari Chhattisgarh
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=30
27 - भगवान श्रीराम की कथाओं में भारत की समस्याओं का समाधान
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=31
28 - भगवान श्रीराम की कथाओं में भारत की समस्याओं का समाधान ( other Audio )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=32
29 - भारत आजाद या गुलाम At Sarni
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=33
30 - भारत और यूरोप की सभ्यता और संस्कृति at Kota
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=34
31 - भारत और यूरोप science and technology
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=35
32 - भारत और यूरोप की सभ्यता और संस्कृति at bhilwara
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=36
33 - भारत देश की व्यथा At Hisar
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=37
34 - भारत है कैसा और बनाना कैसा है at hyderabad
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=38
35 - भारत का स्वर्णिम अतीत
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=39
36 - भारत का सांस्कृतिक पतन कैसे हुआ ?
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=40
37 - भारत के किसानों के लिये आर्गेनिक खेती का नुस्खा
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=41
38 - भारत के किसानों की गुलामी और खेती
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=42
39 - भारत के परमाणु बम से दूसरे देशों को तकलीफ़
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=43
40 - भारत की ऐतहासिक भूलें । जो हमें दोबारा नहीं करनी चाहिये ।
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=44
41 - भारत की दुनियां को देन
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=45
42 - भारत की कानून और शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजी Patanjali Yogpeeth 2010 May 2009
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=46
43 - भारत की कथा At Bolangir Odissa
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=47
44 - भारत की खेती ( Agriculture ) At Belgaum
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=48
45 - भारत की लूट और अंग्रेजी कानून At Latur Maharastra ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=49
46 - भारत की मान्यतायें और उसके खिलाफ़ चल रहे अंग्रेजी कानून
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=50
47 - भारत की संस्कृति और सभ्यता कैसे खत्म हो रही है ?
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=51
48 - भारत को आजादी मिली लेकिन स्वतन्त्रता नहीं । AT Betul
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=52
49 - भारत में आतंकवाद और उसका निवारण
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=53
50 - भारत में हुयी पहली क्रांति ( 1857 ) की कहानी At Manu Sanskriti Sansthan
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=54
51 - भारत में मौत का व्यापार
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=55
52 - भारत में नयी व्यवस्था लाने की हमारी लङाई ।
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=56
53 - भारत में स्वराज्य कैसे आयेगा ? At Kolhapur Maharashtra
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=57
54 - भारत में स्वाइन फ़्लू के पीछे का सच
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=58
55 - भारत में विदेशी कंपनियों की लूट
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=59
56 - भारत पाकिस्तान कारगिल युद्ध और अमेरिका
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=60
57 - भारत स्वदेशी के रास्ते से ही स्वाबलम्बी बनेगा ।
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=61
58 - भारत तब और अब At Ujjain Bharat Swabhiman Andolan
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=62
59 - भारतीयों की मानसिक गुलामी
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=63
60 - Black Money Swiss in Bank Poverty Population At Gujraat
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=64
61 - Brain Drain in india At Pune Engg College
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=65
62 - Charted Accountant Swadeshi Bharat ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=66
63 - Coke Pepsi Limca Fenta Dew All Soft Drinks Exposed
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=67
64 - CTBT और भारतीय अस्मिता
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=68
65 - दातुन Vs Toothpaste
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=69
66 - दुनियां के दूसरे देशों में क्रांति - भारत स्वाभिमान
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=70
67 - During Bharat Swabhiman Movement
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=71
68 - England की महारानी एलिजाबेथ की भारत यात्रा
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=72
69 - Eye Opening Lecture Of Rajiv Dixit April - 2009
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=73
70 - family planning कैसे करें By Rajiv Dixit
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=74
71 - FDI In Insurance Sector During BJP Goverment
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=75
72 - गर्भपात एक पाप
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=76
73 - Gatt Aggrement Effect on indian economy At Wadha
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=77
74 - GATT agreement at Parwada gate
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=78
75 - गौ Agriculture और धर्म
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=79
76 - गौ हत्या और उसे रोकने के उपाय ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=80
77 - गौ हत्या राजनीति Supreme Court में लङाई at Aurngabaad
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=81
78 - गौ हत्या का इतिहास
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=82
79 - Globalization Banking Gulbarga Jan-2005 by Rajiv Dixit
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=83
80 - Gold Silver ( sona ) ( chandi ) पर Holmark एक साजिश At kolhapur
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=84
81 - Golobalisation And Liberlisation Destroyed Indian Ecenomy
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=85
82 - गौ रक्षाअ और उसका महत्व
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=86
83 - Health Ayurveda And Homeopathy 6 hour At Patiala
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=87
84 - Health Lecture 1 Hour At Beed Maharashtra
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=88
85 - Health Lecture 2 hour BHARAT vs Europe at bhilwara
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=89
86 - Health lecture 7 Hour At Pune
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=90
87 - Health Lecture 10 hour At Chennai ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=91
88 -  Health Lecture 11 hour At chennai
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=92
89 - Health Lecture Among Students At Maharashta
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=93
90 - Health Lecture how TO Give UP smoking drinking tobacco By Rajiv Dixit
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=94
91 - Health Lecture pulse diagnosis 1 Hour very Important
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=95
92 - Health Tips for Multiple diseases 4 hour Lecture
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=96
93 - हिन्दी भाषा का महत्व AT हिन्दी दिवस समारोह Hydrabad
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=97
94 - How To Work At Jodhpur - आजादी बचाओ आन्दोलन ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=98
95 - How TV Channel And Ads Wash Your Brain
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=99
96 - How You Can Fight Against Multinationals
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=100
97 -  illegal mining Loot Solution At Hoshangabad
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=101
98 - India Unknown History Current Problems At Dubai
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=102
99 - Indian Western Civilization Comparative Study
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=103
100 - Iodine salt ( नमक ) कभी मत खायें ।
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=104
101 - जन गण मन बनाम वन्दे मातरम
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=105
102 - जैविक खेती कैसे करें ?
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=106
103 - जीवन जीने की कला
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=107
104 - कैसी शिक्षा ( education ) बच्चों को दी जाये By Rajiv Dixit
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=108
105 - कार्यकर्ताओं को क्या करना होगा ? At Goa
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=109
106 - कश्मीर समस्या और समाधान At kashmir
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=110
107 - क्रांति होने के कुछ उदाहरण
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=111
108 - Lecture At Andhrapardesh
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=112
109 - Lecture At Bathinda Punjab
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=113
110 - Lecture At Bemetara Chhattisgarh
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=114
111 - Lecture At Bhopal
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=115
112 - Lecture At Biaora Rajgarh
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=116
113 - Lecture At Bicholim Goa
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=117
114 - Lecture At Bilaspur CG ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=118
115 - Lecture At Budge Budge kolkata
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=119
116 - Lecture At Delhi
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=120
117 - Lecture At Dewas 6-April-2010
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=121
118 - Lecture At Janjgir Champa CG
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=122
119 - Lecture At Madurai
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=123
120 - Lecture At Mungeli CG
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=124
121 - Lecture At Pipariya
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=125
122 - Lecture At Ponda Goa ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=126
123 - Lecture At Raigarh ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=127
124 - Lecture At Sakti CG
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=128
125 -  Lecture At Shivpuri
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=129
126 - Lecture At Sonkach Dewasmp ( Low Quality )
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=130
127 - Lecture At Udhampur Health
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=131
128 - Macaulay Education system in india
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129 - महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि
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130 - Menstrual irregularity excess waist pain treatment - Rajiv Dixit
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131 - पश्चिम का मानस
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132 - पाखंडी सन्तों का सच By Rajiv dixit
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133 - पेटेन्ट कानून और दवाओं पर हमला
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134 - संगठन के सिद्धांत और मर्यादा
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135 - शहीदों के सपनों का भारत At Gwalior
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136 - शहीदों के सपनों का भारत At Himachal Pardesh
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137 - Special Economic Zones या भारत की गुलामी ( Low Quality )
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138 - छात्र Students
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139 - Students Lecture At Chandigarh 5-July-2010
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140 - स्वदेशी आन्दोलन में गणेश उत्सव का महत्व
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141 - स्वदेशी पशुधन और शाकाहार
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142 - VAT Taxation System By Rajiv Dixit
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143 - विदेशी कंपनियों की लूट Other Audio
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144 - विदेशी विज्ञापनों का झूठ
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145 - विज्ञापनों का बालमन पर प्रभाव
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146 - विष मुक्त खेती और समृद्ध किसान
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147 - WTO Agreement Effect on Indian Economy at Amravati
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148 - WTO And VAT Questions And Answers
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149 - WTO Current Problems Of India At Dubai
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150 - WTO Effect On Gold Standardhall Mark
http://www.rajivdixitmp3.com/?p=154
151 - WTO Effect On Healthcare Rajiv Dixit
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152 - WTO Impact On Services Sector 7 04 2005 In Raipur
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153 - WTO On VAT 7 4 2005 In Raipur(Low Quality)
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154 - WTO short lecture Amravati bharat swabhiman
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155 - युवाओं का मार्गदर्शन by Rajiv dixit
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