30 सितंबर 2013

क्या कांग्रेस को उखाङना है ?

थोड़े समय बाद शायद आपको ये चीजें नहीं मिलेंगी ।
लुगाईयों का घाघरा । खिचड़ी का बाजरा ।
सिरसम का साग । सिर पे पाग ।
औंगण में ऊखल । कूण में मूसल ।
घरां में लस्सी । लत्ते टांगण की रस्सी ।
आग चूल्हे की । संटी बीन (दुल्हे) की ।
पहलवानां का लंगोट । हनुमानजी का रोट ।
घूंघट आली लुगाई । गावं में दाई ।
घरां में बुड्ढे । बैठकां में मुड्ढे ।
बास्सी रोटी अर अचार । गली में घुमते लुहार ।
खांड का कसार । टींट का अचार ।
कांसी की थाली । डांगर के पाली ।
बीजणा नौ डांडी का । दूध दही घी हांडी का ।
रसोई में दरात । बालकां की स्याही की दावत ।
बटेऊआं की शान । बहुआं की आन ।

ताऊ का हुक्का । ब्याह का रुक्का ।
पाटडे में नहाणा । पत्तल पे खाणा ।
पाणी भरेडा देग । भाण बेट्याँ का नेग ।
थारे जैसे दोस्त । अर म्हारे जिसी पोस्ट ।
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जब 1 फिल्म बनने पर सारी दुनिया जलने लगती है ।
काफ़िर से नफ़रत कोख सोते बच्चे में पलने लगती है ।
जब फतवा आता है वो गला चीर दो जो राम राम चिल्लाई थी ।
तब भी हिंदू कहते हैं - ये छोटी सी ग़लती थी मेरे भाई की ।
जब अरब देश की आँधी में भारत का पत्ता हिलता है ।
जम्मू में कटे फ़ौजी का सिर जब पाकिस्तान में मिलता है ।
जब याद दिलाओ इनकी वजह से राणा ने रोटी घास की खाई थी ।

तब भी हिंदू कहते हैं - ये छोटी सी ग़लती थी मेरे भाई की ।
जब माँ दुर्गा का नग्न चित्र 1 मलेक्ष बनाता है ।
जब कोई टोपी वाला भारत माँ को डायन डायन चिल्लाता है ।
जब 1 दिन मे 100 जाटों की अर्थी अपने घर मे आई थी ।
तब भी हिंदू कहते हैं - ये छोटी सी ग़लती थी मेरे भाई की ।
मेरे कश्मीर और केरल का जवाब अभी बाकी है ।
सोमनाथ मंदिर में जली वो किताब अभी बाकी है ।
बाला साहब की धधक रही राख अभी बाकी है ।
गुजरात और आसाम की आग अभी बाकी है ।
बहन प्रज्ञा की एक एक चीखों की कसम ।
तुम से भारत माँ के हर घावों का हिसाब अभी बाकी है ।
भगवा आतंक का आगाज़ अभी बाकी है ।
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मित्रो ! इसे जितना शेयर करेंगे । उतना ही स्वामी जी के जान का खतरा कम होगा । संजय गाँधी, इंदिरा गाँधी, 

राजीव गाँधी, राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया के बाद C.I.A एजेंट सोनिया स्वामी रामदेव को जान से मरवाने की कोशिश में है ।
- अमेरिका खाड़ी देशों के तेल भण्डारों पर कब्जा करने के बाद दुनियां के सबसे बड़े बाजार भारत पर कब्जा करना चाहता है । सोनिया C.I.A  एजेंट है । और मनमोहन सिंह अमेरिका का नौकर । तीनों मिलकर 2014 के बाद भारत को इस्लामिक देश घोषित करेंगे । जिसके विरोध में भारत में गृह युद्ध हो जायेगा । और इसी बात का बहाना लेकर सीरिया, इराक, अफगानिस्तान की तर्ज पर अमेरिका भारत पर हमला करेगा । और अपने कब्जे में ले लेगा । अमेरिका अगर अपने खुद के वजूद को जिन्दा रखना चाहे । तो बस यही 1 रास्ता है । भारत के बाजार पर कब्ज़ा करना । वरना अमेरिका दिवालिया है । इस बात को चीन भली भांति जानता है । चूँकि चीन को भी भारत के बाजार की सख्त जरुरत है । यदि अमेरिका ने भारत पर कब्जा कर लिया । तो चीन अपने आप 50 साल पीछे चला जायेगा । यानी Super Power  बनने का उसका सपना अधूरा रह जायेगा । चीन अर्थ ब्यवस्था को 30% तक भारत के बाजारों ने संभाल रखा है । यहाँ चीन किसी भी कीमत पर भारत के बाजार को खोना नहीं चाहेगा । इसलिए अमेरिका को भारत की और बढने से रोकना चाहता है । क्योंकि इसमें उसका अपना स्वार्थ है । ये बात बिलकुल साफ है कि बंगलादेश और पाकिस्तान की औकात नहीं है । भारत पर हमला करने की । और भारत पर हमला

करने की हिमाकत चीन किसी भी कीमत में नहीं करेगा । भारत पर हमला करके चीन खुद को बर्बाद नहीं करेगा । सिर्फ और सिर्फ अमेरिका से ही खतरा है - भारत को । मित्रो ! भारत का दुर्भाग्य देखिये कि भारत की कीमत अमेरिका और चीन को तो मालूम है । लेकिन खुद भारत के नेतृत्व को नहीं मालूम । भारत को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ कर अमेरिका और चीन आमने सामने है । यहाँ तक कि युद्ध भी लड़ने को तैयार हैं । अमेरिका ने भारत पर 1947 के बाद से ही साजिश रचना शुरु कर दिया था । चूँकि भारत का झुकाव हमेशा रूस के साथ रहा । ये बात हमेशा अमेरिका को खलती रही । इसी कड़ी में सोनिया के बाप को जो KGB ( रुसी ख़ुफ़िया एजेंसी ) और C.I.A  ( अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी ) का डबल एजेंट था, को गिरफ्तार कर मजबूर करके सोनिया को पहले तो C.I.A का एजेंट बनाया । फिर राजीव के सामने परोसा । यहाँ तक कि कूटनीतिक दबाव डालकर राजीव से शादी का ढोंग रचाकर भारत में दाखिल करवाया । अमेरिकी C.I.A की साजिश का पहला शिकार बने - लाल बहादुर शास्त्री । जिन्हें ताशकंद में इंदिरा गाँधी को लालच में फँसाकर रहस्यमय मौत दे दी । अब सोनिया के जरिये C.I.A ने अपना अड्डा 10 जनपथ को बना लिया । और सोनिया से मिलकर संजय गाँधी को इसलिए मार दिया कि संजय की राजनैतिक दखलंदाजी बढ़ गई थी । वो भी अमेरिका विरोधी । सोनिया ने C.I.A से मिलकर खालिस्तानी आतंकवादियों से इंदिरा गाँधी को मरवा दिया । क्योंकि इंदिरा....? से अच्छे रिश्ते की पक्षधर थी । सो उन्हें रास्ते से हटाकर राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया । यूँ भी खालिस्तानी आतंकवादियों की पूरी फंड अमेरिका ही पाकिस्तान के जरिये करता था । अब राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री बनने पर भी अमेरिका का मकसद पूरा नहीं हुआ । राजीव भी सोनिया की हकीकत से वाकिफ थे । इसीलिए कूटनीतिक रूप से रूस को दोस्त बनाये रखना ही उचित समझा । जिसके लिए उनको भी रास्ते से हटा दिया गया । राजीव गाँधी को मारने की सारी साजिश C.I.A और सोनिया ने बनाया । सिर्फ उसे लिट्टे के सदस्यों ने अंजाम तक पहुँचाया । C.I.A ने 

फिर शुरु किया - सोनिया को प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश । लेकिन ऐसा हो न सका । फिर C.I.A ने सोनिया को भारत में स्थापित करने के लिए पूरी ताकत झोक दिया । नरसिंहा राव, देवगौड़ा, गुजराल, और चन्द्रशेखर को आगे करके C.I.A सोनिया के जरिये टट्टू की तलाश में लगी रही । क्योंकि राहुल इस योग्य नहीं थे । इसी दौरान कुछ ऐसे लोगों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी । जो प्रधानमंत्री बनने के सपने पालने की हिमाकत कर बैठे । और उनमें  प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना भी थी । जैसे राजेश पायलट । जिन्हें C.I.A और सोनिया ने 1 बेहद संदिग्ध कार दुर्घटना से मरवा दिया । माधवराव सिंधिया जिसे बिलकुल नए प्लेन को क्रेश करवा कर मरवा दिया । जिनके प्रधानमंत्री बनने की भरपूर सम्भावना थी । C.I.A का मकसद था - मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना । जो पहले से ही अमेरिका के नौकर थे । यहाँ आकर C.I.A अमेरिका और सोनिया को अपने साजिश में कामयाबी मिली । आज भारत पर अमेरिका परोक्ष रूप से शासन कर रहा है । जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूँ । अब भारत की कमान अमेरिका के हाथ में है । जिसे वो छोड़ नहीं सकता । अब 2014 के चुनाव में यदि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना बनती है । तो अमेरिका C.I.A और सोनिया भारत में दंगे करवा देंगे । गृह युद्ध की आग में झोकेंगे । और इसी बहाने से हमला करके भारत पर कब्जा कर लेंगे । और यदि मोदी के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना नहीं बनती है । तो चुनाव के बाद कांग्रेस का शासन आते ही भारत को इस्लामिक देश बनाने की वकालत करेगी - सरकार और सोनिया । हिन्दू ऐसा किसी भी कीमत पर होने नहीं देंगे । परिणाम स्वरूप भारत में गृह युद्ध होगा । और अमेरिका भारत में शांति स्थापित करने के बहाने अपने कब्जे में ले लेगा । मित्रो ! इसकी पूरी तैयारी C.I.A  अमेरिका और सोनिया ने कर ली है । भारत के सारे मीडिया पर अमेरिकी कम्पनियों का कब्जा हो चुका है । बैकिंग ब्यवस्था, उत्पादन और आंतरिक सुरक्षा जैसे बिभागों पर अमेरिका का कब्ज़ा हो चुका है । शिक्षा और स्वास्थ्य पर अमेरिकन मिशनरियों का कब्जा है । अब हम  अमेरिकी गुलामी से बस 1 कदम पीछे है । मित्रो ! हो सके । तो उठो । आगे आओ । और देश को बचा लो । वर्ना.. भारत में गृह युद्ध और अमेरिकी हमले की साजिश जिसे C.I.A एजेंट सोनिया और नौकर मनमोहन ने बनाया है । यदि आप सच्चे भारतीय हैं । देश को बचाना चाहते हैं । तो इसे पूरा पढ़ें । भारत को अमेरिका का गुलाम बनने से बचाना है । तो इसे पूरा पढ़ें । संजय गाँधी, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, माधव राव सिंधिया, राजेश पायलट, इत्यादि नेताओं को C.I.A एजेंट सोनिया गाँधी ने मरवाया था ।
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हल्दी रोग भगाए जल्दी - हल्दी का प्रयोग लगभग सभी प्रकार के खाने में किया जाता है । यह व्यंजनों के स्वाद में तो इजाफा करती ही है । साथ ही इसमें अनेक औषधीय गुण भी होते हैं । त्वचा, पेट और शरीर की कई बीमारियों में हल्दी का प्रयोग किया जाता है । हल्दी के पौधे से मिलने वाली इसकी गांठे ही नहीं । बल्कि इसके पत्ते भी बहुत उपयोगी होते हैं । आइए हम आपको हल्दी के गुणों के बारे में बताते हैं ।
हल्दी का प्रयोग करने से लाभ -
- दाग धब्बे झाईंयां मिटाने के लिए हल्दी बहुत फायदेमंद है । चेहरे पर दाग या झाईंया धब्बे और हटाने के लिए हल्दी और काले तिल को बराबर मात्रा में पीसकर पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं ।
- हल्दी को दूध में मिलाकर इसका पेस्ट बना लीजिए । इस पेस्ट को चेहरे पर लगाने से त्वचा का रंग निखरता है । और आपका चेहरा खिला खिला दिखेगा । 
- लीवर सम्बन्धी समस्याओं में भी इसे बहुत उपयोगी माना जाता है । 
- सर्दी खांसी होने पर दूध में कच्ची हल्दी पाउडर डालकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है ।
- पेट में कीड़े होने पर 1 चम्मच हल्दी पाउडर में थोडा सा नमक मिलाकर रोज सुबह खाली पेट 1 सप्ताह तक ताजा पानी के साथ लेने से कीड़े खत्म हो जाते हैं ।
- खांसी होने पर हल्दी का इस्तेमाल कीजिए । अगर खांसी आने लगे । तो हल्दी की 1 छोटी सी गांठ मुंह में रखकर चूसें । इससे खांसी नहीं आती ।
- अगर त्वचा पर अनचाहे बाल उग आए हों । तो इन बालों को हटाने के लिए हल्दी पाउडर को गुनगुने नारियल तेल में मिलाकर पेस्ट बना लें । अब इस पेस्ट को हाथ पैरों पर लगाएं । ऐसा करने से शरीर के अनचाहे बालों से निजात मिलती है । 
- धूप में जाने के कारण त्वचा अक्सर टैन्ड हो जाती है । टैन्ड त्वचा से निजात पाने के लिए हल्दी पाउडर, बादाम चूर्ण और दही मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाईए । इससे त्वचा का रंग निखर जाता है । और सनबर्न की वजह से काली पड़ी त्वचा भी ठीक हो जाती है । यह 1 तरह से सनस्क्रीन लोशन की तरह काम करता है ।
- मुंह में छाले होने पर गुनगुने पानी में हल्दी पाउडर मिलाकर कुल्ला करें । या हलका गर्म हल्दी पाउडर छालों पर लगाएं । इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं ।
- चोट लगने या मोच होने पर हल्दी बहुत फायदा करती है । मांसपेशियों में खिंचाव या अंदरूनी चोट लगने पर हल्दी का लेप लगाएं । या गर्म दूध में हल्दी पाउडर डालकर पीजिए ।
- हल्दी का प्रयोग करने से खून साफ होता है । जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है । 
- अनियमित माहवारी को नियमित करने के लिए महिलाएं हल्दी का इस्तेमाल कर सकती हैं । 
गुणकारी हल्दी के अलग अलग लाभ उठाने के लिए आपको किसी वैद्य या विशेषज्ञ की शरण में जाने की जरूरत नहीं है । अपने घर पर ही छोटे छोटे प्रयोग कर इसके अलग अलग लाभ उठाए जा सकते हैं ।
साभार - आयुर्वेद संजीवनी
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संता - क्या कांग्रेस को उखाड़ना है ??
बंता - हाँ ! भाई नेस्तनाबूद कर देना है l
संता - तो क्या केवल 1 वोट से उखड़ जाएगी कांग्रेस ??
बंता - हाँ भाई वोट में ही तो ताकत है । 
संता - मतलब सनातन का खून अब पानी हो गया । केवल बटन दबाने के लिए है ? चाह लो तो ये विदेशी इटली वाले अगले दिन भाग जाएंगे । 
बंता - क्या भाई ! मजाक अच्छा करते हो । कल ट्यूशन जाना है । मम्मी के लिए परवल लाना है । पापा की पैन्ट सिलवानी है । बहुत काम है । पकाओ नहीं फ़ालतू में ।

29 सितंबर 2013

कसम से हर लड़के को भुला दूंगी

सबसे पहले तो मैं मियां नवाज़ द्वारा अपने मौन मोहन जी को " देहाती औरत " कहने पर अपनी आपत्ति दर्ज करवाता हूँ । और उसके इस बयान की घोर निंदा करता हूँ । और हाँ मैं यह भी साफ कर दूँ कि मैं उसके बयान की निंदा इसीलिए नहीं करता हूँ । क्योंकि ये मौन मोहन हमारा नेता है । कारण कि ये मौन मोहन हमारा तो क्या किसी भी हिन्दुस्तानी का नहीं । बल्कि सिर्फ माँ बेटे की जोड़ी का ही नेता रह गया है । दरअसल मेरी निंदा का कारण कुछ और ही है । क्योंकि "देहाती औरत" शब्द सुनते ही देहाती औरत से जुडी 1 कहानी मेरे जेहन में याद आ गयी । और उसी समय मुझे ये महसूस हुआ कि मौन मोहन को देहाती औरत कहना सर्वथा अनुपर्युक्त है ।
कहानी कुछ यूँ है कि 1 बार " बरखाक ओबामा " नामक अंग्रेज भारत के 1 देहात ( गांव ) में पहुंचा । और यहाँ के गाँव देखकर उसे बेहद उत्सुकता हुई । गांव के खेत देखने के लिए वह मस्त होकर 1 सुनसान रास्ते से चला जा रहा था । लहराते हुए खेतों को देखते हुए उसे यह ध्यान ही नहीं रहा कि सामने से 1 " देहाती औरत " ( गांव की 1 महिला ) आ रही है । और अपने ही धुन में चलता हुआ बरखाक ओबामा उस देहाती औरत ( महिला ) से टकरा गया । हड़बड़ाहट में वह बरखाक ओबामा उस महिला से माफी मांगते हुए बोला - सॉरी फॉर दे..ट । बरखाक ओबामा के इतना कहते ही उस देहाती औरत ने बरखाक ओबामा को 1 जोरदार तथा झन्नाटेदार थप्पड़ दिया । और कहा -

कुकुरवा सार के.. हरामी.. मुंहझौसा । एक तो हमें टक्कर मार दे ली । और ऊपर से कहत है कि साड़ी फाड़ दे । 
तो ऐसी स्वाभिमानी और गैरतमंद होती है - हमारी देहाती औरतें । जबकि हमारे बेअसर मौन मोहन सिंह को तो कभी पप्पू बकवास करार देता है । तो कभी पत्रकार उसकी खिल्ली उड़ाते हैं ।
फिर भी मौन मोहन बेशर्मी की हदें पार करते हुए अभी तक कुर्सी पर जमे हुए हैं । मानों कि उनके स्वाभिमान को इटली का विदेशी दीमक चाट गया हो । मेरे हिसाब से तो ऐसे बेगैरत को देहाती औरत कहकर हमारे भारत के गाँवों का अपमान करने करने की जगह बार बाला अथवा पप्पू का रामू काका कहना ज्यादा उचित होगा । जय महाकाल ।
कहानी - Rajesh Bhatt
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लूट लियो मेरो दिल को गल्ला ।
ग़ाफ़िल ! मैं तो सेठानी थी । कियो भिखारिन छिन में लल्ला ।
सौंपि दीन्हि तोहे सिगरौ पूँजी । मान बढ़ायो केकर भल्ला ।
जौ जानित हौ निपट स्वारथी । काहे फाँनित आपन जल्ला ।
अब तौ चिरई खेत चूँगि गै । व्यर्थ है मोर मचाइब हल्ला ।
लूटि लियो मेरो दिल को गल्ला ।
साभार - चन्द्रभूषण मिश्रा गाफ़िल ।
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1 ही विकल्प मोदी 1 Hi Vikalp Modi - ETV के चैनल हेड और वरिष्ठ पत्रकार जगदीश चन्द्र ने भी इस बात की पुष्टि कर दी कि नवाज शरीफ ने बरखा दत्त से मनमोहन सिंह को देहाती महिला जैसी चुगलखोर कहा और बरखा 

दत्त इस पर खिलखिलाकर हंस दी थी । उन्होंने कहा कि नाश्ते की टेबल पर नवाज के साथ हामिद मीर और बरखा दत्त थे । बाकी लोग दूसरे टेबल पर थे । बरखा ने ही उनसे पूछा कि - मनमोहन सिंह और ओबामा के मुलाकात पर आपकी क्या टिप्पणी है ? इस पर नवाज शरीफ ने बरखा दत्त से कहा कि - मनमोहन सिंह तो 1 देहाती औरत की तरह हो गये हैं । जो हर बात पर गाँव के सरपंच से जाकर चुगली करती है । इस बात पर हामिद मीर और बरखा दत्त ठहाके मारकर हंस दिए ।
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Height of irritating someone
Boy -  pen है ? Girl - नहीं । थोङी देर बाद.. Boy - pen है ?
Girl - नहीं बोला ना.. Boy -  pen है pen  ?

Girl - नहीं है कमीने..और अबकी बार पूछा तो हथौङे से सर फ़ोङ दूँगी । 
कुछ देर बाद.. Boy - हथौङा है क्या ..?
Girl - नहीं.. Boy - अच्छा तो pen है pen..?
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A guy calls an unknown number..
Guy - Fridge है ? Reply - हाँ है । Guy - चलता है ? Reply - हाँ चलता है । Guy - तो पकङ के रखना वरना भाग जायेगा । 
And he hangs up.. After a while, he calls up again..
Guy - Fridge है ?   This time the person's really angry.
Reply - नहीं है ।
Guy - कहाँ से होगा । बोला था ना । पकङ के रखना । वरना भाग जायेगा ।
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A man in USA sees a dog attacking a gir ! He kicks the dog, it dies ! News papers report - LOCAL HERO SAVES LADY FROM DOG"
Man says - i'm not American .
Report changed - Foreign Hero Saves girl from Dog
Man says - Actually I'm Pakistani
Breaking News - Terrorist killed Innocent Dog which was playing with a girl .
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Heart melting love story .
Boy - I can't marry u. My family is totally against it. 
Girl - Who r they 2 stop u ?  Boy - My wife & 2 kids. 
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White House receptionist to OBAMA - Sir..someone has called up but not speaking anything .
OBAMA - Tell him Namaste ! He must be Manmohan Sing from INDIA
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Dr - कैसे आना हुआ ? Patient - Doctor साहब तबियत ठीक नहीं है ।
Dr - शराब पीते हो ?
Patient - पीता तो हूँ । पर छोटा पैग ही बनाना I'm not feeling well !
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Teacher - How many planets are there ?
Santa - Mercury, Venus, Jupiter वगैरह वगैरह ।
Teacher - और बताओ ? 
Santa - और बस..सब बङिया..एकदम मातारानी की कृपा । आप सुनाओ ?
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कोई 3 अंको की संख्या लें । और उसे 2 बार लिखकर 1 नयी संख्या बनाएँ । अब इस नयी संख्या में क्रमशः 7, 11 व 13 से भाग दें । 
माना वह संख्या 247 इसे 2 बार लिखने से संख्या बनेगी - 247247
अब इसमे 7 से भाग दें - 247247/7 = 35321
अब प्राप्त फल मे पुनः 11 से भाग दें - 35321/11 = 3211
पुनः प्राप्त फल मे 13 से भाग दें -  3211/13 = 247
इसे किसी भी संख्या के लिए दुहरा सकते हैं ।
https://www.facebook.com/aryavedicmaths
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When Life it self is Temporary, then, How it possible that our Problems are Permanent ?
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मुआवजे वाला चेक । बीमा कंपनी के 3 सेल्समैन अपनी अपनी कंपनी की तेज सेवा के बारे में बातें कर रहे थे ।
पहला - हमारी कंपनी की सर्विस इतनी तेज है । आदमी की सोमवार को मौत हुई । और हमारी कंपनी ने बुधवार को ही मुआवजे की सारी रकम उनके घर पहुँचा दी ।
दूसरा - हमारी कंपनी तो मरने की शाम ही आदमी के घर जाकर मुआवजे की सारी रकम दे दी ।
तीसरा - अरे ये तो कुछ भी नहीं । हमारा आफिस बिल्डिंग के 20वें माले पर है । उसी बिल्डिंग में हमारी कंपनी का बीमाकृत व्यक्ति 70 वें माले पर खिड़की साफ करते करते नीचे गिर गया । हमारे आफिस तक पहुँचा । तो हमने उसके मुआवजे वाला चेक उसके हाथ में ही पकड़ा दिया ।
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1 लड़की की दुआ -
कसम से हर लड़के को भुला दूंगी । सब ही की तस्वीर जला दूंगी ।
एक तुम ही रहोगे इस दिल में । बैलेंस डलवा दो तुम्हें दुआ दूंगी । 
admin~taku
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1 पत्रकार - मोदी जी ! आप गुजरात दंगो पर आखिर 1 बार माफी क्यों नहीं मांग लेते । ताकि अल्पसंख्यक लोगों का भी आप पर विश्वास बने ।
श्री नरेंद्र मोदी - भाई ! आप मात्र माफी पर क्यो मुझे छोड़ रहे हो । अगर मैं दोषी प्रमाणित होता हूँ । तो सरे आम चौराहे पर मुझे फांसी पर लटका दो ना । मैं माफी में नहीं सज़ा में विश्वास करता हूँ ।
ये जवाब था - श्री नरेंद्र मोदी का । 1 कांग्रेस परस्त पत्रकार को ।
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Birth is not the beginning,  Death is not the end.

28 सितंबर 2013

मैं नास्तिक क्यों हूँ - भगत सिंह

मैं नास्तिक क्यों हूँ - यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था । और यह 27 Sept 1931 को लाहौर के अखबार " द पीपल " में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगत सिंह ने ईश्वर की उपस्थिति पर अनेक तर्क पूर्ण सवाल खड़े किये हैं । और इस संसार के निर्माण । मनुष्य के जन्म । मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता । उसके शोषण । दुनियाँ में व्याप्त अराजकता और और वर्ग भेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है ।
स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31 के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में कैद थे । वे 1 धार्मिक व्यक्ति थे । जिन्हें यह जानकर बहुत कष्ट हुआ कि भगत सिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है । वे किसी तरह भगत सिंह की काल कोठरी में पहुँचने में सफल हुए । और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की । असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा - प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है । और तुम अहंकारी बन गए हो । जो कि 1 काले पर्दे के तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है । इस टिप्पणी के जवाब में ही भगत सिंह ने यह लेख लिखा ।
1 नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ है । क्या मैं किसी अहंकार के कारण सर्व शक्तिमान, सर्वव्यापी तथा सर्वज्ञानी ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता हूँ ? मेरे कुछ दोस्त शायद ऐसा कहकर मैं उन पर बहुत अधिकार नहीं जमा रहा हूँ । मेरे साथ अपने थोड़े से सम्पर्क में इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये उत्सुक हैं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर कुछ ज़रूरत से ज़्यादा आगे जा रहा हूँ । और मेरे घमण्ड ने कुछ हद तक मुझे इस अविश्वास के लिये उकसाया है । मैं ऐसी कोई शेखी नहीं बघारता कि मैं मानवीय कमज़ोरियों से बहुत ऊपर हूँ । मैं 1 मनुष्य हूँ  । और इससे अधिक कुछ नहीं । कोई भी इससे अधिक होने का दावा नहीं कर सकता । यह कमज़ोरी मेरे अन्दर भी है । अहंकार भी मेरे स्वभाव का अंग है । अपने कामरेडों के बीच मुझे निरंकुश कहा जाता था । यहाँ तक कि मेरे दोस्त श्री बटुकेश्वर कुमार दत्त भी मुझे कभी कभी ऐसा कहते थे । कई मौकों पर स्वेच्छाचारी कह मेरी निन्दा भी की गयी । कुछ दोस्तों को शिकायत है । और गम्भीर रूप से है कि मैं अनचाहे ही अपने विचार उन पर थोपता हूँ । और अपने प्रस्तावों को मनवा लेता हूँ । यह बात कुछ हद तक सही है । इससे मैं इंकार नहीं करता । इसे अहंकार कहा जा सकता है । जहाँ तक अन्य प्रचलित मतों के मुकाबले हमारे अपने मत का सवाल है । मुझे निश्चय ही अपने मत पर गर्व है । लेकिन यह व्यक्तिगत नहीं है । ऐसा हो सकता है कि यह केवल अपने विश्वास के प्रति न्यायोचित गर्व हो । और इसको घमण्ड नहीं कहा जा सकता । घमण्ड तो स्वयं के प्रति अनुचित गर्व की अधिकता है । क्या यह अनुचित गर्व है । जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया ? अथवा इस विषय का खूब सावधानी से अध्ययन करने और उस पर खूब विचार करने के बाद मैंने ईश्वर पर अविश्वास किया ?

मैं यह समझने में पूरी तरह से असफल रहा हूँ कि अनुचित गर्व या वृथा अभिमान किस तरह किसी व्यक्ति के ईश्वर में विश्वास करने के रास्ते में रोड़ा बन सकता है ? किसी वास्तव में महान व्यक्ति की महानता को मैं मान्यता न दूँ । यह तभी हो सकता है । जब मुझे भी थोड़ा ऐसा यश प्राप्त हो गया हो । जिसके या तो मैं योग्य नहीं हूँ । या मेरे अन्दर वे गुण नहीं हैं । जो इसके लिये आवश्यक हैं । यहाँ तक तो समझ में आता है । लेकिन यह कैसे हो सकता है कि 1 व्यक्ति जो ईश्वर में विश्वास रखता हो । सहसा अपने व्यक्तिगत अहंकार के कारण उसमें विश्वास करना बन्द कर दे ? 2 ही रास्ते सम्भव हैं । या तो मनुष्य अपने को ईश्वर का प्रतिद्वन्द्वी समझने लगे । या वह स्वयं को ही ईश्वर मानना शुरू कर दे । इन दोनों ही अवस्थाओं में वह सच्चा नास्तिक नहीं बन सकता । पहली अवस्था में तो वह अपने प्रतिद्वन्द्वी के अस्तित्व को नकारता ही नहीं है । दूसरी अवस्था में भी वह 1 ऐसी चेतना के अस्तित्व को मानता है । जो पर्दे के पीछे से प्रकृति की सभी गतिविधियों का संचालन करती है । मैं तो उस सर्वशक्तिमान परम आत्मा के अस्तित्व से ही इंकार करता हूँ । यह अहंकार नहीं है । जिसने मुझे नास्तिकता के सिद्धांत को ग्रहण करने के लिये प्रेरित किया । मैं न तो 1 प्रतिद्वन्द्वी हूँ । न ही 1 अवतार । और न ही स्वयं परमात्मा । इस अभियोग को अस्वीकार करने के लिये आईए । तथ्यों पर गौर करें । मेरे इन दोस्तों के अनुसार - दिल्ली बम केस और लाहौर षडयन्त्र केस के दौरान मुझे जो अनावश्यक यश मिला । शायद उस कारण मैं वृथाभिमानी हो गया हूँ ।
मेरा नास्तिकतावाद कोई अभी हाल की उत्पत्ति नहीं है । मैंने तो ईश्वर पर विश्वास करना तब छोड़ दिया था । जब मैं 1 अप्रसिद्ध नौजवान था । कम से कम 1 कालेज का विद्यार्थी तो ऐसे किसी अनुचित अहंकार को नहीं पाल पोस सकता । जो उसे नास्तिकता की ओर ले जाये । यद्यपि मैं कुछ अध्यापकों का चहेता था । तथा कुछ अन्य को मैं अच्छा नहीं लगता था । पर मैं कभी भी बहुत मेहनती अथवा पढ़ाकू विद्यार्थी नहीं रहा । अहंकार जैसी भावना में फँसने का कोई मौका ही न मिल सका । मैं तो 1 बहुत लज्जालु स्वभाव का लड़का था । जिसकी भविष्य के बारे में कुछ निराशावादी प्रकृति थी । मेरे बाबा जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ । 1 रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं ? 1 आर्य समाजी और कुछ भी हो । नास्तिक नहीं होता । अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने DAB स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया । और पूरे 1 साल उसके छात्रावास में रहा । वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त में घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था । उन दिनों मैं पूरा भक्त था । बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया । जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है । वह 1 उदारवादी व्यक्ति हैं । उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिये अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली । किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं । उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है । वे मुझे प्रतिदिन पूजा प्रार्थना के लिये प्रोत्साहित करते रहते थे । इस प्रकार से मेरा पालन पोषण हुआ । असहयोग आन्दोलन के दिनों में राष्ट्रीय कालेज में प्रवेश लिया । यहाँ आकर ही मैंने सारी धार्मिक समस्याओं यहाँ तक कि ईश्वर के अस्तित्व के बारे में उदारता पूर्वक सोचना, विचारना तथा उसकी 

आलोचना करना शुरू किया । पर अभी भी मैं पक्का आस्तिक था । उस समय तक मैं अपने लम्बे बाल रखता था । यद्यपि मुझे कभी भी सिख या अन्य धर्मों की पौराणिकता और सिद्धांतों में विश्वास न हो सका था । किन्तु मेरी ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ निष्ठा थी । बाद में मैं क्रान्तिकारी पार्टी से जुड़ा । वहाँ जिस पहले नेता से मेरा सम्पर्क हुआ । वे तो पक्का विश्वास न होते हुए भी ईश्वर के अस्तित्व को नकारने का साहस ही नहीं कर सकते थे । ईश्वर के बारे में मेरे हठ पूर्वक पूछते रहने पर वे कहते - जब इच्छा हो । तब पूजा कर लिया करो । यह नास्तिकता है । जिसमें साहस का अभाव है । दूसरे नेता । जिनके मैं सम्पर्क में आया । पक्के श्रद्धालु आदरणीय कामरेड शचीन्द्र नाथ सान्याल आजकल काकोरी षडयन्त्र केस के सिलसिले में आजीवन कारवास भोग रहे हैं । उनकी पुस्तक " बन्दी जीवन " ईश्वर की महिमा का ज़ोर शोर से गान है । उन्होंने उसमें ईश्वर के ऊपर प्रशंसा के पुष्प रहस्यात्मक वेदान्त के कारण बरसाये हैं । 28 JAN1925 को पूरे भारत में जो " दि रिवोल्यूशनरी " ( क्रान्तिकारी ) पर्चा बाँटा गया था । वह उन्हीं के बौद्धिक श्रम का परिणाम है । उसमें सर्वशक्तिमान और उसकी लीला एवं कार्यों की प्रशंसा की गयी है । मेरा ईश्वर के प्रति अविश्वास का भाव क्रान्तिकारी दल में भी प्रस्फुटित नहीं हुआ था । काकोरी के सभी 4 शहीदों ने अपने अन्तिम दिन भजन प्रार्थना में गुजारे थे । राम प्रसाद " बिस्मिल " 1 रूढ़िवादी आर्य समाजी थे । समाजवाद तथा साम्यवाद में अपने वृहद अध्ययन के बावजूद राजेन लाहड़ी उपनिषद एवं गीता के श्लोकों के उच्चारण की अपनी अभिलाषा को दबा न सके । मैंने उन सबमें सिर्फ 1 ही व्यक्ति को देखा । जो कभी प्रार्थना नहीं करता था । और कहता था - दर्शन शास्त्र मनुष्य की दुर्बलता अथवा ज्ञान के सीमित होने के कारण उत्पन्न होता है । वह भी आजीवन निर्वासन की सजा भोग रहा है । परन्तु उसने भी ईश्वर के अस्तित्व को नकारने की कभी हिम्मत नहीं की ।
इस समय तक मैं केवल 1 रोमांटिक आदर्शवादी क्रान्तिकारी था । अब तक हम दूसरों का अनुसरण करते थे । अब अपने कन्धों पर ज़िम्मेदारी उठाने का समय आया था । यह मेरे क्रान्तिकारी जीवन का 1 निर्णायक बिन्दु था । अध्ययन की पुकार मेरे मन के गलियारों में गूँज रही थी । विरोधियों द्वारा रखे गये तर्कों का सामना करने योग्य बनने के लिये अध्ययन करो । अपने मत के पक्ष में तर्क देने के लिये सक्षम होने के वास्ते पढ़ो । मैंने पढ़ना शुरू कर दिया । इससे मेरे पुराने विचार व विश्वास अदभुत रूप से परिष्कृत हुए । रोमांस की जगह गम्भीर विचारों ने ली ली । न और अधिक रहस्यवाद । न ही अन्धविश्वास । यथार्थवाद हमारा आधार बना । मुझे विश्व क्रान्ति के अनेक आदर्शों के बारे में पढ़ने का खूब मौका मिला । मैंने अराजकतावादी नेता बाकुनिन को पढ़ा । कुछ साम्यवाद के पिता माक्र्स को । किन्तु अधिक लेनिन । त्रात्स्की । व अन्य लोगों को पढ़ा । जो अपने देश में सफलता पूर्वक क्रान्ति लाये थे । ये सभी नास्तिक थे । बाद में मुझे निरलम्ब स्वामी की पुस्तक " सहज ज्ञान " मिली । इसमें रहस्यवादी नास्तिकता थी । 1926 के अन्त तक मुझे इस बात का विश्वास हो गया कि 1 सर्वशक्तिमान परम आत्मा की बात । जिसने बृह्माण्ड का सृजन, दिग्दर्शन और संचालन किया । 1 कोरी बकवास है । मैंने अपने इस अविश्वास को प्रदर्शित किया । मैंने इस विषय पर अपने दोस्तों से बहस की । मैं 1 घोषित नास्तिक हो चुका था ।  MAY 1927 में मैं लाहौर में गिरफ़्तार हुआ । रेलवे पुलिस हवालात में मुझे 1 महीना काटना पड़ा । पुलिस अफ़सरों ने मुझे बताया कि मैं लखनऊ में था । जब वहाँ

काकोरी दल का मुकदमा चल रहा था, कि मैंने उन्हें छुड़ाने की किसी योजना पर बात की थी, कि उनकी सहमति पाने के बाद हमने कुछ बम प्राप्त किये थे कि 1927 में दशहरा के अवसर पर उन बमों में से 1 परीक्षण के लिये भीड़ पर फेंका गया, कि यदि मैं क्रान्तिकारी दल की गतिविधियों पर प्रकाश डालने वाला 1 वक्तव्य दे दूँ । तो मुझे गिरफ़्तार नहीं किया जायेगा । और इसके विपरीत मुझे अदालत में मुखबिर की तरह पेश किये बगैर रिहा कर दिया जायेगा । और इनाम दिया जायेगा । मैं इस प्रस्ताव पर हँसा । यह सब बेकार की बात थी । हम लोगों की भाँति विचार रखने वाले अपनी निर्दोष जनता पर बम नहीं फेंका करते । 1 दिन सुबह CID   के वरिष्ठ अधीक्षक श्री न्यूमन ने कहा कि यदि मैंने वैसा वक्तव्य नहीं दिया । तो मुझ पर काकोरी केस से सम्बन्धित विद्रोह छेड़ने के षडयन्त्र तथा दशहरा उपद्रव में क्रूर हत्याओं के लिये मुकदमा चलाने पर बाध्य होंगे । और कि उनके पास मुझे सजा दिलाने व फाँसी पर लटकवाने के लिये उचित प्रमाण हैं । उसी दिन से कुछ पुलिस अफ़सरों ने मुझे नियम से दोनों समय ईश्वर की स्तुति करने के लिये फुसलाना शुरू किया । पर अब मैं 1 नास्तिक था । मैं स्वयं के लिये यह बात तय करना चाहता था कि क्या शान्ति और आनन्द के दिनों में ही मैं नास्तिक होने का दम्भ भरता हूँ । या ऐसे कठिन समय में भी मैं उन सिद्धान्तों पर अडिग रह सकता हूँ । बहुत सोचने के बाद मैंने निश्चय किया कि किसी भी तरह ईश्वर पर विश्वास तथा प्रार्थना मैं नहीं कर सकता । नहीं । मैंने 1 क्षण के लिये भी नहीं की । यही असली परीक्षण था । और मैं सफल रहा । अब मैं 1 पक्का अविश्वासी था । और तबसे लगातार हूँ । इस परीक्षण पर खरा उतरना आसान काम न था । विश्वास कष्टों को हलका कर देता है । यहाँ तक कि उन्हें सुखकर बना सकता है । ईश्वर में मनुष्य को अत्यधिक सांत्वना देने वाला 1 आधार मिल सकता है । उसके बिना मनुष्य को अपने ऊपर निर्भर करना पड़ता है । तूफ़ान और झंझावात के बीच अपने पाँवों पर खड़ा रहना कोई बच्चों का खेल नहीं है । परीक्षा की इन घड़ियों में अहंकार यदि है । तो भाप बनकर उड़ जाता है । और मनुष्य अपने विश्वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता । यदि ऐसा करता है । तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उसके पास सिर्फ़ अहंकार नहीं । वरन कोई अन्य शक्ति है । आज बिलकुल वैसी ही स्थिति है । निर्णय का पूरा पूरा पता है । 1 सप्ताह के अन्दर ही यह घोषित हो जायेगा कि मैं अपना जीवन 1 ध्येय पर न्योछावर करने जा रहा हूँ । इस विचार के अतिरिक्त और क्या सांत्वना हो सकती है ? ईश्वर में विश्वास रखने वाला हिन्दू पुनर्जन्म पर राजा होने की आशा कर सकता है । 1 मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनन्द की तथा अपने कष्टों और बलिदान के लिये पुरस्कार की कल्पना कर सकता है । किन्तु मैं क्या आशा करूँ ? मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्सी का फ़न्दा मेरी गर्दन पर लगेगा । और मेरे पैरों के नीचे से तख़्ता हटेगा । वह पूर्ण विराम होगा । वह अन्तिम क्षण होगा । मैं या मेरी आत्मा सब वहीं समाप्त हो जायेगी । आगे कुछ न रहेगा । 1 छोटी सी जूझती हुई ज़िन्दगी । जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है । अपने में स्वयं 1 पुरस्कार होगी । यदि मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस हो । बिना किसी स्वार्थ के यहाँ । या यहाँ के बाद पुरस्कार की इच्छा के बिना । मैंने अनासक्त भाव से अपने जीवन को स्वतन्त्रता के ध्येय पर समर्पित कर दिया है । क्योंकि मैं और कुछ कर ही नहीं सकता था । जिस दिन हमें इस मनोवृत्ति के बहुत से पुरुष और महिलाएँ मिल जायेंगे । जो अपने जीवन को मनुष्य की सेवा और पीड़ित मानवता के उद्धार के अतिरिक्त कहीं समर्पित कर ही नहीं सकते । उसी दिन मुक्ति के युग का शुभारम्भ होगा । वे शोषकों, उत्पीड़कों और अत्याचारियों को चुनौती देने के लिये उत्प्रेरित होंगे । इसलिये नहीं कि उन्हें राजा बनना है । या कोई अन्य पुरस्कार प्राप्त करना है । यहाँ । या अगले जन्म में । या मृत्योपरान्त स्वर्ग में । उन्हें तो मानवता की गर्दन से दासता का जुआ उतार फेंकने । और मुक्ति एवं शान्ति स्थापित करने के लिये इस मार्ग को अपनाना होगा । क्या वे उस रास्ते पर चलेंगे । जो उनके अपने लिये ख़तरनाक किन्तु उनकी महान आत्मा के लिये 1 मात्र कल्पनीय रास्ता है । क्या इस महान ध्येय के प्रति उनके गर्व को अहंकार कहकर उसका गलत अर्थ लगाया जायेगा ? कौन इस प्रकार के घृणित विशेषण बोलने का साहस करेगा ? या तो वह मूर्ख है । या धूर्त । हमें चाहिए कि उसे क्षमा कर दें । क्योंकि वह उस हृदय में उद्वेलित उच्च विचारों, भावनाओं, आवेगों तथा उनकी गहराई को महसूस नहीं कर सकता । उसका हृदय मांस के 1 टुकड़े की तरह मृत है । उसकी आँखों पर अन्य स्वार्थों के प्रेतों की छाया पड़ने से वे कमज़ोर हो गयी हैं । स्वयं पर भरोसा रखने के गुण को सदैव अहंकार की संज्ञा दी जा सकती है । यह दुखपूर्ण और कष्टप्रद है । पर चारा ही क्या है ?
आलोचना और स्वतन्त्र विचार 1 क्रान्तिकारी के दोनों अनिवार्य गुण हैं । क्योंकि हमारे पूर्वजों ने किसी परम आत्मा के प्रति विश्वास बना लिया था । अतः कोई भी व्यक्ति जो उस विश्वास को सत्यता या उस परम आत्मा के अस्तित्व को ही चुनौती दे । उसको विधर्मी, विश्वासघाती कहा जायेगा । यदि उसके तर्क इतने अकाट्य हैं कि उनका खण्डन वितर्क द्वारा नहीं हो सकता । और उसकी आस्था इतनी प्रबल है कि उसे ईश्वर के प्रकोप से होने वाली विपत्तियों का भय दिखाकर दबाया नहीं जा सकता । तो उसकी यह कहकर निन्दा की जायेगी कि वह वृथाभिमानी है । यह मेरा अहंकार नहीं था । जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया । मेरे तर्क का तरीका संतोषप्रद सिद्ध होता है । या नहीं । इसका निर्णय मेरे पाठकों को करना है । मुझे नहीं । मैं जानता हूँ कि ईश्वर पर विश्वास ने आज मेरा जीवन आसान और मेरा बोझ हलका कर दिया होता । उस पर मेरे अविश्वास ने सारे वातावरण को अत्यन्त शुष्क बना दिया है । थोड़ा सा रहस्यवाद इसे कवित्वमय बना सकता है । किन्तु मेरे भाग्य को किसी उन्माद का सहारा नहीं चाहिए । मैं यथार्थवादी हूँ । मैं अन्तः प्रकृति पर विवेक की सहायता से विजय चाहता हूँ । इस ध्येय में मैं सदैव सफल नहीं हुआ हूँ । प्रयास करना मनुष्य का कर्तव्य है । सफलता तो संयोग तथा वातावरण पर निर्भर है । कोई भी मनुष्य, जिसमें तनिक भी विवेक शक्ति है । वह अपने वातावरण को तार्किक रूप से समझना चाहेगा । जहाँ सीधा प्रमाण नहीं है । वहाँ दर्शन शास्त्र का महत्व है । जब हमारे पूर्वजों ने फुरसत के समय विश्व के रहस्य को । इसके भूत, वर्तमान एवं भविष्य को । इसके क्यों और कहाँ से को समझने का प्रयास किया । तो सीधे परिणामों के कठिन अभाव में हर व्यक्ति ने इन प्रश्नों को अपने ढ़ंग से हल किया । यही कारण है कि विभिन्न धार्मिक मतों में हमको इतना अन्तर मिलता है । जो कभी कभी वैमनस्य तथा झगड़े का रूप ले लेता है । न केवल पूर्व और पश्चिम के दर्शनों में मतभेद है । बल्कि प्रत्येक गोलार्ध के अपने विभिन्न मतों में आपस में अन्तर है । पूर्व के धर्मों में, इस्लाम तथा हिन्दू धर्म में ज़रा भी अनुरूपता नहीं है । भारत में ही बौद्ध तथा जैन धर्म उस ब्राह्मणवाद से बहुत अलग है । जिसमें स्वयं आर्य समाज व सनातन धर्म जैसे विरोधी मत पाये जाते हैं । पुराने समय का 1 स्वतन्त्र विचारक चार्वाक है । उसने ईश्वर को पुराने समय में ही चुनौती दी थी । हर व्यक्ति अपने को सही मानता है । दुर्भाग्य की बात है कि बजाय पुराने विचारकों के अनुभवों तथा विचारों को भविष्य में अज्ञानता के विरुद्ध लड़ाई का आधार बनाने के हम आलसियों की तरह, जो हम सिद्ध हो चुके हैं । उनके कथन में अविचल एवं संशयहीन विश्वास की चीख पुकार करते रहते हैं । और इस प्रकार मानवता के विकास को जड़ बनाने के दोषी हैं ।
सिर्फ विश्वास और अन्ध विश्वास ख़तरनाक है । यह मस्तिष्क को मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है । जो मनुष्य अपने को यथार्थवादी होने का दावा करता है । उसे समस्त प्राचीन रूढ़िगत विश्वासों को चुनौती देनी होगी । प्रचलित मतों को तर्क की कसौटी पर कसना होगा । यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके । तो टुकड़े टुकड़े होकर गिर पड़ेगा । तब नये दर्शन की स्थापना के लिये उनको पूरा धराशायी करके जगह साफ करना । और पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग करके पुनर्निमाण करना । मैं प्राचीन विश्वासों के ठोसपन पर प्रश्न करने के सम्बन्ध में आश्वस्त हूँ । मुझे पूरा विश्वास है कि 1 चेतन परम आत्मा का । जो प्रकृति की गति का दिग्दर्शन एवं संचालन करता है । कोई अस्तित्व नहीं है । हम प्रकृति में विश्वास करते हैं । और समस्त प्रगतिशील आन्दोलन का ध्येय मनुष्य द्वारा अपनी सेवा के लिये प्रकृति पर विजय प्राप्त करना मानते हैं । इसको दिशा देने के पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है । यही हमारा दर्शन है । हम आस्तिकों से कुछ प्रश्न करना चाहते हैं ।  यदि आपका विश्वास है कि 1 सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी ईश्वर है । जिसने विश्व की रचना की । तो कृपा करके मुझे यह बतायें कि उसने यह रचना क्यों की ? कष्टों और संतापों से पूर्ण दुनिया । असंख्य दुखों के शाश्वत अनन्त गठबन्धनों से ग्रसित । 1 भी व्यक्ति तो पूरी तरह संतृष्ट नही है । कृपया यह न कहें कि यही उसका नियम है । यदि वह किसी नियम से बँधा है । तो वह सर्वशक्तिमान नहीं है । वह भी हमारी ही तरह नियमों का दास है । कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका मनोरंजन है । नीरो ने बस 1 रोम जलाया था । उसने बहुत थोड़ी संख्या में लोगों की हत्या की थी । उसने तो बहुत थोड़ा दुख पैदा किया । अपने पूर्ण मनोरंजन के लिये । और उसका इतिहास में क्या स्थान है ? उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते हैं ? सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाये जाते हैं । पन्ने उसकी निन्दा के वाक्यों से काले पुते हैं । भर्त्सना करते है । नीरो 1 हृदयहीन, निर्दयी, दुष्ट । 1 चंगेज खाँ ने अपने आनन्द के लिये कुछ हजार जानें ले लीं । और आज हम उसके नाम से घृणा करते हैं । तब किस प्रकार तुम अपने ईश्वर को न्यायोचित ठहराते हो ? उस शाश्वत नीरो को, जो हर दिन, हर घण्टे ओर हर मिनट असंख्य दुख देता रहा । और अभी भी दे रहा है । फिर तुम कैसे उसके दुष्कर्मों का पक्ष लेने की सोचते हो । जो चंगेज खाँ से प्रत्येक क्षण अधिक है ? क्या यह सब बाद में इन निर्दोष कष्ट सहने वालों को पुरस्कार और गलती करने वालों को दण्ड देने के लिये हो रहा है ? ठीक है । ठीक है । तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे । जो हमारे शरीर पर घाव करने का साहस इसलिये करता है कि बाद में मुलायम और आरामदायक मलहम लगायेगा ? ग्लैडिएटर संस्था के व्यवस्थापक कहाँ तक उचित करते थे कि 1 भूखे ख़ूंखार शेर के सामने मनुष्य को फेंक दो कि, यदि वह उससे जान बचा लेता है । तो उसकी खूब देखभाल की जायेगी ? इसलिये मैं पूछता हूँ कि उस चेतन परम आत्मा ने इस विश्व और उसमें मनुष्यों की रचना क्यों की ? आनन्द लूटने के लिये ? तब उसमें और नीरो में क्या फर्क है ?
तुम मुसलमानो और ईसाईयो । तुम तो पूर्वजन्म में विश्वास नहीं करते । तुम तो हिन्दुओं की तरह यह तर्क पेश नहीं कर सकते कि प्रत्यक्षतः निर्दोष व्यक्तियों के कष्ट उनके पूर्वजन्मों के कर्मों का फल है । मैं तुमसे पूछता हूँ कि उस सर्वशक्तिशाली ने शब्द द्वारा विश्व के उत्पत्ति के लिये 6 दिन तक क्यों परिश्रम किया ? और प्रत्येक दिन वह क्यों कहता है कि सब ठीक है ? बुलाओ उसे आज । उसे पिछला इतिहास दिखाओ । उसे आज की परिस्थितियों का अध्ययन करने दो । हम देखेंगे कि क्या वह कहने का साहस करता है कि सब ठीक है । कारावास की काल कोठरियों से लेकर झोपड़ियों की बस्तियों तक भूख से तड़पते लाखों इन्सानों से लेकर उन शोषित मज़दूरों से लेकर जो पूँजीवादी पिशाच द्वारा खून चूसने की क्रिया को धैर्य पूर्वक निरुत्साह से देख रहे हैं । तथा उस मानव शक्ति की बर्बादी देख रहे हैं । जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति, जिसे तनिक भी सहज ज्ञान है । भय से सिहर उठेगा । और अधिक उत्पादन को ज़रूरतमन्द लोगों में बाँटने के बजाय समुद्र में फेंक देना बेहतर समझने से लेकर राजाओं के उन महलों तक जिनकी नींव मानव की हड्डियों पर पड़ी है । उसको यह सब देखने दो । और फिर कहें - सब कुछ ठीक है । क्यों और कहाँ से ? यही मेरा प्रश्न है । तुम चुप हो । ठीक है । तो मैं आगे चलता हूँ ।
और तुम हिन्दुओ । तुम कहते हो कि आज जो कष्ट भोग रहे हैं । ये पूर्व जन्म के पापी हैं । और आज के उत्पीड़क पिछले जन्मों में साधु पुरुष थे । अतः वे सत्ता का आनन्द लूट रहे हैं । मुझे यह मानना पड़ता है कि आपके पूर्वज बहुत चालाक व्यक्ति थे । उन्होंने ऐसे सिद्धांत गढ़े, जिनमें तर्क और अविश्वास के सभी प्रयासों को विफल करने की काफ़ी ताकत है । न्याय शास्त्र के अनुसार दण्ड को अपराधी पर पड़ने वाले असर के आधार पर केवल 3 कारणों से उचित ठहराया जा सकता है । वे हैं - प्रतिकार । भय तथा सुधार । आज सभी प्रगतिशील विचारकों द्वारा प्रतिकार के सिद्धांत की निन्दा की जाती है । भयभीत करने के सिद्धांत का भी अन्त वहीं है । सुधार करने का सिद्धांत ही केवल आवश्यक है । और मानवता की प्रगति के लिये अनिवार्य है । इसका ध्येय अपराधी को योग्य और शान्तिप्रिय नागरिक के रूप में समाज को लौटाना है । किन्तु यदि हम मनुष्यों को अपराधी मान भी लें । तो ईश्वर द्वारा उन्हें दिये गये दण्ड की क्या प्रकृति है ? तुम कहते हो । वह उन्हें गाय, बिल्ली, पेड़, जड़ी बूटी या जानवर बनाकर पैदा करता है । तुम ऐसे 84 लाख दण्डों को गिनाते हो । मैं पूछता हूँ कि मनुष्य पर इनका सुधारक के रूप में क्या असर है ? तुम ऐसे कितने व्यक्तियों से मिले हो । जो यह कहते हैं कि वे किसी पाप के कारण पूर्व जन्म में गधा के रूप में पैदा हुए थे ? 1 भी नहीं ? अपने पुराणों से उदाहरण न दो । मेरे पास तुम्हारी पौराणिक कथाओं के लिए कोई स्थान नहीं है । और फिर क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है । गरीबी 1 अभिशाप है । यह 1 दण्ड है । मैं पूछता हूँ कि दण्ड प्रक्रिया की कहाँ तक प्रशंसा करें । जो अनिवार्यतः मनुष्य को और अधिक अपराध करने को बाध्य करे ? क्या तुम्हारे ईश्वर ने यह नहीं सोचा था । या उसको भी ये सारी बातें मानवता द्वारा अकथनीय कष्टों के झेलने की कीमत पर अनुभव से सीखनी थीं ? तुम क्या सोचते हो । किसी गरीब या अनपढ़ परिवार, जैसे 1 चमार या मेहतर के यहाँ पैदा होने पर इंसान का क्या भाग्य होगा ? चूँकि वह गरीब है । इसलिये पढ़ाई नहीं कर सकता । वह अपने साथियों से तिरस्कृत एवं परित्यक्त रहता है । जो ऊँची जाति में पैदा होने के कारण अपने को ऊँचा समझते हैं । उसका अज्ञान, उसकी गरीबी तथा उससे किया गया व्यवहार उसके हृदय को समाज के प्रति निष्ठुर बना देते हैं । यदि वह कोई पाप करता है । तो उसका फल कौन भोगेगा ? ईश्वर । वह स्वयं । या समाज के मनीषी ? और उन लोगों के दण्ड के बारे में क्या होगा । जिन्हें दम्भी ब्राह्मणों ने जानबूझ कर अज्ञानी बनाये रखा । तथा जिनको तुम्हारी ज्ञान की पवित्र पुस्तकों वेदों के कुछ वाक्य सुन लेने के कारण कान में पिघले सीसे की धारा सहन करने की सजा भुगतनी पड़ती थी ? यदि वे कोई अपराध करते हैं । तो उसके लिये कौन ज़िम्मेदार होगा ? और उनका प्रहार कौन सहेगा ? मेरे प्रिय दोस्तों । ये सिद्धांत विशेषाधिकार युक्त लोगों के आविष्कार हैं । ये अपनी हथियाई हुई शक्ति, पूँजी तथा उच्चता को इन सिद्धांतों के आधार पर सही ठहराते हैं । अपटान सिंक्लेयर ने लिखा था - मनुष्य को बस अमरत्व में विश्वास दिला दो । और उसके बाद उसकी सारी सम्पत्ति लूट लो । वह बगैर बड़बड़ाये इस कार्य में तुम्हारी सहायता करेगा । धर्म के उपदेशकों तथा सत्ता के स्वामियों के गठबन्धन से ही जेल, फाँसी, कोड़े और ये सिद्धांत उपजते हैं ।
मैं पूछता हूँ । तुम्हारा सर्वशक्तिशाली ईश्वर हर व्यक्ति को क्यों नहीं उस समय रोकता है । जब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है ? यह तो वह बहुत आसानी से कर सकता है । उसने क्यों नहीं लड़ाकू राजाओं की लड़ने की उग्रता को समाप्त किया । और इस प्रकार विश्व युद्ध द्वारा मानवता पर पड़ने वाली विपत्तियों से उसे बचाया ? उसने अंग्रेजों के मस्तिष्क में भारत को मुक्त कर देने की भावना क्यों नहीं पैदा की ? वह क्यों नहीं पूँजीपतियों के हृदय में यह परोपकारी उत्साह भर देता कि वे उत्पादन के साधनों पर अपना व्यक्तिगत सम्पत्ति का अधिकार त्याग दें । और इस प्रकार केवल सम्पूर्ण श्रमिक समुदाय, वरन समस्त मानव समाज को पूँजीवादी बेड़ियों से मुक्त करें ? आप समाजवाद की व्यावहारिकता पर तर्क करना चाहते हैं । मैं इसे आपके सर्वशक्तिमान पर छोड़ देता हूँ कि वह लागू करे । जहाँ तक सामान्य भलाई की बात है । लोग समाजवाद के गुणों को मानते हैं । वे इसके व्यावहारिक न होने का बहाना लेकर इसका विरोध करते हैं । परमात्मा को आने दो । और वह चीज को सही तरीके से कर दे । अंग्रेजों की हुकूमत यहाँ इसलिये नहीं है कि - ईश्वर चाहता है । बल्कि इसलिये कि उनके पास ताकत है । और हममें उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं । वे हमको अपने प्रभुत्व में ईश्वर की मदद से नहीं रखे हैं । बल्कि बन्दूकों, राइफलों, बम और गोलियों, पुलिस और सेना के सहारे । यह हमारी उदासीनता है कि वे समाज के विरुद्ध सबसे निन्दनीय अपराध । 1 राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र द्वारा अत्याचार पूर्ण शोषण । सफलता पूर्वक कर रहे हैं । कहाँ है ईश्वर ? क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मज़ा ले रहा है ? 1 नीरो । 1 चंगेज । उसका नाश हो ।
क्या तुम मुझसे पूछते हो कि मैं इस विश्व की उत्पत्ति तथा मानव की उत्पत्ति की व्याख्या कैसे करता हूँ ? ठीक है । मैं तुम्हें बताता हूँ । चार्ल्स डार्विन ने इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने की कोशिश की है । उसे पढ़ो । यह 1 प्रकृति की घटना है । विभिन्न पदार्थों के, नीहारिका के आकार में । आकस्मिक मिश्रण से पृथ्वी बनी । कब ? इतिहास देखो । इसी प्रकार की घटना से जन्तु पैदा हुए । और 1 लम्बे दौर में मानव । डार्विन की " जीव की उत्पत्ति " पढ़ो । और तदुपरान्त सारा विकास मनुष्य द्वारा प्रकृति के लगातार विरोध और उस पर विजय प्राप्त करने की चेष्टा से हुआ । यह इस घटना की सम्भवतः सबसे सूक्ष्म व्याख्या है ।
तुम्हारा दूसरा तर्क यह हो सकता है कि क्यों 1 बच्चा अंधा या लंगड़ा पैदा होता है ? क्या यह उसके पूर्व जन्म में किये गये कार्यों का फल नहीं है ? जीव विज्ञान वेत्ताओं ने इस समस्या का वैज्ञानिक समाधान निकाल लिया है । अवश्य ही तुम 1 और बचकाना प्रश्न पूछ सकते हो । यदि ईश्वर नहीं है । तो लोग उसमें विश्वास क्यों करने लगे ? मेरा उत्तर सूक्ष्म तथा स्पष्ट है । जिस प्रकार वे प्रेतों तथा दुष्ट आत्माओं में विश्वास करने लगे । अन्तर केवल इतना है कि ईश्वर में विश्वास विश्वव्यापी है । और दर्शन अत्यन्त विकसित । इसकी उत्पत्ति का श्रेय उन शोषकों की प्रतिभा को है । जो परमात्मा के अस्तित्व का उपदेश देकर लोगों को अपने प्रभुत्व में रखना चाहते थे । तथा उनसे अपनी विशिष्ट स्थिति का अधिकार एवं अनुमोदन चाहते थे । सभी धर्म, सम्प्रदाय, पन्थ और ऐसी अन्य संस्थाएँ अन्त में निर्दयी और शोषक संस्थाओं, व्यक्तियों तथा वर्गों की समर्थक हो जाती हैं । राजा के विरुद्ध हर विद्रोह हर धर्म में सदैव ही पाप रहा है ।
मनुष्य की सीमाओं को पहचानने पर । उसकी दुर्बलता व दोष को समझने के बाद । परीक्षा की घड़ियों में मनुष्य को बहादुरी से सामना करने के लिये उत्साहित करने । सभी ख़तरों को पुरुषत्व के साथ झेलने तथा सम्पन्नता एवं ऐश्वर्य में उसके विस्फोट को बाँधने के लिये ईश्वर के काल्पनिक अस्तित्व की रचना हुई । अपने व्यक्तिगत नियमों तथा अभिभावकीय उदारता से पूर्ण ईश्वर की बढ़ा चढ़ा कर कल्पना एवं चित्रण किया गया । जब उसकी उग्रता तथा व्यक्तिगत नियमों की चर्चा होती है । तो उसका उपयोग 1 भय दिखाने वाले के रूप में किया जाता है । ताकि कोई मनुष्य समाज के लिये ख़तरा न बन जाये । जब उसके अभिभावक गुणों की व्याख्या होती है । तो उसका उपयोग 1 पिता, माता, भाई, बहन, दोस्त तथा सहायक की तरह किया जाता है । जब मनुष्य अपने सभी दोस्तों द्वारा विश्वासघात तथा त्याग देने से अत्यन्त कलेश में हो । तब उसे इस विचार से सान्त्वना मिल सकती है कि 1 सदा सच्चा दोस्त उसकी सहायता करने को है । उसको सहारा देगा । तथा वह सर्वशक्तिमान है । और कुछ भी कर सकता है । वास्तव में आदिम काल में यह समाज के लिये उपयोगी था । पीड़ा में पड़े मनुष्य के लिये ईश्वर की कल्पना उपयोगी होती है । समाज को इस विश्वास के विरुद्ध लड़ना होगा । मनुष्य जब अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करता है । तथा यथार्थवादी बन जाता है । तब उसे श्रद्धा को 1 ओर फेंक देना चाहिए । और उन सभी कष्टों, परेशानियों का पुरुषत्व के साथ सामना करना चाहिए । जिनमें परिस्थितियाँ उसे पटक सकती हैं । यही आज मेरी स्थिति है । यह मेरा अहंकार नहीं है । मेरे दोस्त ! यह मेरे सोचने का तरीका है । जिसने मुझे नास्तिक बनाया है । ईश्वर में विश्वास और रोज़ ब रोज़ की प्रार्थना को मैं मनुष्य के लिये सबसे स्वार्थी और गिरा हुआ काम मानता हूँ । मैंने उन नास्तिकों के बारे में पढ़ा है । जिन्होंने सभी विपदाओं का बहादुरी से सामना किया । अतः मैं भी 1 पुरुष की भाँति फाँसी के फन्दे की अन्तिम घड़ी तक सिर ऊँचा किये खड़ा रहना चाहता हूँ ।
हमें देखना है कि मैं कैसे निभा पाता हूँ । मेरे 1 दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा । जब मैंने उसे नास्तिक होने की बात बतायी । तो उसने कहा - अपने अन्तिम दिनों में तुम विश्वास करने लगोगे ।  मैंने कहा - नहीं । प्यारे दोस्त । ऐसा नहीं होगा । मैं इसे अपने लिये अपमानजनक तथा भ्रष्ट होने की बात समझाता हूँ । स्वार्थी कारणों से मैं प्रार्थना नहीं करूँगा । पाठकों और दोस्तों । क्या यह अहंकार है ? अगर है । तो मैं स्वीकार करता हूँ ।

Date Written - 1931  Author - Bhagat Singh
Title - Why I Am An Atheist ( मैं नास्तिक क्यों हूँ )
First Published: Baba Randhir Singh, a freedom fighter, was in Lahore Central Jail in 1930-31. He was a God-fearing religious man. It pained him to learn that Bhagat Singh was a non-believer. He somehow managed to see Bhagat Singh in the condemned cell and tried to convince him about the existence of God, but failed. Baba lost his temper and said tauntingly  - You are giddy with fame and have developed and ago which is standing like a black curtain between you and the God. It was in reply to that remark that Bhagat Singh wrote this article. First appeared in The People, Lahore on September 2, 1931
साभार -
http://www.marxists.org/hindi/bhagat-singh/1931/main-nastik-kyon-hoon.htm

27 सितंबर 2013

Theory of Everything - Time Machine

क्या समय यात्रा संभव है ? एच जी वेल्स के उपन्यास " द टाइम मशीन " में नायक 1 विशेष कुर्सी पर बैठता है । जिस पर कुछ जलते बुझते बल्ब लगे होते हैं । कुछ डायल होते हैं । नायक डायल सेट करता है । कुछ बटन दबाता है । और अपने आपको भविष्य के हज़ारों वर्षों बाद में पाता है । समय यान Time Machine  - 2002 में बनी हालीवुड की फिल्म में दिखाया समय यान उस समय तक इंगलैंड नष्ट हो चुका होता है । और वहाँ पर मार्लाक और एलोई नामक नये प्राणियों का निवास होता है । यह विज्ञान फतांसी की 1 महान कथा है । लेकिन वैज्ञानिकों ने समय यात्रा की कल्पना या अवधारणा पर कभी विश्वास नहीं किया है । उनके अनुसार यह सनकी, रहस्यवादी और धूर्तों के कार्य क्षेत्र की अवधारणा है । उनके पास ऐसा मानने के लिये ठोस कारण भी है । लेकिन क्वांटम गुरुत्व Quantum Gravity   में आश्चर्यजनक रूप से प्रगति इस अवधारणा की चूलों को हिला रही है ।  समय यात्रा की अवधारणा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा इससे जुङी पहेलियों जैसे ढेर सारे विरोधाभास Paradox  है ।
विरोधाभास 1 - इस उदाहरण के अनुसार कोई व्यक्ति बिना माता पिता के भी हो सकता है । क्या होगा । जब कोई व्यक्ति भूतकाल में जाकर अपने पैदा होने से पहले अपने माता पिता की हत्या कर दे ? प्रश्न यह है कि यदि 

उसके माता पिता उसके जन्म से पहले ही मर गये । तो उनकी हत्या करने के लिये वह व्यक्ति पैदा कैसे हुआ ?
विरोधाभास 2 - यह ऐसा विरोधाभास है । जिसमें 1 व्यक्ति का कोई भूतकाल नहीं है । उदाहरण के लिये मान लेते हैं कि 1 युवा आविष्कारक अपने गैराज में बैठकर समय यान मशीन बनाने की कोशिश कर रहा है । अचानक 1 वृद्ध व्यक्ति उसके सामने प्रकट होता है । और उसे समय यान बनाने की विधि देकर अदृश्य हो जाता है । युवा आविष्कारक समय यात्रा से प्राप्त जानकारियों से शेयर मार्केट, घुड़दौड़, खेलों के सट्टे से काफी सारा पैसा कमाकर अरबपति बन जाता है । जब वह बूढ़ा हो जाता है । तब वह समय यात्रा कर भूतकाल में जाकर अपनी ही युवावस्था को समय यान बनाने की विधि देकर आता है । प्रश्न यह है कि समय यान बनाने की विधि कहाँ से आयी ?
विरोधाभास 3 - इस विरोधाभास मे 1 व्यक्ति अपनी ही माता है । " जेन " को 1 अनाथालय में 1 अजनबी छोड़ गया था । जब जेन युवा होती है । उसकी मुलाकात 1 अजनबी से होती है । उस अजनबी के संसर्ग से जेन गर्भवती हो जाती है । उस समय 1 दुर्घटना घटती है । जेन 1 बच्ची को जन्म देते समय मरते मरते बचती है । लेकिन बच्ची का रहस्यमय तरीके से अपहरण हो जाता है । जेन की जान बचाते समय डाक्टरों को पता चलता है कि जेन के पुरुष और महिला दोनों जननांग है । डाक्टर जेन को बचाने के लिये उसे पुरुष बना देते हैं । अब जेन बन जाती है - जिम । इसके बाद जिम शराबी बन जाता है । 1 दिन उसे भटकते हुये 1 शराबख़ाने में 1 बार टेंडर मिलता है । जो कि 1 समय यात्री होता है । जिम उस समय यात्री के साथ भूतकाल में जाता है । वहाँ उसकी मुलाकात 1 लड़की से होती है । वह लड़की जिम के संसर्ग में गर्भवती हो जाती है । और 1 बच्ची को जन्म देती है । अपराध बोध में जिम उस नवजात बच्ची का अपहरण कर उसे 1 अनाथालय में छोड़ देता है । बाद में जिम समय यात्रियों के दल में शामिल हो जाता है । और भटकती जिन्दगी जीता है । कुछ वर्षों बाद उसे 1 दिन उसे 

सपना आता है कि उसे बार टेंडर बनकर भूतकाल में 1 जिम नाम के शराबी से मिलना है । प्रश्न - जेन की मां, पिता, भाई, बहन, दादा, दादी, बेटा, बेटी, नाती, पोते कौन हैं ?
इन्हीं सभी विरोधाभासों के चलते समय यात्रा को असंभव माना जाता रहा है । न्यूटन ने समय को 1 बाण के जैसा माना था । जिसे 1 बार छोड़ दिया । तब वह 1 सीधी रेखा मे चलता जाता है । पृथ्वी पर 1 सेकंड, मंगल पर 1 सेकंड के बराबर था । बृह्मांड मे फैली हुयी घङियां 1 गति से चलती थी । आइंस्टाइन ने 1 नयी क्रांतिकारी अवधारणा को जन्म दिया । उनके अनुसार समय 1 नदी के प्रवाह के जैसे है । जो सितारों आकाश गंगाओं के घुमावों से बहता है । इसकी गति इन पिंडो के पास से बहते हुये कम ज्यादा होती रहती है । पृथ्वी पर 1 सेकंड । मंगल 1 एक सेकंड के बराबर नही है । बृह्मांड मे फैली हुयी घङियां अपनी अपनी गति से चलती हैं । आइंस्टाइन की मृत्यु से पहले उन्हे 1 समस्या का सामना करना पडा था । आइंस्टाइन के प्रिन्स्टन के पड़ोसी कर्ट गोएडल ( जो शायद पिछले 500 वर्षो के सर्वश्रेष्ठ गणितिय तर्क शास्त्री है ) ने आइंस्टाइन के समीकरणों का 1 ऐसा हल निकाला । जो समय यात्रा को संभव बनाता था । समय की इस नदी के प्रवाह में अब कुछ भंवर आ गये थे । जहाँ समय 1 वृत्त में चक्कर लगाता था । गोयेडल का हल शानदार था । वह हल 1 ऐसे बृह्मांड की कल्पना करता था । जो 1 घूर्णन करते हुये द्रव से भरा है । कोई भी इस द्रव के घूर्णन की दिशा में चलता जायेगा । अपने आपको प्रारंभिक बिन्दु पर पायेगा । लेकिन भूतकाल में ।
अपने वृतांत में आइंस्टाइन ने लिखा है कि वे अपने समीकरणों के हल में समय यात्रा की संभावना से परेशान हो गये थे । लेकिन उन्होंने बाद में निष्कर्ष निकाला कि बृह्मांड घूर्णन नहीं करता है । वह अपना विस्तार करता है ( महाविस्फोट - Big Bang Theory )  इस कारण गोएडल के हल को माना नहीं जा सकता । स्वाभाविक है कि यदि बृह्मांड घूर्णन करता होता । तब समय यात्रा सारे बृह्मांड में संभव होती ।
1963 में न्यूजीलैंड के 1 गणितज्ञ राय केर ने घूर्णन करते हुए ब्लैक होल के लिये आइंस्टाइन के समीकरणों का हल निकाला । इस हल के कुछ विचित्र गुण धर्म थे । इसके अनुसार घूर्णन करता हुआ ब्लैक होल 1 बिन्दु के रूप मे संकुचित न होकर 1 न्यूट्रान के घुमते हुये वलय के रूप में होगा । यह वलय इतनी तेजी से घूर्णन करेगा कि 

अपकेन्द्री बल centrifugal force  इसे 1 बिन्दु के रूप में संकुचित नहीं होने देगा । यह वलय 1 तरह से एलीस के दर्पण के जैसे होगा । इस वलय में से जाने वाला यात्री मरेगा नहीं । बल्कि 1 दूसरे बृह्मांड में चला जायेगा । इसके पश्चात आइंस्टाइन के समीकरणों के ऐसे सैंकड़ों हल खोजे जा चुके हैं । जो समय यात्रा या अंतरिक्षीय सूराख़ों Worm holes  की कल्पना करते हैं ।
अंतरिक्षिय सूराख Worm   hole -    ये अंतरिक्षीय सूराख न केवल अंतरिक्ष के 2 स्थानों को जोड़ते हैं । बल्कि 2 समय क्षेत्रों को भी जोड़ते हैं । तकनीकी रूप से इन्हें समय यात्रा के लिये प्रयोग किया जा सकता है । हाल ही में क्वांटम सिद्धांत में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को जोड़ने के जो प्रयास हुये हैं । ऊपर दिये गये विरोधाभासों के बारे में कुछ और जानकारी दी है । क्वांटम भौतिकी में किसी भी वस्तु की 1 से ज्यादा अवस्था हो सकती है । उदाहरण के लिये 1 इलेक्ट्रान 1 समय में 1 से ज्यादा कक्षा में हो सकता है ( इसी तथ्य पर ही सारे रासायनिक सिद्धांत आधारित हैं ) । क्वांटम भौतिकी के अनुसार स्क्राडीन्गर की बिल्ली 1 साथ 2 अवस्था में हो सकती है । जीवित और मृत । इस सिद्धांत के अनुसार भूतकाल में जाकर उसमें परिवर्तन करने पर जो परिवर्तन होंगे । उससे 1 समानांतर बृह्माण्ड बनेगा। मौलिक बृह्माण्ड वैसा ही रहेगा ।
यदि हम भूतकाल में जाकर महात्मा गांधी को बचाते हैं । तब हम किसी और के भूतकाल को बचा रहे होंगे । हमारे गांधी फिर भी मृत ही रहेंगे । महात्मा गांधी को हत्यारे से बचाने पर बृह्माण्ड 2 हिस्सो में बंट जायेगा । 1 बृह्मांड जहाँ गाधींजी की हत्या नहीं हुयी होगी । दूसरा हमारा मौलिक बृह्मांड । जहाँ गांधीजी की हत्या हुयी है । इसका मतलब यह नहीं कि हम एच जी वेल्स के समय यान में प्रवेश कर समय यात्रा कर सकते हैं । अभी भी कई रोड़े हैं ।
पहली मुख्य समस्या है - ऊर्जा । 1 कार के लिये जिस तरह पेट्रोल चाहिये । उसी तरह समय यान के लिये काफी सारी मात्रा में ऊर्जा चाहिये । इतनी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त करने के लिये हमें किसी तारे की सम्पूर्ण ऊर्जा का उपयोग करने के तरीके सीखने होंगे । या असाधारण पदार्थ जैसे ऋणात्मक पदार्थ Negative Matter  (  ऐसा पदार्थ जो गुरुत्वाकर्षण से ऊपर जाये । नीचे ना गिरे ) खोजना होगा । या ऋणात्मक ऊर्जा Negative Energy  का स्रोत खोजना होगा । ( ऐसा माना जाता था कि ऋणात्मक ऊर्जा असंभव है । लेकिन अल्प मात्रा में ऋणात्मक ऊर्जा का प्रयोगिक सत्यापन कैसीमीर प्रभाव Casimir effect  से हो चूका है । ) ऋणात्मक ऊर्जा का बड़े पैमाने पर उत्पादन कम से कम अगली कुछ शताब्दियों तक संभव नहीं है । ऋणात्मक पदार्थ अभी तक खोजा नहीं गया है । ध्यान दें । ऋणात्मक पदार्थ प्रति पदार्थ Anti matter  या श्याम पदार्थ Dark Matter  नहीं है ।
इसके अलावा समस्या स्थायित्व की भी है । केर का ब्लैक होल अस्थायी हो सकता है । यह किसी के प्रवेश करने से पहले ही बंद हो सकता है । क्वांटम भौतिकी के अंतिरिक्षिय सूराख भी किसी के प्रवेश करने से पहले बंद हो सकते हैं । दुर्भाग्य से हमारी गणित इतनी विकसित नहीं हुयी है कि वह इन अंतिरिक्षिय सूराखों Worm  holes  के स्थायित्व की गणना कर सके । क्योंकि इसके लिये हमे थ्योरी आफ एवरीथिंग Theory of Everything   चाहिये । जो गुरुत्व और क्वांटम भौतिकी के सिद्धांतों का एकीकरण कर सके । अभी तक थ्योरी आफ एवरीथिंग का 1 ही पात्र सिद्धांत है - सुपर  स्ट्रींग थ्योरी Super String Theory  । यह 1 ऐसा सिद्धांत है । जो अच्छी तरह से परिभाषित अवश्य है । लेकिन इसका हल अभी तक किसी के पास नही है ।
श्याम विवर Black Hole  -  मजेदार बात यह है कि स्टीफन हांकिंस ने समय यात्रा की अवधारणा का विरोध किया था । उन्होंने यह भी कहा था कि उनके पास इसके अनुभव जन्य प्रमाण हैं । उनके अनुसार यदि समय यात्रा संभव है । तब भविष्य से आने वाले समय यात्री कहाँ हैं ? भविष्य से कोई यात्री नहीं है । इसका अर्थ है । समय यात्रा संभव नहीं है । लेकिन पिछले कुछ वर्षो में सैद्धांतिक भौतिकी में काफी नयी खोज हुयी है । जिससे प्रभावित होकर हाकिंग ने अपना मत बदल दिया है । अब उनके अनुसार समय यात्रा संभव है । लेकिन प्रायोगिक practical  नहीं ।
हमारे पास भविष्य से यात्री इस कारण नहीं आते होंगे । क्योंकि हम इतने महत्वपूर्ण नही हैं । समय यात्रा कर सकने में सफल सभ्यता काफी विकसित होगी । वह किसी तारे की सम्पूर्ण ऊर्जा के दोहन में सक्षम होगी । जो भी सभ्यता किसी तारे की ऊर्जा पर नियंत्रण कर सकती है । उनके लिये हम 1 आदिम सभ्यता से बढकर कुछ नहीं हैं । क्या आप चींटियों को अपना ज्ञान, औषधि या ऊर्जा देते हैं ? आपके कुछ दोस्तों को तो शायद उन पर पैर रखकर कुचलने की इच्छा होती होगी । कल कोई आपके दरवाजे पर दस्तक दे । और कहे कि वह भविष्य से आया है । और आपके पोते के पोते का पोता है । तो दरवाजा बंद मत करिये । हो सकता है कि - वह सही हो ।
साभार -
http://vigyan.wordpress.com/2010/12/10/timetravel/

बच्चों के लिए बहुत हानिकारक - अजीनोमोटो

अजीनोमोटो - यह धीमा जहर है । अजीनोमोटो - सफेद रंग का चमकीला सा दिखने वाला मोनोसोडि़यम ग्लूटामेट यानी अजीनोमोटो । एक सोडियम साल्ट है । अगर आप चाइनीज़ डिश के दीवाने हैं । तो यह आपको उसमें जरूर मिल जाएगा । क्योंकि यह 1 मसाले के रूप में उनमें इस्तमाल किया जाता है । शायद ही आपको पता हो कि यह खाने का स्वाद बढ़ाने वाला मसाला वास्तव में जहर है । यह धीमा जहर खाने का स्वाद नहीं बढ़ाता । बल्कि हमारी स्वाद ग्रन्थियों के कार्य को दबा देता है । जिससे हमें खाने के बुरे स्वाद का पता नहीं लगता । मूलतः इसका प्रयोग खाद्य की घटिया गुणवत्ता को छिपाने के लिए किया जाता है । यह सेहत के लिए भी बहुत खतरनाक होता है ।
जान लें कि कैसे - सिर दर्द । पसीना आना और चक्कर आने जैसी खतरनाक बीमारी आपको अजीनोमोटो से हो सकती है । अगर आप इसके आदी हो चुके हैं । और खाने में इसको बहुत प्रयोग करते हैं । तो यह आपके दिमाग को भी नुकसान कर सकता है ।
- इसको खाने से शरीर में पानी की कमी हो सकती है । चेहरे की सूजन और त्वचा में खिंचाव महसूस होना । 

इसके कुछ साइड इफेक्ट हो सकते हैं ।
- इसके ज्यादा प्रयोग से धीरे धीरे सीने में दर्द । सांस लेने में दिक्कत और आलस भी पैदा कर सकता है । इससे सर्दी जुकाम और थकान भी महसूस होती है । इसमें पाये जाने वाले एसिड सामग्रियों की वजह से यह पेट और गले में जलन भी पैदा कर सकता है ।
- पेट के निचले भाग में दर्द । उल्टी आना और डायरिया इसके आम दुष्प्रभावों में से 1 हैं ।
- अजीनोमोटो आपके पैरों की मांसपेशियों और घुटनों में दर्द पैदा कर सकता है । यह हड्डियों को कमज़ोर और शरीर द्वारा जितना भी कैल्शियम लिया गया हो । उसे कम कर देता है।
- उच्च रक्तचाप की समस्या से घिरे लोगों को यह बिलकुल नहीं खाना चाहिए । क्योंकि इससे अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ और घट जाता है ।
- व्यक्तियों को इससे माइग्रेन होने की समस्या भी हो सकती है । आपके सिर में दर्द पैदा हो रहा है । तो उसे तुरंत ही खाना बंद कर दें ।
- अजीनोमोटो की उत्पादन प्रक्रिया भी विवादास्पद है । कहा जाता है कि इसका उत्पादन जानवरों के शरीर से प्राप्त सामग्री से भी किया जा सकता है ।
- अजीनोमोटो बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है । इसके कारण स्कूल जाने वाले ज्यादातर बच्चे सिर दर्द के शिकार हो रहे हैं । भोजन में एम एस जी का इस्तेमाल या प्रतिदिन एम एस जी युक्त जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड का असर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है । कई शोधों में यह बात साबित हो चुकी है कि एम एस जी युक्त डाइट बच्चों में मोटापे की समस्या का 1 कारण है । इसके अलावा यह बच्चों को भोजन के प्रति

अंति संवेदनशील बना सकता है । मसलन, एम एस जी युक्त भोजन अधिक खाने के बाद हो सकता है कि बच्चे को किसी दूसरी डाइट से एलर्जी हो जाए । इसके अलावा, यह बच्चों के व्यवहार से संबंधित समस्याओं का भी 1 कारण है । छिपा हो सकता है । अजीनोमोटो अब पूरी दुनिया में मैगी नूडल बच्चे बड़े सभी चाव से खाते हैं । इस मैगी में जो राज की बात है । वो है Hydrolyzed groundnut protein और स्वाद वर्धक 635 Disodium ribonucleotides यह कम्पनी यह दावा करती है कि इसमें अजीनोमोटो यानि MSG नहीं डाला गया है । जबकि Hydrolyzed groundnut protein पकने के बाद अजीनोमोटो यानि MSG में बदल जाता है । और Disodium ribonucleotides इसमें मदद करता है । Ojasvi Hindustan
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When people go within and connect with themselves, they realize they are connected to the universe and they are connected to all living things  - Armand Dimele
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जैसे हाथ में चाबी हो । चाबी को हम कैसे भी सीधा जानने का उपाय करें । चाबी से ही चाबी को समझना चाहें । तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । उस चाबी की खोजबीन से कि कोई बड़ा खजाना उसके हाथ लग सकता है । चाबी में ऐसी कोई भी सूचना नहीं है । जिससे छिपे हुए खजाने का पता लगे । चाबी अपने में बिलकुल बंद है । चाबी को हम तोड़ें । फोड़ें । काटें । लोहा हाथ लगे । और धातुएं हाथ लग जाएं । उस खजाने की कोई खबर हाथ न 

लगेगी । जो चाबी से मिल सकता है । और जब भी कोई चाबी ऐसी हो जाती है - जीवन में । कि जिससे खजानों का हमें पता नहीं लगता है । तब सिवाय बोझ ढोने के हम और कुछ भी नहीं ढोते ।  और जिंदगी में ऐसी बहुत सी चाबियां हैं । जो किन्हीं खजानों का द्वार खोलती हैं । आज भी खोल सकती हैं । पर न हमें खजानों का कोई पता है । न उन तालों का हमें कोई पता है । जो हमसे खुलेंगे । और जब तालों का भी पता नहीं होता । और खजानों का भी पता नहीं होता । तो स्वभावतः हमारे हाथ में जो रह जाता है । उसको हम चाबी भी नहीं कह सकते । वह चाबी तभी है । जब किसी ताले को खोलती हो । जब उससे कुछ भी न खुलता हो । पर फिर भी उस चाबी से कभी खजाने खुले हैं । इसलिए बोझिल हो जाती है । तो भी मन उसे फेंक देने का नहीं होता । कहीं मनुष्य जाति के अचेतन में वह धीमी सी गंध बनी ही रह जाती है ।
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ये लीजिए । शिव स्वरोदय - 1 अत्यंत दुर्लभ वैज्ञानिक स्वर योग विज्ञान का ग्रन्थ आप सभी के लिए । http://www.fpmconnect.in/scriptures/shiva-swarodaya-sanskrit-hindi.pdf
1 और स्वर विज्ञान योग की दुर्लभ पुस्तक घेरण्ड संहिता । http://www.fpmconnect.in/scriptures/Gheranda-samhita.pdf
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GF n BF on phone
Boy -  hey आज क्या खाना खाया ?
Girl - तुम्हें बस यही बातें करनी आती हैं । 
Boy - oh oh ok ये बताओ  how shuld RBI fight these inflationary
trends with minimum intervention in the money markets ?
Girl - hmmmm.... दाल चावल खाये हैं ।
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संता - बंता अगर कांग्रेस 2014 के चुनाव जीत गई । तो क्या होगा ?
बंता - होना क्या है । चावल 1 रुपए के दो दाने । दाल 5 रुपए के 4 दाने । तेल 10 रुपए की 2 बूंदे । दूध 5 रुपए की 5 बूंदे । चीनी 3 रुपए के 4 दानें । और बिजली मिलने के चांस 1% होंगे । और जो भी ये सभी चीजें एक साथ खरीदेगा । उसे असली देसी घी की खुशबू सुंघाई जाएगी । और पेट्रोल मुफ्त में दिखाया जाएगा ।
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1 सरदार बुलेट चला रहा था । सरदार एक्टिवा वाली से - कभी बुलेट चलाई है ? लङकी तेज करके आगे निकल गयी । सरदार बराबर में आकर - कभी बुलेट चलाई है ? लङकी slow  हो गयी । आगे जाकर सरदार का एक्सीडेन्ट हो गया । लङकी - और चला ले बुलेट । 
सरदार - कमीनी ! यही तो पूछ रहा था । चलाई है । तो बता दे । break कैसे लगते हैं । ambuj

22 सितंबर 2013

मनमोहन मेरी कमर पर अपना हाथ रख दो

If you surrender the ego, You come in a harmony with the law Osho -  Buddha says if you surrender the ego, if you surrender yourself, you come in a harmony with the law and everything starts happening on its own. You have but to surrender. If you are ready to disappear, you will be full of the law and the law will take care.
Have you watched it ? If you trust the river you can float. The moment you lose the trust you start drowning. If you trust, the river takes you in her hands. If you become afraid you start drowning. That's why dead bodies start floating on the surface of the river, because dead bodies cannot doubt. Dead bodies cannot be afraid.

Alive, the same persons went down into the river and drowned. When dead, they surface, they start floating on the surface. Now it is very difficult for the river to drown them - no river has been able to up to now. No river can drown a dead body. Alive, what happens ? What happens ? The dead man must be knowing some secret. The secret is, he cannot doubt.
You must have heard the beautiful parable in Jesus' life - that his disciples are crossing the lake of Galilee and he is left behind and he says, I will be coming soon. I have to say my prayers.' And then the disciples are very much puzzled - he is coming walking on the lake. They are afraid, frightened, scared.

They think it must be some evil force. How can he walk ?
And then one disciple says - Master, is it really you ?  Jesus says - Yes.  Then the disciple says - Then if you can walk, why can't I, your disciple ?  Jesus says - You can also walk - come ! And the disciple comes and he walks a few steps, and he's surprised that he is walking - but then doubt arises. He says - What is happening ? This is unbelievable.'
The moment he thinks - This is unbelievable. Am I in a dream, or some trick of the devil, or what is happening ?  he starts drowning. And Jesus says - You, you of little faith ! Why did you doubt ? And you have walked a few steps and you know that it has happened; then too you doubt it ?
Whether this story happened in this way or not is not the point. But I also know; you can try. If you trust

the river, just relax in the river and you will float. Then the doubt will arise, the same doubt that came to Jesus' disciple - What is happening ? How is it possible ? I'm not drowning - and immediately you will start drowning.
The difference between a swimmer and a non-swimmer is not much. The swimmer has learned how to trust; the non-swimmer has not yet learned how to trust. Both are the same. When the non-swimmer falls into the river, doubt arises. He starts feeling afraid - the river is going to drown him. And of course then the river drowns him. But he is drowning himself in his own doubt. The river is not doing anything. The swimmer knows the river, the ways of the river, and he has been with the river many times and he trusts; he simply floats, he is not afraid. Life is exactly the same.
Source - Osho Book - The Discipline of Transcendence VOl 4
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जब बृह्मा ने सृष्टि की रचना की । तो उन्होंने अपनी शक्ति से मानस पुत्र पैदा किए । पर बार बार सृष्टि की वृद्धि करने के बाद भी उन्हें संतोष नहीं हुआ । तब उन्होंने मैथुनी सृष्टि आरंभ करने का प्रयास किया । पर बिना नारी के यह संभव नहीं था । तब बृह्मा ने शिव का ध्यान किया । बृह्मा की प्रार्थना सुनकर शिव प्रसन्न हुए । और बृह्मा को दर्शन दिए । इस बार शिव का रूप देखकर बृह्मा चकित हो गए । यह रूप था - अर्धनारीश्वर । यानी आधा शरीर पुरुष । और आधा स्त्री का । तब शिव ने बृह्मा का मंतव्य जानकर उन्हें मैथुनी सृष्टि प्रारम्भ करने का वरदान दिया । और स्त्री रूप को अपने आपसे अलग कर दिया । बृह्मा यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए । और उन्होंने शिव से भी प्रार्थना की कि वे उनके मानस पुत्र दक्ष की पुत्री के रूप में अवतरित हों । शिव ने बृह्मा का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया । और उन्हें मैथुनी सृष्टि का वरदान दिया । शिव का यह रूप अर्धनारीश्वर कहलाया । उनका यह रूप अवतारों की श्रेणी में आया । भगवान शंकर ने जगत कल्याण के लिए कई अवतार लिए । अर्धनारीश्वर अवतार उन्हीं में से एक है । स्त्री पुरुष की समानता का पर्याय है - अर्धनारीश्वर ।
भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में हम देखते हैं कि भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा शरीर पुरुष का है । यह अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का संदेश देता है । समाज, परिवार व सृष्टि के संचालन में पुरुष की भूमिका जितनी महत्वपूर्ण है । उतनी ही स्त्री की भी है । स्त्री तथा पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं । एक दूसरे के बिना इनका जीवन निरर्थक है । अर्धनारीश्वर रूप लेकर भगवान ने यह संदेश दिया है कि समाज

तथा परिवार में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही आदर व प्रतिष्ठा मिले । उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए । क्यों हुआ यह अवतार ?
शिव पुराण के अनुसार सृष्टि में प्रजा की वृद्धि न होने पर बृह्माजी चिंतित हो उठे । तब आकाशवाणी के अनुसार बृह्मा ने मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का संकल्प किया । परंतु तब तक शिव से नारियों का कुल उत्पन्न नहीं हुआ था । तब बृह्माजी ने शक्ति के साथ शिव को संतुष्ट करने के लिए तपस्या की । बृह्माजी की तपस्या से परमात्मा शिव संतुष्ट हो अर्द्धनारीश्वर का रूप धारण कर उनके समीप गए । तथा अपने शरीर में स्थित देवी शक्ति के अंश को पृथक कर दिया । तब बृह्माजी ने उस परम शक्ति की स्तुति की । बृह्मा की स्तुति से प्रसन्न होकर शक्ति ने अपनी भृकुटि के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति की सृष्टि की । जिसने दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया । साभार कापी पेस्ट
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1 बूढी औरत ने अपनी बीमारी का गुहार प्रधानमंत्री से लगाया । प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रधानमंत्री राहत कोष से 5 लाख रूपया दिया । उसने असंतोष व्यक्त कर लौटा दिया । तो रकम 10 लाख कर दिया गया । इस पर भी नहीं मानीं । तो प्रधानमंत्री ने उसका इलाज विदेश से कराने का आश्वासन दिया । इस पर वह भड़क गयी । मेरे पति ने देश के लिए जान दी थी । और मैं अपनी बीमारी के लिए विदेश जाऊँ ? तब प्रधामंत्री ने रकम 20 लाख कर दिया । वह फिर भी नहीं मानीं । तब उसने मनमोहन सिंह से मिलने की इच्छा जतायी । उसे बुलाया गया । मनमोहन सिंह ने कारण जानना चाहा कि वह सहायता लेने से मना क्यों कर रही है । इस पर बूढी ने कहा - बेटा ! जब इलाज मुफ्त में हो सकता है । तो मैं देश का पैसा क्यों खर्च करूँ ? मनमोहन समझ नहीं पाए । तो बूढी ने कहा - बङे बङे ज्ञानी अपने आपको नहीं समझ पाते हैं । उसने कहा - मुझे कमर में दर्द है । इसलिए झुकती जा रही हूँ । तुम सिर्फ 1 मेहरबानी कर दो । मेरे कमर पर अपना हाथ रख दो । मनमोहन सिंह ने पूछा - इससे क्या होगा ? तो बूढी ने कहा - तुमने कोयले पर हाथ रखा । कोयला गायब हो गया । कोयले के फाइल पर हाथ रखा । फाइल गायब हो गया । प्याज पर हाथ रखा । प्याज गायब हो गया । कमर पर हाथ रख दो । तो दर्द भी गायब हो जाएगा ।
साभार - 1 ही विकल्प मोदी 1 Hi Vikalp Modi
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कुछ भी कहो । कांग्रेस की हताशा दिख रही है । किसी 1 की नहीं । सभी का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है । कांग्रेस पार्टी नरेंद्र मोदी से भय ग्रस्त है । BJP पार्टी ने जब से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया है । तब से कांग्रेस में 1 बौखलाहट है । जो साफ दिखाई दे रही है । जिस तरह के वक्तव्य कांग्रेसी नेता दे रहे हैं । जो उनकी हताशा और कुंठा को दर्शाती है । अब तो ये हाल हो गया है कि जो भी कांग्रेस के बारे में बुरा बोलेगा । उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी । बापू आशाराम तो नप गए । बाबा रामदेव पर तलवार लटक रही है । पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे । तो देखना है - सोनिया की अगली चाल क्या होती है ? श्याम विश्वकर्मा
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सुखी वैवाहिक जीवन का राज - 1 दंपत्ति ने जब अपनी शादी की 25वीं वर्षगांठ मनायीं । तो 1 पत्रकार उनका साक्षात्कार लेने पहुंचा । वो दंपत्ति अपने शांति पूर्ण और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिये प्रसिद्ध थे । उनके बीच कभी नाम मात्र का भी तकरार नहीं हुआ था । लोग उनके इस सुखमय वैवाहिक जीवन का राज जानने को उत्सुक थे । पति ने बताया - हमारी शादी के फ़ौरन बाद हम हनीमून मनाने शिमला गये । वहाँ हम लोगों ने घुड़सवारी की । मेरा घोड़ा बिल्कुल ठीक था । लेकिन मेरी पत्नी का घोड़ा थोड़ा नखरैल था । उसने दौड़ते दौड़ते अचानक मेरी पत्नी को गिरा दिया । मेरी पत्नी उठी । और घोड़े के पीठ पर हाथ फ़ेरकर कहा - यह पहली बार है । 
और फ़िर उस पर सवार हो गयी । थोड़े दूर चलने के बाद घोड़े ने फ़िर उसे गिरा दिया । पत्नी ने घोड़े से फ़िर कहा - यह दूसरी बार है । और फ़िर उस पर सवार हो गयी । लेकिन थोड़े दूर जाकर घोड़े ने फ़िर उसे गिरा दिया । अबकी पत्नी ने कुछ नहीं कहा । चुपचाप अपना पर्स खोला । पिस्तौल निकाली । और घोड़े को गोली मार दी । मुझे ये देखकर
काफ़ी गुस्सा आया । और मैं जोर से पत्नी पर चिल्लाया - ये तुमने क्या किया । पागल हो गयी हो ? पत्नी ने मेरी तरफ़ देखा । और कहा - ये पहली बार है । और बस उसके बाद से हमारी ज़िंदगी सुख और शांति से चल रही है ।  ♥♥Rawat.G♥♥
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19 सितंबर 2013

भारत 1 इस्लामी देश प्रतीत होता है

क्या भारत सच में 1 सेकुलर देश है ?  दरअसल हमारे राजनेताओं द्वारा अक्सर यह दावा किया जाता है कि भारत 1 सेकुलर देश है । परन्तु  यहाँ के हालत देखकर तो लगता नहीं है कि भारत 1 धर्म निरपेक्ष देश है । बल्कि भारत 1 इस्लामी देश प्रतीत होता है । जिसने सेकुलरिज्म की खाल ओढ़ी हुई हो । यह चौंकने नहीं बल्कि समझने की बात है । ताकि समय रहते इसमें परिवर्तन किया जा सके । आश्चर्य है कि 1 तरफ तो सरकार भारत को सेक्यूलर राज्य कहती है । और  दूसरी तरफ धर्म के आधार पर मुसलमानों व ईसाइयों को विशेष सुविधाएँ देती हैं । जो पूर्णतया असंवैधानिक है । सिर्फ इतना ही नहीं । बल्कि 15-17%  भारतीय मुसलमान किसी भी मापदण्ड में अल्पसंखयक नहीं हैं । फिर भी कांग्रेस व अन्य सेक्यूलर राजनैतिक दल राज्यों एवं केन्द्र सरकार में मुसलमानों के लिए अनेकों असंवैधानिक सुविधाएं स्वीकार की जा रही हैं । जैसे कि विश्व के 57 इस्लामी देशों में से कही भी मुसलमानों को हज यात्रा के लिए आर्थिक सहायता नहीं दी जाती है । क्योंकि हज के लिए आर्थिक सहायता लेना गैर इस्लामी है ।  परन्तु फिर भी बेहद निर्लज्जता से भारत सरकार प्रत्येक हज यात्री को हवाई यात्रा के लिए लगभग 60 000 रुपये की आर्थिक सहायता देती है । इतना ही नहीं । बल्कि हाजियों के लिए राज्यों में हज हाउस बनाए गये हैं । और जिद्‌दा में हाजियों की सुविधाएँ देखने के 

लिए 1 विशेष दल जाता है । मानों वहाँ की एम्बेसी काफी नहीं है ।  और तो और मुस्लिमों वक्फ बोर्डों के पास 12 लाख करोड़ की सम्पत्ति है । जिसकी वार्षिक आय लगभग 12 000 करोड़ है । मगर फिर भी सरकार वक्फ बोर्डों को आर्थिक सहायता देती है । लेकिन यह जानकर आपका मुंह खुला का खुला रह जाएगा कि सरकार हम हिन्दुओं के टैक्स का जो भी रूपया इन वक्फ बोर्डों को मदद के तौर पर देती है । उसका हिसाब किताब कभी सार्वजनिक नहीं किया जाता है । क्योंकि इसी रुपये से जिहादी हथियार और विस्फोटक खरीदते हैं ।
जबकि सरकार बाबा रामदेव के देशभक्ति के काम की हमेशा CBI जाँच करवाती रहती है । और उनके ट्रस्ट पर पर अक्सर छापे पड़ते रहते हैं । अगर सरकार इतना भी करके रुक जाती । तो भी गनीमत थी । लेकिन इसके आगे भी दास्तान जानिए । आज विश्व के लगभग सभी देश यह मान चुके हैं कि मदरसे आतंकवादियों को तैयार करने

वाले कारखाने हैं । क्योंकि जितने भी आतंकी पकडे जाते हैं । वे सभी के सभी कभी मदरसा में पढ़े हुए होते हैं । फिर भी हमारी सरकार ने धार्मिक कट्‌टरवाद एवं अलगावदवाद को बढावा देने वाली मदरसा शिक्षा को न केवल दोष मुक्त बताया । बल्कि उसके आधुनिकीकरण के नाम पर प्रति वर्ष करोड़ों रुपए आर्थिक सहायता देती है । फिर भी मुसलमान अपने इन मदरसों को केन्द्रीय मदरसा बोर्ड या आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जुड़ने देना नहीं चाहते । यहाँ तक कि मुस्लिम पाठ्‌यक्रम में सुझाव व अन्य किसी प्रकार का नियंत्रण तक नहीं मानते हैं । फिर भी हर चीज जानने समझने के बावजूद पश्चिमी बंगाल सरकार ने 2010 तक 300 अंग्रेजी माध्यम के मदरसा स्थापित करने का निर्णय लिया है ( पायो. 23.12.2009 ) 
सरकार ने अल्पसंखयकों के संस्थानों को उच्च शिक्षा में ओबीसी विद्यार्थियों के लिए आरक्षण से मुक्त रखा हुआ है । इलाहाबाद हाईकोर्ट के विरोध के बावजूद अलीगढ़ विश्व विद्यालय को अल्पसंख्यक स्वरूप बनाए रखने पर 

बल दिया । अल्पसंख्यकों के कक्षा 1 से 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए 25 लाख बजीफे दिए । जबकि सवर्णों को नहीं हैं । केरल सरकार ने मदरसों के मौलवियों के लिए पेंशन देने का निर्णय किया है । बिहार में 10वीं की परीक्षा पास करने वाले मुस्लिम छात्र को 10000 रुपये का पुरस्कार मिलेगा । राजस्थान में मुस्लिम विद्यार्थी निजी विद्यालयों में पढ़ते समय भी छात्रवृत्ति ले सकते हैं ( शिक्षा बचाओ आन्दोलन, बुले. 48 पृ. 32) (8)
और तो और समिति की सिफारिशें के अनुरुप 1 से 12 कक्षा तक की पुस्तकें मदरसे में ही तैयार होंगी । और अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी उर्दू में संचालित करने की योजना है ( राजस्थान पत्रिका 9..7.2007 )
यहाँ तक कि मदरसों के पाठ्‌य पुस्तकों में पिछली ( 1998-2003 ) सरकार द्वारा निकाले गए हिन्दू विरोधी और मुस्लिम उन्मुख अंशों को दुबारा पुस्तकों में डाल दिया गया । सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केन्द्र भोपाल, पुरी, किशनगंज ( बिहार ) मुर्शिदाबाद ( पं. बगांल ) व मुल्लूपुरम ( केरल ) में खोलने के लिए 2 000  करोड़ का अनुदान दिया ( वही. बुल. 48, पृ. 31 )
अल्पसंखयकों के एम फिल और PhD. करने वाले 756 विद्यार्थियों को राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा या राज्य स्तरीय पात्रता परीक्षा के बिना ही 12 से 14 हजार रुपये महीना रिसर्च फैलोशिप मिलेगी । ( दैनिक जाग. 23.12.2009 )
जबकि अन्यों को सरकारी रिसर्च फैलोशिप पाने के लिए ये परीक्षाएँ पास करना अनिवार्य है । उच्च प्रोफेशनल 

कोर्सों में पढ़ने वाले अल्ससंखयक विद्यार्थियों की फीस सरकार देगी । स्पर्धा वाली सरकारी परीक्षाओं के कोचिंग के लिए भी फीस सरकार ही देगी । जबकि ये सुविधाएँ भारत के सामान्य नागरिकों को नहीं हैं । हद तो यह है कि जिनके पूर्वजों ने भारत के लिए सर्वस्व लुटा दिया । और आज भी भारत को अपनी माता मानते हैं । ये तथाकथित सेकुलर सरकार उनके अधिकार छीनकर मुसलमानों को देती रहती है । जबकि मुसलमान हमेशा भारत विरोधी कामों में लगे रहते हैं । फिर भी सरकारों को वोट बैंक का ऐसा चस्का लगा है कि सरकारें मुसलमानों के लिए खजाने खोल देती हैं । जैसे कि -
1 अल्पसंखयकों के नाम पर विशेषकर मुसलमानों के लिए अलग मंत्रालय बनाया गया है । और उनके लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना में 15 % बजट रखा गया है ।
2 - 2004 में सत्ता में आते ही कांग्रेस ने आतंकवाद में फंसे मुसलमानों को बचाने के लिए पोटा कानून को निरस्त कर दिया । जिसके फलस्वरूप देश के आतंकवादी घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हो गयी ।
3 सरकार ने मुस्लिम पर्सनल कानूनों और शरियत कोर्टों का समर्थन किया ।
4 - 13 Dec 2001 में संसद पर हमले के दोषी अफजल खां को फांसी की सजा मिल जाने पर भी वर्षों तक उसमे टाल मटोल किया गया ।

5 - 17 Dec 2006 को नेशनल डवलपमेंट काउंसिल की मीटिंग में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यहाँ तक कह दिया कि - भारतीय संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है ।
शायद इसीलिए उन्हें रोजगार, ऋण, शिक्षा आदि में विशेष सुविधाऐं दी जा रही हैं ।
6 सरकार बंगला देशी मुस्लिमों घुसपैठियों को निकालने में उत्साह हीन है । जबकि वे बेहद सुनियोजित ढंग से भारत के इस्लामीकरण एवं यहाँ आतंकवाद फ़ैलाने के लिए यहाँ बस रहे हैं ।
ध्यान रखें कि 1 तरफ तो मुसलमान आबादी बढ़ाने में लगे रहते हैं । और दूसरी तरफ अपनी गरीबी का बहाना बनाकर सरकार से आर्थिक मदद माँगते रहते हैं ।  परन्तु इनकी मांगे कम होने की जगह और बढती जाती हैं । और ऐसा तब तक होता रहेगा । जब तक भारत पूर्णतः 1 इस्लामी देश नहीं बन जाता । इसलिए मुसलमान अपनी गरीबी और पिछड़ेपन का ढोंग करके सदा रोते रहते हैं । और सरकार ने उनकी इसी राक्षसी भूख को मिटाने के लिए कई कमेटियां बना रखी हैं । जैसे -
1 सच्चर कमेटी द्वारा  मुस्लिमों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए 5460 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है ।
2 उनके लिए सस्ती ब्याज दर पर ऋण देने के लिए 1 कारपोरेशन बनाया गया ।
3 सार्वजनिक क्षेत्र में उदारता बरतें । इस अभियान की निगरानी के लिए 1 मोनीटरिंग कमेटी' काम करेगी ।  ( दैनिक नव ज्योति, 4/1/2006) 
4 अल्पसंखयक विद्यार्थियों को माइनोरिटी डवलपमेंट एण्ड फाइनेंस कारपो. से 3% पर ऋण दिया जाता है।
5 पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रत्येक विभाग के बजट में से 30% आवंटन मुसलमानों के लिए किया गया ( वही. बृ. पृ. 32 )

6 - 13 AUG 2006 को सरकार ने लोक सभा में बतलाया कि मुस्लिम प्रभाव वाले 90 जिलों और 338 शहरों में मुसलमानों के लिए विशेष विकास फण्ड का प्रावधान किया गया है । ( वही, बृ. 48, पृ. 33 )
इस तरह 1 धर्म निरपेक्ष देश की सरकार धर्म के आधार पर 1 वर्ग विशेष के वोट पाने के लिए सभी उचित व अनुचित तरीके अपना रही हैं । इसीलिए उच्चतम न्यायालय ने भी सरकार को सावधान करते हुए 18 AUG 2005 को कहा - राजनैतिक या सामाजिक अधिकारों में कमी को आधार बनाकर भारतीय समाज में अल्पसंखयक समूहों को निर्धारित करने और उसे मानने की प्रवृत्ति पांथिक हुई । तो भारत जैसे बहुभाषी, बहुपांथिक देश में इसका कोई अन्त होने वाली नहीं है । क्योंकि 1 समुदाय द्वारा विशेषाधिकारों की मांग दूसरे समुदाय को ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करेगी । जिससे परस्पर संघर्ष और झगड़े बढ़ेगें ।
परन्तु वोटों की लालची और सत्ता की प्यासी सेक्यूलर सरकारें इन चेतावनियों की परवाह नहीं करती हैं । सबसे अधिक पीड़ा की बात तो यह है कि जिस भारत की स्वाधीनता व अखंडता के लिए हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों वर्षों तक संघर्ष किया । लाखों योद्धाओं ने अपने प्राण न्यौछावर किए । और देश को इस्लामीकरण से बचाया । तथा आज जिन नेताओं को देश की रक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा गया है । वे ही स्वार्थवश कुछ दिन राज करने के लिए भारत के इस्लामीकरण में निर्लज्जता के साथ सहयोग दे रहे हैं । वे उन करोड़ों देशभक्तों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं । जिन्होंने देश के लिए बलिदान किए ।
कांग्रेस एवं अन्य सेक्यूलर पार्टियों का मुस्लिमों के सामने आत्म समर्पण एवं वोट बैंक की राजनीति करना । देश की भावी स्वाधीनता के लिए बेहद चिन्ता का विषय है । क्योंकि सरकार की इन्हीं मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के कारण आज सारा देश इस्लामी जिहाद और आतंकवाद से पीड़ित है । क्या देश की सेक्यूलर पार्टियों को दिखाई नहीं देता कि पाकिस्तान एवं भारत के मुसलमान शेष भारत में इस्लामी राज्य स्थापित करना चाहते हैं ?
क्या हमारी सरकारें सेकुलरता का ढोंग करके अपने स्वार्थ के लिए हमारे हिंदुस्तान को मुगलिस्तान में बदल देना चाहती है ?
आज के सरकारी क्रियाकलापों से तो ऐसा ही कुछ आभास हो रहा है । इसीलिए मित्रो ! यदि आप भी उपरोक्त बातों से सहमत हैं । और अपने हिंदुस्तान को 1 इस्लामी देश में परिवर्तित होने से बचाना चाहते हैं । तो सेकुलरिज्म के पाखण्ड का त्याग कर देश भक्त बनिए । एवं हमारे अभियान का साथ दीजिये । जय महाकाल ।  Kumar Satish 
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20 वर्षों से डायबिटीज झेल रहीं 65 वर्षीय महिला जो दिन में 2 बार इंसुलिन लेने को विवश थीं । आज इस रोग से पूर्णतः मुक्त होकर सामान्य सम्पूर्ण आहार ले रही हैं । जी हाँ मिठाई भी ।
डाक्टरों ने उस महिला को इन्सुलिन और अन्य ब्लड सुगर कंट्रोल करने वाली दवाइयां भी बंद करने की सलाह दी है ।
और 1 ख़ास बात । चूंकि केवल 2 सप्ताह चलने वाला यह उपचार पूर्णतः प्राकृतिक तत्वों से घर में ही निर्मित होगा । अतः इसके कोई दुष्प्रभाव होने की रत्ती भर भी संभावना नहीं है ।
मुम्बई के किडनी विशेषज्ञ डा. टोनी अलमैदा ने दृढ़ता और धैर्य के साथ इस औषधि के व्यापक प्रयोग किये हैं । तथा इसे आश्चर्यजनक माना है । अतः आग्रह है कि इस उपयोगी उपचार को अधिक से अधिक प्रचारित करें । जिससे अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हो सकें ।
देखिये कितना आसान है । इस औषधि को घर में ही निर्मित करना ।
आवश्यक वस्तुएं -
1 - गेंहू का आटा 100 gm    2 - वृक्ष से निकली गोंद 100 gm
3 - जौ 100 gm     4 - कलुन्जी 100 gm
निर्माण विधि - उपरोक्त सभी सामग्री को 5 कप पानी में रखें । आग पर इन्हें 10 मिनट उबालें । इसे स्वयं ठंडा होने दें । ठंडा होने पर इसे छानकर पानी को किसी बोतल या जग में सुरक्षित रख दें ।
उपयोग विधि -  7 दिन तक 1 छोटा कप पानी प्रतिदिन सुबह खाली पेट लेना । अगले सप्ताह 1 दिन छोड़कर इसी प्रकार सुबह खाली पेट पानी लेना । मात्र 2 सप्ताह के इस प्रयोग के बाद आश्चर्यजनक रूप से आप पायेंगे कि आप सामान्य हो चुके हैं । और बिना किसी समस्या के अपना नियमित सामान्य भोजन ले सकते हैं ।
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संत सताए तीनों जायें तेज बल और वंश । 
एडा केडा कई गया रावन कौरव कंस ।
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राहुल गाँधी ने कल राजस्थान में कहा - वे चाहते हैं कि 1 सड़क बनाने वाले मजदूर का बेटा भी हवाई जहाज़ में उड़े ।
बस इतना ही राहुल जी । अरे हम तो चाहते हैं कि 1 चाय बेचने वाले
का बेटा प्रधानमंत्री बने ।