31 मई 2012

कहत कबीर सुनो भाई साधो - जपो सोहंग सोहंग

होत आनन्द आनन्द भजन में ।
बरसात शबद अमी की बङेर । भीजत है कोई सन्त । 1
अगर वास जहाँ तत्व की नदियाँ । मानों अठारह गंग । 2
कर अस्नान मगन होय बैठे । चढत शबद के रग । 3
पियत सुधारस लेत नाम रस । चुवत अगर के बूँद ।  4
रोम रोम सब अमृत भीजे । परस परसत अंग । 5
स्वांसा सार रचे मोरे साहिब । जहाँ न माया मोहंग । 6
कहें कबीर सुनो भाई साधो । जपो सोहंग सोहंग । 7
साखी नाम नरायन । जगत गुरु करे बोध संसार ।
वचन प्रताप से उबरे । भवजल में कङिहार ।
आपका - निर्मल बंसल । भिलाई
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कबीर साहब के इस भजन को भेजा है । हमारे शिष्य निर्मल बंसल ने । जिन लोगों ने किसी सच्चे आत्म ज्ञानी सन्त या सदगुरु से नाम दान ( उपदेश या नाम दीक्षा या हँस दीक्षा ) नहीं लिया है । वे इस भजन का आनन्द 
और गू्ढ अर्थ कभी नहीं समझ सकते । यहाँ एक और खास बात है । जिन्होंने हँस दीक्षा का ये नाम या महा मंत्र - सोहंग..कहीं से ले रखा है । और सालों नाम कमाई भजन अभ्यास के बाद उन्हें इस भजन में वर्णित आनन्द प्राप्त नहीं हुआ । तो ये सबसे बङी पहचान है कि - उन्होंने सच्चे सतगुरु से नामदान लिया ही नहीं । मेरा मानना । या कहिये अनुभव है । कम से कम 3 और अधिक से अधिक 6 महीने में आपको इस भजन में वर्णित आनन्द अनुभव होना चाहिये । बशर्ते आपने भजन अभ्यास ठीक से किया हो । और अपनी कमियों को लगातार दूर करते हुये किसी सच्चे और अनुभवी मार्गदर्शक से सलाह ली हो । गुरु में समर्पण । उनसे बातचीत विनय प्रार्थना । और मौका मिलते ही यथासंभव उनके दर्शन से यह स्थिति बहुत जल्दी प्राप्त होती है । क्योंकि ये आपके प्रयास से नहीं । गुरु कृपा के आशीर्वाद से प्राप्त होती है - यह गुन साधन से नहीं होई । तुम्हरी कृपा पाये कोई कोई ।
आईये भजन का गूढ अर्थ जानते हैं । होत आनन्द आनन्द भजन में । भजन का सही अर्थ है । जब मन का भागना बन्द हो जाये । मन ठहर जाये । कहा है - मन की तरंग मार लो । बस हो गया भजन । आप मन को योग के बिना किसी युक्ति से नहीं ठहरा सकते । शरीर का निर्माण ओहम ॐ से हुआ है । मन का निर्माण - 
सोहंग से हुआ है । सोहंग जप की निरंतर रगङ से यह मन मर जाता है । काबू हो जाता है । या कहिये ठहर जाता है । बरसात शबद अमी की बङेर । भीजत है कोई सन्त । इस शब्द ( निर्वाणी धुन रूप सोहंग या फ़िर ऊपर की मंजिलों में प्रकट हुआ झींगुर की ध्वनि जैसा शब्द ) ध्वनि को निरंतर सुनने से अमृत ( अमी ) की बरसात होती है । इसमें ऐसा अनुभव होता है । जैसे पूरे शरीर तन मन दिलो दिमाग में मधुर आनन्ददायी शीतलता छा गयी हो । एक अजीव अवर्णनीय आनन्द से तन मन झूम उठता है । यह सिर्फ़ कोई कविता नहीं लिखी है । गहन ध्यान के अभ्यासी को बिना पानी के ही ऐसी अदभुत बरसात का आनन्द अनुभव होता है । भीजत है कोई सन्त । इसका आनन्द सन्त होने पर ही प्राप्त होता है । साधारण जीवों को कभी नहीं । सन्त से यहाँ मतलब है । सतनाम दीक्षा प्राप्त । परमात्मा या साहेब के भक्त । न कि झोली झोला वाले दाङी वाले भिखारी छाप बाबा ।
अगर वास जहाँ ( चन्दन की सुगन्ध ) तत्व की नदियाँ । मानों अठारह गंग की तरह बह रही हैं । कहने का अर्थ - ध्यान में आपको दिव्य सुगन्धों का स्पष्ट आनन्द आता है । आप जो सांसारिक चन्दन की सुगन्ध जानते हैं । यह उससे बहुत अलग है । भजन अभ्यास में कई तरह की सुगन्ध की अनुभूति होती है । यहाँ तक कि परफ़्यूम के इस्तेमाल की भांति बाद में भी आपके वस्त्रों से आती रहती है ।
कर अस्नान मगन होय बैठे । चढत शबद के रग । सीधी सी बात है । इस आसमानी शबद के रंग में रंगते हुये इस स्नान द्वारा कौन ऐसा है । जो मगन नहीं हो जायेगा ? ऐसा कोई मूर्ख ही होगा ।
पियत सुधा रस लेत नाम रस । चुवत अगर के बूँद । नाम रसायन के साथ सुधा यानी अमृत रस का आनन्द लेते हुये चन्दन ( अगर ) की बौछारों का स्नान । रोम रोम सब अमृत भीजे । परस परसत अंग । शरीर का रोम रोम मानों नहीं बल्कि वास्तव में अमृत से भीग उठता है - सतगुरु हमसे रीझ कर कहया एक प्रसंग । बरस्या बादल प्रेम का भीज गया सब अंग । इस शब्द का स्पर्श ( परस ) होते ही ।
स्वांसा सार रचे मोरे साहिब । जहाँ न माया मोहंग । ये सार आनन्द परमात्मा ( साहेब ) ने कहाँ रचा है ? स्वांस में । सारा रहस्य छुपा है - स्वांस में । सिर्फ़ यह ही एकमात्र वो जगह ( शरीर में ) है । जहाँ माया मोह नहीं है । माया मोह ( माया महा माया आदि प्रेरित ) कहाँ से होगा । जब माया का हसबैंड ही स्वांस जाप से काबू में हो जाता है । उसकी नकेल ही हाथ में आ जाती है ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो । जपो सोहंग सोहंग । यहाँ 1 खास बात कहना चाहूँगा । आप हिन्दू । मुसलमान । सिख । ईसाई । अंग्रेज । दुनियाँ के किसी भी जाति धर्म देश आदि से कुछ भी हों । 4 सेकेंड में पूरी होने वाली 1 स्वांस - सो ( अन्दर जाना = 2 सेकेंड ) हंग ( बाहर आना = 2 सेकेंड ) लेकर देखिये । यही अजपा जप संसार के प्रत्येक मनुष्य के अन्दर स्वयं हो रहा है । और इसी में सभी रहस्य । अमरता । जीवन सार । अलौकिक ज्ञान । मोक्ष आदि सब कुछ है । बाकी तो आप कूङा ही बटोर रहे हो । इसलिये कबीर साहब कह रहे हैं - जपो सोहंग सोहंग । मतलब इसी स्वांस पर पूरा ध्यान लगा दो । फ़िर देखो मजा । थम्स अप ! टेस्ट द थंडर । यही साखी ( साक्षी ) नाम ( निर्वाणी नाम या शब्द ) जगत में भगवान से मिलाने वाला है । गुरु करे बोध संसार । ( सच्चे ) गुरु ( ही ) इसका बोध कराते हैं । इस नाम को परमात्मा के वचन  का प्रताप है । भवजल में कङिहार । इस संसार सागर में कङिहार या बन्दी छोर गुरु द्वारा । साहेब ।

14 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Sohang ke bare me detail de

Unknown ने कहा…

Sohang shabad ke detail;

Unknown ने कहा…

Sohang ka kya arth hota hai detail btaye

Unknown ने कहा…

Sohang ka meaning detail me btaye

Unknown ने कहा…

सो शक्ति स्वरूप व हं शिव स्वरूप हे

Unknown ने कहा…

सो शक्ति स्वरूप व हं शिव स्वरूप हे

Hindi kavita ने कहा…

O ek hai

Unknown ने कहा…

Shiv ji ka Nam Soham haijBhai ji

Unknown ने कहा…

Shri Anandpur turst mp

बेनामी ने कहा…

Very nice

Unknown ने कहा…

Thank you

बेनामी ने कहा…

Sohung ka arth h ..so means sans ka ander jana means shive ka srir me pravesh hona...hung ka arth h andhkar ka bahar niklna...yahi karan h ki so ko bolte time sans ko ander or hung bolte time sans ko bahar krna h.....means shive sarir k ander or andhkar ko bahar krna h

बेनामी ने कहा…

सही बात है

बेनामी ने कहा…

Sohang shabd kha se aaya h