26 अगस्त 2011

वाकई ये इण्डिया की लेडी न.1 हैं - विनोद त्रिपाठी

गब्बर - ये बोतल हमका दे ठाकुर ।
ठाकुर - नहीं ।
गब्बर - ठाकुर ये बोतल हमका दे दे ।
ठाकुर - नहींह्ह्ह्ह ।
गब्बर - ये बोतल हमका दे दे ठाकुरर्र्रर्र ।
ठाकुर - नहींह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ।
खैर.. गब्बर ने बोतल ठाकुर से छीन ली । और बेचारा ठाकुर कुछ नहीं कर सका ।
पप्पू बादशाह ! कल मेरे को मेरा मित्र पी के सिंगला बोला - त्रिपाठी जी ! आपको पता है । देश में अनशन हो रहा है ।
तो मैंने कहा - सिंगला जी ! मेरे ख्याल से संसार में जितने भी गरीब देश हैं । उनमें बेचारी जो गरीब औरतें हैं । उनके गर्भ में जो बच्चे हैं । उन बेचारों का तो गर्भ में ही अनशन शुरु हो जाता होगा ।
मेरी बात सुनकर सिंगला जी खिसक लिये ।

राजीव राजा ! कल टी वी पर 1 बाबा कह रहा था - आज देश में देश की माँ बहन बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं । आजकल के दुष्ट लोग रावण के भी बाप हैं । रावण तो अंहकारी था । रावण चाहता । तो बलात्कार कर सकता था । लेकिन उसने 1 साल तक सीता को छुआ तक नहीं । लेकिन आजकल के लोग तो बलात्कारी हैं ।
उस बाबा की बात सुनकर मैंने सोचा कि क्या आज से कुछ समय पहले या बहुत समय पहले महिलायें सुरक्षित थी । मैंने ये भी सोचा कि मेरा फ़ूफ़ा रावण तो बडा बलशाली था । ये आजकल की खस्सी जनता उसकी बाप कैसे हो गयी ?
खैर.. कल शाम मैंने शराब पीकर अपने बाप को भी जोरदार भाषण दिया ।
मैंने कहा - तुम नानसेंस आदमी हो । अपनी जवानी के काले कारनामे पाण्डु को सुना सुनाकर उसकी जवानी को

बरबादी के रास्ते पर ले जा रहे हो । पाण्डु भी तुम्हें गोरी गोरी धोबन और दूधवाली और कामवाली के झूठे सच्चे किस्से सुना सुनाकर । तुमसे 10-20 रूपये ऐंठ लेता है ।
मेरा बाप ही..ही..ही करके हँसता रहा ।
मैंने फ़िर कहा - अन्ना हजारे जी को देखो । कितनी तरक्की की उन्होंने । आज सारे देश में उनकी पहचान है । किसी जमाने में अन्ना जी महाराष्ट्र में सिर्फ़ 1 ड्राइवर थे । लोगों के अनुसार अन्ना जी की कुल जायदाद सिर्फ़ 1 टोपी । कुर्ता । धोती । 1 पुराना अटैची । और 1 पुरानी चारपाई है । उनके पास अपने रहने के लिये जगह भी नहीं थी । सिर्फ़ किसी आश्रम

या मन्दिर टायप जगह में रहते थे । अन्ना जी ने शादी भी नहीं की । तुम कुछ सीखो उनसे ।
मेरी बात सुनकर मेरा बाप ताली मार कर हँसने लगा । और बोला - घोडे की पाँचवी टांग को तलाश मत कर । मुझे डी वी डी पर फ़िल्म लाकर दिखा - मर्डर 2 ।
खैर.. राजीव राजा ! कल हमारे कालेज के सामने 1 शर्मनाक हरकत हुई । दोपहर को छुट्टी टाइम कालेज के गेट से थोडा ही दूर कोने में 1 कुत्ता और कुत्ती सेक्स कर रहे थे । जब लडकियाँ गेट से बाहर आ रही थी । तो शर्म से उनके गाल लाल हो गये थे । इतने में मैं भी अपना स्कूटर निकाल कर बाहर आ रहा था । मुझे भी कुत्ते वाला सीन दिखाई दिया । मैंने ये भी नोट किया कि लडकियाँ चोरी चोरी देख भी रही हैं । और शर्मा भी रही हैं ।
मैंने गेटमैन को कहा - इनको भगा । तू आराम से खडा है ।
मेरी बात सुनकर गेटमैन ने उनकी तरफ़ 1 छोटा सा पत्थर फ़ेंका । कुत्ते ने घबरा कर अपनी टांग कुछ इस तरह घुमाई कि कुत्ता और कुत्ती दोनों विपरीत दिशा में हो गये । कुत्ता घबरा कर उधर को भागा । जिधर लडकियों का झु्ण्ड था । पीछे पीछे गेटमैन भी दौड लिया । लडकियों के झुण्ड में दबी हुई हँसी के चटाके फ़ूट लिये ।

मैंने अपना स्कूटर स्टार्ट किया । और घर को निकल लिया । मैं रास्ते में सोच रहा था कि साला कुत्ता भी लडकियों के कालेज के सामने ही लुत्फ़ ले रहा था । मैंने ये भी सोचा कि पता नहीं जवान लडकियों पर इस सीन का क्या प्रभाव पडा होगा ? वैसे ऐसे सीन अक्सर हमारे देश में सडकों पर दिख ही जाते हैं । लेकिन शर्म की बात तब महसूस होती है । जब कोई पूरा परिवार खडा हो । और आस पास कही कोई कुत्ता बिल्कुल ऐसी हरकत कर रहा हो ।
खैर.. मैं दोपहर को खाना खाकर टी वी देखने लगा । 1975 मे बनी फ़िल्म " धर्मात्मा " आ रही थी । जिसमें प्रेमनाथ फ़िरोज खान को बोल रहा था - देश भक्ति सिर्फ़ 1 नारा है । जिसने जितना ऊँचा लगाया । वो उतनी बडी कुर्सी लेकर बैठ गया ।
मैंने सोचा - बिलकुल ठीक ।
फ़िर मुझे सोनिया गाँधी की याद आयी । मैंने सोचा । वाकई ये इण्डिया की लेडी न.1 है ।

पहनावा कितना सिम्पल और हैसियत समाज में कितनी बडी । मेरे ख्याल से हिन्दुस्तान के समाज में सोनिया गाँधी से अधिक पावरफ़ुल कोई नहीं है । मेरे हिसाब से क्या पुरानी पीढी और क्या नयी पीढी दोनों ही फ़ुददू है । पुरानी पीढी हेमा मालिनी के सपने देखती रही । नयी पीढी करीना कपूर के सपने देखती है ।
अब राजीव राजा ! हेमा मालिनी या करीना कपूर की हैसियत सोनिया गाँधी के सामने क्या है ? सोनिया गाँधी तो बडे बडे वी आई पी लोगों की पार्टीज में भी नहीं जाती । आखिर उनका भी तो 1 स्टेण्डर्ड है । आजकल के मुस्टण्डे सोचते होंगे कि पता नहीं ये फ़िल्मी हीरो हीरोईन कितनी बडी हस्तियाँ है । राजनीति फ़िल्म में कैटरीना कैफ़ ने रोल किया है ।

लेकिन फ़िल्मी रोल नकली होता है । असली हैसियत सडक पर आकर ही पता लगती है कि वास्तव में सोनिया गाँधी की हैसियत क्या है ? और कैटरीना कैफ़ क्या है । वैसे इन नाचने गाने वाले फ़िल्मी लोगों को मैं बडा आदमी नहीं मानता । इनका धन्धा ही ऐसा है कि ये लोग अक्सर टी वी स्क्रीन पर नजर आते रहते हैं ।
इस धन्धे में शो बाजी अधिक है । जनता ( खासकर युवा लोग ) प्रभावित हुये बिना नहीं रहते । बेशक कोई कहे कि अमिताभ बच्चन बहुत बडा आदमी है । लेकिन साल 2008 में राज ठाकरे ने अमिताभ का क्या तमाशा बनाया था । ये सब जानते ही हैं । जनता बेवकूफ़ है । इनको तो बेवकूफ़ बनाने वाले चाहिये ।
खैर.. मैंने कल ये भी सोचा कि अगर इन्दिरा गाँधी जिन्दा होती । अन्ना जी और हमारी जनता इन्दिरा गान्धी से पंगा ले लेती । तो फ़िर भगवान ही जानता कि क्या होता ।
शायद कुछ गरम मिजाज पढी लिखी महिलायें भी मद में आकर सोचती होंगी कि हम पता नहीं क्या है ? उनसे कोई कहे कि - बहन जी ! बस बहुत ड्रामा हो गया । शान्त हो जाईये । और लिम्का पीजिये । आप तो कुछ घण्टों की ही मास्टरनी । जज । डाक्टर । प्रिन्सिपल आदि हैं । लेकिन सोनिया जी तो 24 घण्टे पावर में है ।
राजीव राजा ! आज तुम भी थोडी देर के लिये बाबा गिरी छोडकर नेताओं की तरह मेरे इस छोटे से भाषण पर कोई बडा भाषण अपने देशी और विदेशी पाठको को दे डालो ।

अगर ज्यादा न सही । तो वी आई पी लोगों की तरह 2 शब्द तो कह ही डालो । क्यूँ कि तुम अब आम बाबा नहीं रहे । अब तुम वी आई पी बाबा हो गये हो ।
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सभी चित्र और लेख के प्रस्तुतकर्ता - श्री विनोद त्रिपाठी । प्रोफ़ेसर । लाला लाजपत राय नगर । भोपाल । मध्य प्रदेश । ई मेल से । त्रिपाठी जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
- अभी कुछ दिन पहले से मुझे इस बात पर बङी  हैरत हुयी कि महज 4-5 कहानी से प्रसून के चाहने वाले कितने अधिक हो गये । फ़िर दोबारा हैरत इस बात की हुयी कि महज कुछ ही लेखों में त्रिपाठी जी के न सिर्फ़ लगभग मेरे सभी स्थायी पाठक बल्कि बाहर के लोग भी फ़ैन हो गये । जबकि मैंने सब कुल 600 के लगभग लेख आदि तो लिखे ही होंगे ।
खैर..त्रिपाठी जी ने राजनीति पर मेरे विचार जानने चाहे हैं । जैसा कि आप लोगों को मालूम ही होगा कि मेरे परिवार में मृत्यु के बाद से सम्बन्धित कार्य चल रहे हैं । मेरे गुरुजी भी आये हुये हैं । और मुझे बङा आश्चर्य इस बात का हुआ कि इस मृत्यु जैसे कार्यकृम में अन्ना की ही चर्चा हो रही थी । शोक संवेदना के लिये आने वाले । घर वाले । बाबा लोग अन्ना ही अन्ना । बस अन्ना । हाँ मेरे गुरुजी इस तरह की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं लेते । और न हीं मैं ।
तब हम लोग अपने दूसरे घर में सिस्टर के यहाँ बैठे थे । जब अचानक लोग बोले - TV चलाओ । देखें नये 


समाचार क्या हैं । जैसे ही TV आन हुआ । मैं वहाँ से चला आया ।
वास्तव में चाहे वे बाबा रामदेव जी हों । अन्ना जी हों । या अन्य । ये सब मोहरे हैं । मीडिया की शतरंज के । मीडिया की भूमिका क्या हो ? ये बङा विचारणीय विषय है । एक तरफ़ जब प्रिंस जैसा बच्चा कुँयें में गिर जाता है । तब मीडिया की भूमिका अति प्रसंशनीय हो जाती है । लेकिन कुछ ही दिनों बाद ऐसी मूर्खता की खबरें देश के हिस्सों से आती हैं कि कई लोगों ने जान बूझ कर बच्चे गिरा दिये । ताकि वे भी रातोंरात मालामाल हो जायें । तब रोना आता है । इसी मीडिया के प्रभाव से कुछ ही समय में रामदेव इंटरनेशनल हो जाते हैं । और इसी मीडिया

की वजह से उनकी इंटरनेशल भद्द भी होती है । तब ऐसे घटनाकृमों से यह बात स्वतः उठती है कि किसी बात पर मीडिया का क्या और कैसा रुख होना चाहिये ।
मान लीजिये । जैसे सरकार ने रामदेव का तोङ निकाल लिया । किसी दूसरी युक्ति से अन्ना का निकाल ले । अभी मान लो ऐसा लगे भी कि अन्ना मुद्दे पर सरकार राजी हो गयी । फ़िर किसी किन्तु परन्तु के साथ भृष्टाचार के दूसरे तरीके विकसित हो जायँ । तब ऐसी किसी लीडरशिप ऐसे किसी आन्दोलन से भी जनता का विश्वास उठ जायेगा । मैं क्योंकि दो साल से कुछ कम समय से TV अखबार आदि बिलकुल नहीं पढता । अतः मुझे मालूम नहीं कि - ये मामला असल में क्या है ? लेकिन फ़िजा में जब भी ऐसी कोई आवाज गूँजती है । मैं आदतन हमेशा पीछे ( इतिहास को ) देखता हूँ । जब मैं पढता था । तब स्कूल में एक गीत अक्सर स्टेज आदि पर सुनाने के लिये बताया जाता था - दे दी हमें आजादी बिना खङग बिना ढाल । साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल । मुझे इस गाने से बेहद चिङ थी । आज कोई बच्चा इस गीत को सुने । तो यही

सोचेगा कि - कमाल के सन्त थे । बिना तोप तलवार के ही देश को आजाद करा दिया । और अकेले ही करा दिया ? पर क्या ये सच था ? ये मूढमति हिन्दुस्तानियों द्वारा स्वीकारा गया सच था ।
आईये आपको उसी समय की एक सत्य घटना बताते हैं । जिसके पात्रों के नाम और स्थान तो अब मुझे ध्यान नहीं हैं । पर घटना ज्यों की त्यों याद हैं । क्योंकि उस छोटी उमृ में भी मुझे ये बङी दिलचस्प घटना लगी । और मेरे स्वभाव से मेल खाती थी ।
घटना ये थी कि उसी समय किसी क्रांतिकारी टुकङी ने अपने किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये एक प्रभावशाली अंग्रेज महिला का अपहरण कर लिया । और उसे लेकर जंगल में छुप गये । अपहरण की चिठ्ठी अंग्रेजों को भिजवा दी गयी । अब अंग्रेज इतने सीधे भी नहीं थे कि खत पढकर ही मान जाते । उन्होंने तुरन्त उस जंगल को घेर लिया । और एक हेलीकाप्टर या हवाई जहाज वगैरह

जंगल के ऊपर चक्कर लगाने लगा । साथ ही एक लाउडस्पीकर पर अनाउंस होने लगा - वह महिला हमारे लिये जरा भी महत्वपूर्ण नहीं हैं । हम इस जंगल पर बम गिरा रहे हैं । जान की सलामती चाहते हो । तो बाहर आ जाओ ।
बस कुछ ही मिनटों में वे क्रांतिकारी भाई - लो जी लो जी..करते हुये महिला के साथ बाहर आ गये । और खुद भी धर लिये गये ।
अब ये क्या था ? ये एक सशक्त सिस्टम था । जिसने थोङी ही देर में समस्या हल कर दी । अतः मेरा हमेशा ही यही मानना है कि - जब तक सिस्टम नहीं सुधरेगा । जनता अपने स्तर पर जागरूक नहीं होगी । तब तक भारत के रामलीला मैदानों में इस तरह की रामलीला होती ही रहेगी । क्योंकि 90% जनता सिर्फ़ मजा लेती है । टाइम पास करती है । सिर्फ़ टाइम पास । शो चालू आहे - हाउस फ़ुल । फ़िल्म का नाम - मीडिया पावर ।
अक्ल बिगर गयी तेरी लाला झरे में कर रओ है कूरो । घर में नाय एक रुपैया तू खाय वे जाय रओ बूरो ।

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