21 मई 2011

वासना की ऊर्जा करुणा बन जाती है

मैं खुद तो निःसंदेह मार्ग पर चल पड़ा हूं । और मार्ग ही मंजिल होता जा रहा है । लेकिन जब प्रवचन में बैठता हूं । तो जो कुछ आप कहते हैं । उसे दूसरों को बताने के लिए मेरा मन संगृहीत किए जाता है । दूसरों के सामने विशेषकर प्रियजनों के सामने । उसे प्रतिपादित करने की इतनी आतुरता मुझमें क्यों है ? 
- स्वाभाविक है । जिन्हें हम प्रेम करते हैं । उन्हें हम वह दे देना चाहते हैं । जो हमें मिला है । जिसमें हमने आनंद जाना है । जिसमें हमें सत्य की भनक मिली है । जो स्वाद हमने चखा है । वह अपने प्रियजनों को चखा देना चाहते । हम उन्हें साझीदार बनाना चाहते हैं । बिलकुल स्वाभाविक है । बांटो । जो तुम्हें लग रहा है ठीक । उसे तुम कहो । पता नहीं किसी को । और को भी । ठीक लग जाए । 1 ही बात खयाल रखना । बांटने की आतुरता तो ठीक है । आग्रह ठीक नहीं है । ऐसा किसी की छाती पर मत बैठ जाना कि हमने माना । तुम्हें भी मानना पड़ेगा । क्योंकि तू मेरी पत्नी है । अगर तू मेरी नहीं मानेगी । तो बस, ठीक नहीं है । या तू मेरा पति है । आग्रह मत करना - निराग्रह । वह माने । या न माने । इसकी पूरी स्वतंत्रता देना । लेकिन तुम्हारे हृदय में भाव उठता है । उसे भी दबाना मत । तुम्हें लगता है सुख । रस प्रतीत होता है । बांटो । उलीचो । जितना उलीच सको । उतना अच्छा है । इससे तुम्हारे हृदय का रस और बढ़ेगा । जितना तुम उलीचोगे । बांटोगे । जितनी आंखों में तुम्हारा रस झलकने लगेगा । उतना तुम्हारा रस भी बढ़ेगा । बस 1 ही बात खयाल रखना । किसी पर थोपना मत । आग्रह मत करना । और मजे की बात यह है । अगर तुम आग्रह करो । तो तू दूसरा दूर हटता है । अगर तुम निराग्रह भाव से कहो । दूसरा पास आता है । अगर दूसरा यह बात देख ले कि तुम्हारी कोई आकांक्षा किसी को "कन्वर्ट' करने की । किसी को अपने मार्ग पर लाने की नहीं है । तो दूसरे को तुम्हारे मार्ग पर आ जाना आसान हो जाता है । और जैसे ही तुम दूसरे को अपने मार्ग पर लाने की चेष्टा में रत हो जाते हो । वैसे ही दूसरे में 1 प्रतिरोध 1 रेसिस्टेंस खड़ा होता है । उसका अहंकार बचाव करने लगता है । बांटो जरूर । लेकिन कोई अगर न लेना चाहे । तो जबर्दस्ती किसी के कंठ मत उतारना । जबर्दस्ती दिया गया अमृत भी जहर हो जाता है । प्रेम सहजता से, जितना बन सके । इसमें कुछ बुरा मत मानना कि तुम्हारे मन में यह क्यों ऐसी वासना उठती है ? यह वासना नहीं । यही करुणा है । वासना का अर्थ है । जब तक तुम अपने लिए पाना चाहते हो । तब तक वासना । जब तुम दूसरे को बांटना चाहते हो । तब करुणा । साधक के जीवन में करुणा का क्षण भी आएगा । मेरे पास जब तुम पहली दफा आना शुरू होते हो । तब तुम वासना से ही आना चाहते हो । तुम अपने लिए पाना चाहते हो । तुम्हारी खोज स्व केंद्रित है । लेकिन जैसे जैसे तुम्हें प्रतीति होगी । जैसे जैसे तुम्हारा अनुभव बढ़ेगा । जैसे जैसे तुम थोड़े जागोगे । होश सधेगा । वैसे वैसे तुम्हें लगेगा कि जो तुम्हें मिला है । इसे बांट देना है । यह करुणा का जन्म है । वासना की ऊर्जा करुणा बन जाती है । इसलिए बांटो । बेफिक्री से बांटो । निश्चिंत होकर बांटो । बस बांटते वक्त 1 ही खयाल सदा रखना । किसी पर बोझ न पड़े । ओशो
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भारत में सर्वाधिक गहन दर्शन - सांख्य दर्शन है । और सांख्य कहता है कि सभी कृत्य प्रकृति के हैं । तुम्हारी तो केवल चेतना है । सारे कृत्य । अच्छे या बुरे । सारे कर्म प्रकृति के हैं। तुम्हारी तो सिर्फ चेतना है । उस चेतना को पा लो । उस परम के साथ 1 हो जाओ । और सारे पाप नष्ट हो जायेंगे । और तुम ब्रह्म में स्थित हो जाओगे । 

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