02 मई 2011

हमारे चारों तरफ जो ब्रह्म शक्ति है

मूर्ति पूजा का विज्ञान - जिन लोगों ने भी मूर्ति विकसित की होगी । उन लोगों ने जीवन के परम रहस्य के प्रति सेतु बनाया था ।
मूर्ति पूजा शब्द सेल्फ कंट्राडिकटरी है । इसीलिए जो पूजा करता है । वह हैरान होता है कि मूर्ति कहां ? और जिसने कभी पूजा नहीं की । वह कहता है कि इस पत्थर को रखकर क्या होगा ? इस मूर्ति को रखकर क्या होगा ? ये 2 तरह के लोगों के अनुभव हैं । जिनका कहीं तालमेल नहीं हुआ है । और इसीलिए दुनिया में बड़ी तकलीफ हुई है ।
आप मंदिर के पास से गुजरेंगे । तो मूर्ति दिखाई पड़ेगी । क्योंकि पूजा के पास से गुजरना आसान नहीं है । तो आप कहेंगे - इन पत्थर की मूर्तियों से क्या होगा ? लेकिन जो उस मंदिर के भीतर कोई 1 मीरा अपनी पूजा में लीन हो गई है । उसे वहां कोई भी मूर्ति नहीं बची । पूजा घटित होती है । मूर्ति विदा हो जाती है । मूर्ति सिर्फ प्रारंभ है । जैसे ही पूजा शुरू होती है । मूर्ति खो जाती है ।
तो वह जो हमें दिखाई पड़ती है । वह इसीलिए दिखाई पड़ती है कि हमें पूजा का कोई पता नहीं है । और दुनिया में जैसे जैसे पूजा कम होती जाएगी । वैसे वैसे मूर्तियां बहुत दिखाई पड़ेंगी । और जब बहुत मूर्तियां दिखाई पड़ेंगी । और पूजा कम हो जाएगी । तो मूर्तियों को हटाना पड़ेगा । क्योंकि पत्थरों को रखकर क्या करिएगा ? उनका कोई प्रयोजन नहीं है । साधारणतः लोग सोचते हैं कि जितना पुराना आदमी होता है । जितना आदिम । उतना मूर्ति पूजक होता है । जितना आदमी बुद्धिमान होता चला जाता है । उतना ही मूर्ति को छोड़ता चला जाता है । सच नहीं है यह बात । असल में पूजा का अपना विज्ञान है । वह जितना ही हम उससे अपरिचित होते चले जाते हैं । उतनी ही कठिनाई होती चली जाती है ।  इस संबंध में 1 बात और आपको कह देना उचित होगा । हमारी यह दृष्टि नितांत ही भ्रांत और गलत है कि आदमी ने सभी दिशाओं में विकास कर लिया है । जब हम कहते हैं विकास । तो उससे भ्रम पैदा होता है कि सभी दिशाओं में विकास हो गया होगा । इवोल्यूशन हो गई होगी । आदमी की जिंदगी इतनी बड़ी चीज है कि अगर आप एकाध चीज में विकास कर लेते हैं । तो आपको पता ही नहीं चलता कि आप किसी दूसरी चीज में पीछे छूट जातें हैं ।
अगर आज विज्ञान पूरी तरह विकसित है । तो धर्म के मामले में हम बहुत पीछे छूट गए हैं । कभी धर्म विकसित होता है । तो विज्ञान के मामले में पीछे छूट जाते हैं । कभी ऐसा होता है कि 1 आयाम में हम कुछ जान लेते हैं । दूसरे आयाम को भूल जाते हैं ।
1880  में यूरोप में अल्टामीरा की गुफाएं मिली हैं । उन गुफाओं में 20 000 साल पुराने चित्र हैं । और रंग ऐसा है । जैसे सांझ को चित्रकार ने किया हो । डान मार्सिलानो ने, जिसने वे गुफाएं खोजीं । उस पर सारे यूरोप में बदनामी हुई उसकी । लोगों ने यह शक किया कि ये अभी इसने पुतवा कर रंग तैयार करवा लिए हैं । ये अभी गुफा में रंग पोते गए हैं । और जो भी चित्रकार देखने गया । उसी ने कहा कि यह मार्सिलानो की धोखाधड़ी है । इतने ताजे रंग पुराने तो हो ही नहीं सकते । उन चित्रकारों का कहना भी ठीक ही था । क्योंकि वानगोग के चित्र सौ साल पुराने नहीं हैं । लेकिन सब फीके पड़ गए हैं । और पिकासो ने अपनी जवानी में जो चित्र रंगे थे । उसके बूढ़े होने के साथ वे चित्र भी बूढ़े हो गए हैं । आज सारी दुनिया में किसी भी कोने में, चित्रकार जिन रंगों की 100 साल में वे फीके हो ही जाने वाले हैं ।
लेकिन जब मार्सिलानो की खोज पूरी तरह सिद्ध हुई । और उन गुफाओं का निर्णायक रूप से निष्कर्ष निकल गया कि - वे 20 000  साल पुरानी हैं । तो बड़ी मुश्किल हो गई । क्योंकि जिन लोगों ने वे रंग बनाए होंगे । रंग बनाने के संबंध में वे हमसे बहुत विकसित रहे होंगे । हम आज चांद पर पहुंच सकते हैं । लेकिन 100 साल से ज्यादा चलने वाला रंग बनाने में हम अभी समर्थ नहीं हैं । यह थोड़ी हैरानी की बात मालूम पड़ती है । और 20 000 साल पहले जिन लोगों ने वे रंग बनाए होंगे । वे कुछ कीमिया जानते थे । जो हमें बिलकुल पता नहीं है । इजिप्त की ममीज हैं - कोई 10 000  साल पुरानी । आदमी के शरीर हैं । वे जरा भी नहीं खराब हुए हैं । वे ऐसे ही रखे हैं । जैसे कल रखे गए हों । और आज तक भी राज नहीं खोल जा सका है कि किन रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया गया था । जिससे कि लाशें इतनी सुरक्षित 10 000 साल तक रह सकीं हैं । वैज्ञानिक कहते हैं कि वे ठीक वैसी ही हैं । जैसे कल आदमी मरा हो । किसी तरह का डिटिरिओरेशन, किसी तरह का उनमें ह्रास नहीं हुआ है । पर हम साफ नहीं कर पाए अभी तक कि कौन से द्रव्यों का उपयोग हुआ है ।
इजिप्त के पिरामिडों पर जो पत्थर चढ़ाए गए हैं । अभी भी हमारे पास कोई क्रेन नहीं है । जिनसे हम उन्हें चढ़ा सकें । आदमी के तो वश की बात ही नहीं है । लेकिन जिन लोगों ने वे चढ़ाए थे पत्थर । उनके पास क्रेन रही होगी । इसकी संभावना कम मालूम होती है । तो जरुर उनके पास कोई और टेक्नीक, और तरकीबें रही होंगी । जिनसे वे पत्थर चढ़ाए गए हैं । जिनका हमें कोई अंदाज नहीं है ।
और जीवन के सत्य बहुयामी हैं । 1 ही काम बहुत तरह से किया जा सकता है । और 1 ही काम तक पहुंचने की बहुत सी टेक्नीक और बहुत सी विधियां हो सकती हैं । और फिर जीवन इतना बड़ा है कि जब हम 1 दिशा में लग जाते हैं । तो हम दूसरी दिशाओं को भूल जाते हैं । मूर्ति बहुत विकसित लोगों ने पैदा की थी । सोचने जैसा है । क्योंकि मूर्ति का संबंध है । वह जो कास्मिक फोर्स है । हमारे चारों तरफ जो ब्रह्म शक्ति है । उससे संबंधित होने का सेतु है वह । जिन लोगों ने भी मूर्ति विकसित की होगी । उन लोगों ने जीवन के परम रहस्य के प्रति सेतु बनाया था । ओशो 

1 टिप्पणी:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत रोचक..