18 अप्रैल 2011

तुम्हारे चारों तरफ तरंगें मौजूद हैं

महानिर्वाण को उपलब्ध हो जाने के बाद भी । ज्ञानी और गुरुजन समष्टि में मिलकर किस प्रकार हमारी सहायता करते हैं ? इसे अधिक स्पष्ट करें । 
- सहायता करते हैं । ऐसा कहना ठीक नहीं । सहायता होती है । करने वाला तो बचता नहीं । नदी तुम्हारी प्यास बुझाती है । ऐसा कहना ठीक नहीं । नदी तो बहती है । तुम अगर पी लो जल । प्यास बुझ जाती है । अगर नदी का होना प्यास बुझाता होता । तब तो तुम्हें पीने की भी जरूरत न थी । नदी ही चेष्टा करती । नदी तो निष्क्रिय बही चली जाती है । नदी तो अपने तई हुई चली जाती है । तुम किनारे खड़े रहो जन्मों जन्मों तक । तो भी प्यास न बुझेगी । झुको । भरो अंजुली में । पीयो । प्यास बुझ जाएगी ।
ज्ञानीजन समष्टि में लीन हो जाने के बाद ही या समष्टि में लीन होने के पहले तुम्हारी सहायता नहीं करते । क्योंकि कर्ता का भाव ही जब खो जाता है । तभी तो ज्ञान का जन्म होता है । जब तक कर्ता का भाव है । तब तक तो कोई ज्ञानी नहीं । अज्ञानी है । 
मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर रहा हूं । और न तुम्हारी कोई सेवा कर रहा हूं । कर नहीं सकता हूं । मैं सिर्फ यहां हूं । तुम अपनी अंजुलि भर लो । तुम्हारी झोली में जगह हो । तो भर लो । तुम्हारे हृदय में जगह हो । तो रख लो । तुम्हारा कंठ प्यासा हो । तो पी लो । ज्ञानी की सिर्फ मौजूदगी, निष्क्रिय मौजूदगी पर्याप्त है । करने का ऊहापोह वहां नहीं है । न करने की आपाधापी है ।
इसलिए ज्ञानी चिंतित थोड़े ही होता है । तुमने उसकी नहीं मानी । तो चिंतित थोड़े ही होता है । उसने जो तुम्हें कहा । वह तुमने नहीं किया । तो परेशान थोड़े ही होता है । अगर कर्ता भीतर छिपा हो । तो परेशानी होगी । तुमने नहीं माना । तो वह आग्रह करेगा । जबरदस्ती करेगा । अनशन करेगा कि मेरी मानो । नहीं तो मैं उपवास करूंगा । अपने को मार डालूंगा । अगर मेरी न मानी ।
सत्याग्रह शब्द बिलकुल गलत है । सत्य का कोई आग्रह होता ही नहीं । सब आग्रह असत्य के हैं । आग्रह मात्र ही असत्य है । सत्य की तो सिर्फ मौजूदगी होती है । आग्रह क्या है ? सत्य तो बिलकुल निराग्रह है । सत्य तो मौजूद हो जाता है । जिसने लेना हो । ले ले । उसका धन्यवाद । जो ले ले । जिसे न लेना हो । न ले । उसका भी धन्यवाद । जो न ले । सत्य को कोई चिंता नहीं है कि लिया जाए । न लिया जाए । हो । न हो ।
सत्य बड़ा तटस्थ है । करुणा की कमी नहीं है । लेकिन करुणा निष्क्रिय है । नदी बही जाती है । अनंत जल लिए बही जाती है । लेकिन हमलावर नहीं है । आक्रमक नहीं है । किसी के कंठ पर हमला नहीं करती । और किसी ने अगर यही तय किया है कि प्यासे रहना है । यह उसकी स्वतंत्रता है । वह हकदार हैं प्यासा रहने का । 
संसार बड़ा बुरा होगा । बड़ा बुरा होता । अगर तुम प्यासे रहने के भी हकदार न होते । संसार महागुलामी होती । अगर तुम दुखी होने के भी हकदार न होते । तुम्हें सुखी भी मजबूरी में किया जा सकता । तो मोक्ष हो ही नहीं सकता था फिर । तुम स्वतंत्र हो । दुखी होना चाहो । दुखी । तुम स्वतंत्र हो । सुखी होना चाहो । सुखी । आंख खोलो । तो खोल लो । बंद रखो । तो बंद रखो । सूरज का कुछ लेना देना नहीं । खोलोगे । तो सूरज द्वार पर खड़ा है । न खोलोगे । तो सूरज कोई अपमान अनुभव नहीं कर रहा है ।
जीते जी । या शरीर के छूट जाने पर ज्ञान 1 निष्क्रिय मौजूदगी है ।
इसको लाओत्से ने " वुईवेई ' कहा है । वुईवेई का अर्थ होता है - बिना किए करना । यह जगत का सबसे रहस्यपूर्ण सूत्र है । ज्ञानी कुछ करता नहीं । होता है । ज्ञानी बिना किए करता है । और लाओत्से कहता है कि जो कर करके नहीं किया जा सकता । यह बिना किए हो जाता है । भूलकर भी किसी के ऊपर शुभ लादने की कोशिश मत करना । अन्यथा तुम्हीं जिम्मेदार होओगे उसको अशुभ की तरफ ले जाने के । 
ऐसा रोज होता है । अच्छे घरों में बुरे बच्चे पैदा होते हैं । साधु बाप बेटे को असाधु बना देता है । चेष्टा करता है साधु बनाने की । उसी चेष्टा में बेटा असाधु हो जाता है । और बाप सोचता है कि शायद मेरी चेष्टा पूरी नहीं थी । शायद मुझे जितनी चेष्टा करनी थी । उतनी नहीं कर पाया । इसीलिए यह बेटा बिगड़ गया । बात बिलकुल उलटी है । तुम बिलकुल चेष्टा न करते । तो तुम्हारी कृपा होती । तुमने चेष्टा की । उससे ही प्रतिरोध पैदा होता है ।
अगर कोई तुम्हें बदलना चाहे । तो न बदलने की जिद पैदा होती है । अगर कोई तुम्हें स्वच्छ बनाना चाहे । तो गंदे होने का आग्रह पैदा होता है । अगर कोई तुम्हें मार्ग पर ले जाना चाहे । तो भटकने में रस आता है । क्यों ? क्योंकि अहंकार को स्वतंत्रता चाहिए । और इतनी भी स्वतंत्रता नहीं ।
जो लोग जानते हैं । वह बिना किए बदलते हैं । उनके पास बदलाहट घटती है । ऐसे ही घटती है । जैसे चुंबक के पास लोहकण खिंचे चले आते हैं । कोई चुंबक खींचता थोड़े ही है । लोह कण खिंचते हैं । कोई चुंबक आयोजन थोड़े ही करता है । जाल थोड़े ही फेंकता है । चुंबक का तो 1 क्षेत्र होता है । चुंबक की 1 परिधि होती है । प्रभाव की । जहां उसकी मौजूदगी होती है । तुम उसकी प्रभाव परिधि में प्रविष्ट हो गए कि तुम खिंचने लगते हो । कोई खींचता नहीं । 
ज्ञानी तो 1 चुंबकीय क्षेत्र है । उसके पास भर आने की तुम हिम्मत जुटा लेना । शेष होना शुरू हो जाएगा । इसीलिए तो ज्ञानी के पास आने से लोग डरते हैं । हजार उपाय खोजते हैं न आने के । हजार बहाने खोजते हैं न आने के । हजार तरह के तर्क मन में खड़े कर लेते हैं न आने के । हजार तरह अपने को समझा लेते हैं कि जाने की कोई जरूरत नहीं ।
पंडित के पास जाने से कोई भी नहीं डरता । क्योंकि पंडित कुछ कर नहीं सकता । अब यह बड़े मजे की बात है, कि पंडित करना चाहता है । और कर नहीं सकता । ज्ञानी करते नहीं । और कर जाते हैं ।
सतसंग बड़ा खतरा है । उससे तुम अछूते न लौटोगे । तुम रंग ही जाओगे । तुम बिना रंगे न लौटोगे । वह असंभव है । लेकिन ज्ञानी कुछ करता है । यह मत सोचना । हालांकि तुम्हें लगेगा । बहुत कुछ कर रहा है । तुम पर हो रहा है । इसलिए तुम्हें प्रतीति होती है कि बहुत कुछ कर रहा है । तुम्हारी प्रतीति तुम्हारे तईं ठीक है । लेकिन ज्ञानी कुछ करता नहीं ।
बुद्ध का अंतिम क्षण जब करीब आया । तो आनंद ने पूछा कि - अब हमारा क्या होगा ? अब तक आप थे । सहारा था । अब तक आप थे । भरोसा था । अब तक आप थे । आशा थी कि आप कर रहे हैं । हो जाएगा । अब क्या होगा ? 
बुद्ध ने कहा - मैं था । तब भी मैं कुछ कर नहीं रहा था । तुम्हें भ्रांति थी । और इसलिए परेशान मत होओ । मैं नहीं रहूंगा । तब भी जो हो रहा था । वह जारी रहेगा । अगर मैं कुछ कर रहा था । तो मरने के बाद बंद हो जाएगा ।
लेकिन मैं कुछ कर ही न रहा था । कुछ हो रहा था । उससे मृत्यु का कोई लेना देना नहीं । वह जारी रहेगा । अगर तुम जानते हो कि कैसे अपने हृदय को मेरी तरफ खोलो । तो वह सदा सदा जारी रहेगा ।
ज्ञानी पुरुष जैसा दादू कहते हैं - लीन हो जाते हैं । उनकी लौ सारे अस्तित्व पर छा जाती है । उनकी लौ फिर तुम्हें खींचने लगती है । कुछ करती नहीं । अचानक किन्हीं क्षणों में जब तुम संवेदनशील होते हो । ग्राहक क्षण होता है कोई । कोई लौ तुम्हें पकड़ लेती है । उतर आती है । वह हमेशा मौजूद थी । जितने ज्ञानी संसार में हुए हैं । उनकी किरणें मौजूद हैं । तुम जिसके प्रति भी संवेदनशील होते हो । उसी की किरण तुम पर काम करना शुरू कर देती है । कहना ठीक नहीं कि काम करना शुरू कर देती है । काम शुरू हो जाता है ।
इसलिए तो ऐसा होता है कि कृष्ण का भक्त ध्यान में कृष्ण को देखने लगता है । क्राइस्ट का भक्त ध्यान में क्राइस्ट को देखने लगता है । दोनों 1 ही कमरे में बैठे हों । दोनों ध्यान में बैठे हों । 1 क्राइस्ट को देखता है । 1 कृष्ण को देखता है । दोनों की संवेदनशीलता 2 अलग धाराओं की तरफ हैं । कृष्ण की हवा है । क्राइस्ट की हवा है । तुम जिसके लिए संवेदनशील हो । वही हवा तुम्हारे तरफ बहनी शुरू हो जाती है । तुमने जिसके लिए हृदय में गङ्ढा बना लिया है । वही तुम्हारे गङ्ढे को भरने लगता है ।
अनंतकाल तक ज्ञानी का प्रभाव शेष रहता है । उसका प्रभाव कभी मिटता नहीं । क्योंकि वह उसका प्रभाव ही नहीं है । वह परमात्मा का प्रभाव है । अगर वह ज्ञानी का प्रभाव होता । तो कभी न कभी मिट जाता । लेकिन वह शाश्वत सत्य का प्रभाव है । वह कभी भी नहीं मिटता ।
तुम थोड़े से खुलो । और तुम्हारे चारों तरफ तरंगें मौजूद हैं । जो तुम्हें उठा लें आकाश में । जो तुम्हारे लिए नाव बन जाएं । और ले चलें भवसागर के पार । चारों तरफ हाथ मौजूद हैं । जो तुम्हारे हाथ में आ जाएं । तो तुम्हें सहारा मिल जाए । मगर वे हाथ झपट्टा देकर तुम्हारे हाथ को न पकड़ेंगे । तुम्हें ही उन हाथों को टटोलना पड़ेगा । वे आक्रमक नहीं हैं । वे मौजूद हैं । वे प्रतीक्षा कर रहे हैं । लेकिन आक्रमक नहीं हैं । ज्ञान अनाक्रमक है । ज्ञान का कोई आग्रह नहीं है ।
इसे थोड़ा समझ लो । ज्ञान का नियंत्रण तो है । आमंत्रण तो है । आग्रह नहीं है । आक्रमण नहीं है । जिसने सुन लिया आमंत्रण । वह जगत के अनंत स्रोतों से जलधार लेने लगता है । जिसने नहीं सुना आमंत्रण । उसके पास ही जलधाराएं मौजूद होती हैं । और वह प्यासा पड़ा रहा है । तुम किनारे पर ही खड़े खड़े प्यासे मरते हो । जहां सब मौजूद था ।
लेकिन कोई करने वाला नहीं है । करना तुम्हें होगा । बुद्ध ने कहा है - बुद्धपुरुष तो केवल इशारा करते हैं । चलना तुम्हें होगा । ओशो 

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

kya baat hai guru ji,ek or bhut he imp shiksha aapne de di. thank you so much.

pamymaan ने कहा…

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pamymaan ने कहा…

Ram ram g. Maine aapke dawara likhi baate padhi mujhe bhut achi lagi. Aaj kal sahi baate koi nahi batata. Me aapke group ya sanstha ko join karna chata hu. Pls mujhe batao ki me kaise join kar sakta hu???