19 अप्रैल 2011

ये बाबाजी 1 पल में पूरी कायनात को खतम कर सकते हैं ।

नमस्ते ! श्री राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जी । समझ में नहीं आ रहा कि बात कैसे और कहाँ से शुरु करुँ ? मैं अपने बारे में क्या बताऊँ । मैं आपका अनाम पाठक हूँ । अनाम इसलिये क्युँ कि मेरी पहचान इस लायक नहीं कि मैं किसी को कह सकूँ कि मैं ये हूँ । या मैं वो हूँ ।
मैं अपने बारे में सिर्फ़ इतना ही बताना चाहता हूँ कि मैं १०० प्रतिशत आस्तिक आदमी हूँ । मैंने आपसे कोई सवाल नही पूछ्ना । सवाल भी क्युँ पूछूँ ? आपके ब्लाग में मुझे मेरे हर सवाल का जवाब बिना पूछे ही मिल गया । जो नही पता था । उसकी भी जानकारी मिल गयी । और दिन पर दिन लगातार आपके लेखों और आपके उत्तम पाठकों द्वारा नयी नयी जानकारी पढने को मिल रही है । फ़िर और क्या चाहिये ?
मुझे तो बिना मेहनत किये । बिना सवाल पूछे ग्यान के मोती मुफ़्त में मिल रहे हैं ।
श्री राजीव जी ! ये मेरा पहला ई-मेल है । मैं आपसे कुछ पूछ्ने की बजाय कुछ बताना चाहता हूँ । ये मेरी बीती हुई जिन्दगी का १ छोटा सा अनुभव है । साल २००६ से पहले मैं कभी किसी सतसग में नही गया था । लेकिन पूजा पाठ जरुर किया करता था ।
 साल २००६ में जून या जुलाई के महीने में मेरा १ दोस्त मुझे किसी आलीशान सतसंग ले गया । मैं भी दिल की खुशी से उसके साथ चल पडा । पर वहाँ पहुँचते ही मेरी तो सारी खुशी हवा हो गयी । वहाँ सतसंग जैसा कोई माहौल ही नही था । ऐसा लग रहा था । जैसे लोग पिकनिक मनाने आये हैं ।
वहाँ सबसे पहले हमारी गाडी की चैकिंग की गयी । जितनी चैकिंग वहाँ की गयी । शायद इतनी चैकिंग पोलिस भी नहीं करती ।


फ़िर आगे जाकर हमारे बैग । मोबाइल फ़ोन । पर्स । कपडे और पूरे शरीर की चैकिंग की गयी । आदमीयो की चैकिंग पुरुष कर रहे थे । और औरतों की चैकिंग महिलाएँ कर रही थी । मैं अन्दर ही अन्दर गुस्से से उबल रहा था ।
फ़िर वहाँ रात का खाना फ़िल्म की तरह टिकट कटाने के बाद मिलता है \ उस वकत मुझे बहुत सी तादाद में प्रेमी जोडे भी दिखायी दिये । अगले दिन सुबह १० और ११ के बीच सतसंग था । भीड हजारों की तादाद में थी । औरतें अलग बैठी थीं । और पुरुष अलग ।
अमीर लोगो की पंक्तियाँ अलग थी । और मेरे जैसों की अलग । बाबा जी के आने से पहले बन्दूकधारी और लाठी वाले सेवादार हम जैसे सतसंगीयो की तरफ़ गुस्से से देख रहे थे । इतने में बाबा जी ने फ़िल्मी स्टाईल से एन्ट्री मारी ।
मेरे आसपास के लोग ( जो गरीब । बूङे । साधारण कपडों में थे । ) जिगयासावश प्रेम से उठकर बाबा जी को एडियों के भार पर खडे होकर देखने लगे । उनमें से किसी ने कोई अनुचित हरकत नही की । बस उनकी भावना सिर्फ़ प्रेम की ही थी ।
इतने मे सेवादारों ने थप्पडों और लाठीयों से उन लोग को अपनी जगह पर बिठाना शुरु कर दिया । कुछ लोगों की पिटाई होते ही, बाकी बेचारे खुद ब खुद डरकर अपनी जगह पर बैठ गये । तब फ़िर १० मिनट बाद शुरु हुए १ घन्टे के सतसंग में पहले तो बाबा जी ने जो लोग सतसंग सुनने आये थे । उनको डाँटा ।
 और कहा कि - तुम लोग मेरे दर्शन ले नहीं रहे थे । तुम लोग तो अपने दर्शन मेरे को दे रहे थे । तुम लोगों की आदतें पशुओं की तरह हैं ?


तुम लोगो को सतगुरु का आदर करना नही आता । जब तुम लोगों ने मुझे अपना बाप माना है । तो बाप के सामने आने का तरीका भी सीखो ? फ़िर उसके बाद बाबा जी ने सतसंग रूपी भाषण दिया । जो मेरे लिये मूल्यवान नही था ।
 हम लोगों को रात वहीं रहना पडा । जो अमीर लोग थे । वहाँ उनके लिये बहुत तादाद में फ़्लैट बने हुए हैं । ( विद एयर कन्डीशन )  बाकी लोग ( आम लोग ) वहाँ जमीन पर १ बडे से शैड के नीचे सोते रहे । बाबाजी के आसपास बहुत बाडीगार्ड थे ।
रात को वहाँ का १ निवासी बता रहा था कि - बाबा जी पूर्ण परमात्मा हैं । इनमें और परमात्मा में कोई फ़र्क नहीं । इनकी पावर और परमात्मा की पावर में कोई अन्तर नहीं । जैसे परमात्मा पूरे बृह्माण्ड को १ पल में खत्म कर सकता है ।
 वैसे ही ये बाबाजी भी १ पल में पूरी कायनात को खतम कर सकते हैं । मैं बोला तो कुछ नही । लेकिन मन में सोचा कि - हाँ, तभी तेरे बाबाजी को इतने सारे बाडीगार्डस की जरूरत रहती है । ताकी इनको न कोई बिना थूक लगाये रगड दे ।
वहाँ कुछ चरित्रहीन लोग भी सरेआम घूमते दिखाई दिये । जो महिला सतसंगीयों को अनादर से देख रहे थे । हाँ १ बात और बाबाजी सतसंग में सिगरेट और तम्बाकू की बहुत निन्दा कर रहे थे । और इसके सेवन को महापाप बता रहे थे । और मैंने अपने आखों से उनके ही आलीशान आश्रम में उनके ही सेवादार को जर्दा और तम्बाकू का चोरी चोरी सेवन करते देखा ।
 वो अलग बात है कि बाहर से आये लोगों की डबल चैकिंग की जाती है । वहाँ जो कुछ भी देखा । कुछ भी अच्छा नही लगा ( इस वकत ये सब लिखते हुये भी मूड खराब हो रहा है । ) मैंने उस दिन मन में कसम खाली कि आगे से यहाँ नही आऊँगा ।
 उस दिन के बाद मैं वहाँ कभी नहीं गया । और तो और किसी भी सतसंग में नहीं गया । मैंने जानबूझ कर आपको उस आश्रम या बाबा का नाम नहीं बताया । क्युँ कि मुझे पता है कि आपका ब्लाग जन-कल्याण के लिये है ।
 इसलिये किसी का नाम ( चाहे वो ढोंगी ही क्युँ न हो ) छापना उचित नहीं । मुझे वहाँ बाबा के बारे में १ बात और सुनने को मिली कि बाबा जी बाबा बनने से पहले विदेश में अच्छी तनखाह वाली नौकरी करते थे । बस कुछ साल पहले ही बाबा बने हैं ।
 उनका सेवादार बडी खुशी से कह रहा था कि - हमारे पूजनीय बाबा जी विदेशों में खूब सतसंग करते हैं । इन्डिया में कम ही रहते हैं ।


तब मैंने मन में कहा - तो तेरा नया बाप साधना कब करता है ? पहले कई साल नौकरी की । और अब विदेश भ्रमण चल रहा है । साधना का वकत कब निकालता है ? उस सतसंग के कई दिन बाद मुझे उस बाबा का ही दूर का रिशतेदार मिला । उसने मुझे बताया कि बाबा जी बाबा बनने से पहले बडे शौक से सिगरेट पीते थे । और शराब भी पीते थे ।
 मैं सब कुछ चुपचाप सुनता रहा । और देखता रहा । लेकिन मेरे मन में बडा आघात लगा । मैं १०० प्रतिशत आस्तिक हूँ । इसलिये मन में बडी पीडा महसूस हुई कि आजकल ये बडे बडे आश्रम और बाबाओं का जो हाल है । वो भरोसा करने लायक बिल्कुल नहीं ।
मैं एक तरह से उदास रहने लगा था । तभी पिछ्ले साल अचानक ही १ दिन आपके ब्लाग पर आना हो गया । तब कुछ सकून महसूस हुआ । आपके ब्लाग पर आना जाना शुरु हो गया । फ़िर ये सिलसिला लगातार हर रोज शुरु हो गया ।
 अब तो आपके ब्लाग पर हर रोज २ बार आता हूँ । सुबह और शाम ।
 श्री राजीव जी ! मैं आपसे पहले ही बोल चुका हूँ कि मैं आपसे पूछ्ने कुछ भी नहीं आया । सब कुछ अपने आप ही आपके ब्लाग से पढने को मिल रहा है ।
 बस ये मेरा निवेदन है । प्रार्थना है । बिनती है कि आप अपना ब्लाग चलाते रहें । इस ब्लाग को बन्द मत करना । ये ब्लाग शुरु करके आपने बहुत परोपकार का काम किया है । मेरा ये अन्दाजा है कि जितने पाठक आपको ई-मेल करते हैं । आपके ब्लाग को पढने वालो की गिनती उनसे भी ज्यादा है ।
ये बात और है कि हर कोई आप को ई-मेल नही करता । या किसी वजह से कर नहीं पाता । अब मैं और क्या लिखूँ । आपकी जितनी तारीफ़ की जाये । उतनी ही कम है । मेरी दिल से शुभकामनाये आपके साथ हैं । बस आप लगे रहिये । इस महान कार्य में । रूकना मत । हो सके तो मेरे मन के विचारों रूपी इस लेख को अपने ब्लाग मे जरूर छापें । आपका अनाम पाठक ।

*** प्रिय सतसंग प्रेमी बन्धु ! सत्यकीखोज..पर आपका बहुत बहुत स्वागत हैं । आपको यहाँ आकर ग्यान संतुष्टि मिली । यह प्रभु की कृपा ही है । आपने बहुत सुन्दर और जनोपयोगी पत्र लिखा है । मैं अपने सभी पाठकों से..इन भाई की प्रेरणा से यह कहना चाहूँगा कि आज नकली बाबाओं ने ऐसा माहौल बना दिया कि लोग सच्चे और सीधे साधुओं को भी शक की निगाह से देखने लगे हैं । और ऐसा मानने लगे हैं कि ग्यान ध्यान सब बकबास बातें हैं ।
मैं आप सभी लोगों से आवाहन करता हूँ कि भारत की इस समृद्ध और गौरवशाली ग्यान परम्परा को फ़िर से दृण स्थापित करने में मेरा सहयोग करें । मैं इसके लिये आपसे कुछ भी नहीं चाहता । पर जो कुछ आपको यहाँ प्राप्त होता है । उसे सतसंग रूप में अधिक से अधि्क लोगों को बतायें । और यकीन मानिये । ये किसी फ़ालतू बाबा के सतसंग में धक्के खाने की अपेक्षा बहुत पुण्य का कार्य है ।

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