24 जनवरी 2011

मृत्यु के आगे बेवश


1998 को मेरी बड़ी बेटी जन्म 15 । 2 । 1998 । का देहांत हुआ था  घटना इस प्रकार है ।
 अक्टूबर 1997 को अचानक बुखार आया । डा. के पास ले गए तो उसने बताया कि मलेरिया हुआ है । इलाज किया ठीक हो गई । करीब 15 दिन बाद स्कूल से वापस आई कि बुखार आ रहा है । हम फिर डा. के पास ले गए । उसे मलेरिया वापस आया था । लेकिन इस बार बुखार उतरा ही नहीं उतरता फिर चढ जाता । धीरे धीरे उसका खाना बंद हो गया । एक खूबसूरत चेहरा काला पड़ता जा रहा था ।

दिसम्बर आते ही उसने खाट पकड ली । इस दौरान हमने होम्योपैथी से भी इलाज करवाया । पर कुछ नही हुआ । हमारी दुकान में काम करने वाले सज्जन एक आदमी को लाए । जिसने कुछ मंत्र पड़े और तकिए के नीचे कुछ रखा । पर कुछ फायदा नही हुआ ।

वो बोले कि मेरे बस का कुछ नही है मेरे गुरु से करवाओ । हम गुरु के पास गए  उन्होंने भी किया पर कुछ फायदा नजर नही आया । कोई कहता मुठमारी ( मूठ चलाना ) । है । कोई कहता उनघाला हुआ है । कोई कहता नजरा गई है ? आखिर 25 दिसंबर को हमने हास्पिटल में भर्ती करवाया । पर कोई फायदा न हुआ । उसका बुखार उतरता ही नहीं था ।

5 जनवरी 1998 को सुबह मेरे पति किसी मजार से धागा और गेंहू लाए । मैं उसे बाँध ही रही थी कि उसने कहा । मुझे बाथरूम जाना है । धागा वही रख के मैं उसे बाथरुम ले गई । वो बैठी ही थी कि चिल्ला पड़ी । मम्मी ।

मैंने पलटकर देखा तो वो बेहोश थी । कुछ लोग उठाकर उसे पलंग पर लाए  वो तडप रही थी । थोड़ी देर बाद वो कोमा में चली गई । 6 जनवरी को सुबह सवेरे 7 । 30 बजे उसकी मृत्यु हो गई । उसका जन्म भी सुबह 7 । 30 का ही था ।

 क्या उस पर कोई क्रिया हुई थी क्या उसका टाइम आ गया था  मुझे सच्चाई से अवगत कराएँ ?
मेरी विनती है मेरा नाम न छापें ।


मेरी बात..इनकी बात का एक लाइन का उत्तर है मेरे पास । जिसकी डोर ऊपर से टूट गयी उसे कोई नहीं जोङ सकता और वास्तव में यही बात थी । इनकी दिवंगत पुत्री अल्पायु लेकर आयी थी । उसे कोई क्रिया नहीं कराई गयी थी और उसे कोई बीमारी भी नहीं थी । पर मृत्यु भी कोई न कोई बहाना लेकर आती है ।

इनकी पुत्री जिस दिन बीमार हुयी । उसी दिन ऊपर से उसकी चेतना आपूर्ति खत्म कर न्यूनतम ( सांस चलती रहे इतनी) आपूर्ति की सप्लाई रह गयी । जीवन तत्व प्रकृति ने वापस खींच लिये और शरीर की गर्माहट बनी रहे । इस हेतु बस उसे नाममात्र जीवित रखा गया । इस तरह की ये अकेली मृत्यु नहीं थी । बल्कि ज्यादातर मृत्यु इसी तरह से होती हैं । बीमारी से लेकर मृत्यु तक का टाइम शिफ़्टिंग टाइम होता है । अर्थात जीवात्मा कहाँ शिफ़्ट होनी है । इस प्रकार के डाक्यूमेंट पर चित्रगुप्त आफ़िस में कार्य चल रहा होता है । और प्रत्येक क्षण करोङों जीवात्माओं का चलता ही रहता है । इसलिये इन क्रियाओं में स्वाभाविक इतना समय लग ही जाता है । उसके द्वारा टायलेट की इच्छा व्यक्त करते समय । ऊपर से उसके फ़ाइनल आदेश जारी हो गये थे ।

ये एक बङी बात थी कि इन्होंने मृत्यु को करीब से देखा था । जिस समय वह बेतरह तङप रही थी । उसके पिंडी चक्र टूट रहे थे । टायलेट के समय.. मम्मी चिल्लाते समय उसके गृन्थियों के लाक्स आटोमेटिक खुल चुके थे । और वह नयी नयी डरावनी छायाओं को देख रही थी । और बेहद भयभीत थी । वास्तव में मृत्यु के समय पिंडी चक्रों के टूटने का कष्ट और विकराल डरावनी छायाओं के भय से आदमी हतप्रभ सा हो जाता है । शरीर में ऊर्जा होती नहीं । और दिमाग निष्क्रिय हो जाता है । बेहोशी या कोमा जैसी स्थिति । शरीर में रहते हुये भी । शरीर से सभी सम्पर्क टूट जाना होता है । और आखिरकार उसकी मृत्यु हो गयी । और नये सफ़र । नये शरीर । नयी योनि । नये जीवन की आवश्यक कार्यवाही हेतु वह यमदूतों के साथ यमपुरी या यमलोक रवाना हो गयी । इसी के साथ आपसे । उसके इस जन्म के संस्कार समाप्त हो गये ।

लेकिन किसी भी बात का अंतिम सत्य यही नहीं है । मानव जीवन के अनगिनत रहस्यों की ये दास्तान बहुत लम्बी है । इसलिये ये बात यहीं समाप्त नहीं होती । बल्कि मेरे विचार से तो ये मौत ही है । जो जीवन के पार सोचने के लिये चिंतन के नये नये अध्याय खोलती है ।

आप बङे से बङे ग्यानी के पास चले जायँ । उपरोक्त घटना को इतना ही और सबसे बङा सत्य बतायेगा । यानी इसके आगे हम बेवश हैं । ईश्वर के आगे हम बेवश हैं । मौत के सामने किसी का वश नहीं चलता । यही सुनने को मिलेगा । पर दरअसल ये आधा भी नहीं चौथाई सत्य ही है । शेष 75 % सत्य कुछ अलग ही कहता हैं । क्या आप सावित्री सत्यवान । यमराज नचिकेता । कोढी ब्राह्मण की पतिवृता पत्नी और मांडव्य ऋषि । स्वरूपानन्द । कबीर । नानक । खिज्र साहब आदि तमाम संतों का इतिहास भूल गये । जिन्होंने मृत्यु का मुँह मोङकर उसे बैंरंग वापस कर दिया । यहाँ यह प्रश्न भी तो है कि अल्पायु आखिर क्यों मिली ?

आईये आगे की बात से पहले । कुछ अरब साल पहले । आपको बृह्ममंडल की बात बताते हैं । जब पहली बार सृष्टि का निर्माण हो रहा था और 33 करोङ देवताओं में निचले मगर प्रमुख स्तर के लोगों के पद और उनके अधिकारों का निर्धारण हो रहा था । तब इसमें मृत्युकन्या का लाखों सदस्यों वाला विशाल परिवार भी मौजूद था । रूप बदलने में माहिर । काली विकराल मृत्युकन्या नग्न अवस्था में अपने परिवार के साथ खङी आदेश की प्रतीक्षा कर रही थी ।  विशाल स्तनों और लम्बे केशों वाली ये देवी अपने कार्य के बारे में जानना चाहती थी । अपने कई रूपों के बारे में जानना चाहती थी । जो उसे मिलने वाले थे ।

( पर वह एकदम अलग और विस्त्रत विषय है)

मृत्युकन्या के इस विशाल परिवार में ज्वर । यक्ष्मा । कास । वृण । घात । शूल आदि लाखों छोटे बङे पुत्र आदि थे ।..तब इन कई देवताओं को जो वृतियों पर आरूढ हो सकते थे । वृतियों पर आश्रित थे । इंसान की प्रवृतियों द्वारा खुराक दी गयी । क्योंकि उस समय ये सब बेहद भूख से भूख भूख चिल्ला रहे थे । इस तरह 33 करोङ में 33 प्रमुख और 33 में भी 3 प्रमुख । और तब 33 करोङ में 33 के अलावा जब सभी निम्न स्तर वालों का कार्य आदि निर्धारण हो गया । इसी के साथ सृष्टि में जन्म मरण का चक्र गतिमान हो गया ।


लेकिन..जैसा कि मैंने ऊपर कहा । यही अंतिम सत्य नहीं है । मृत्युकन्या का यह परिवार किन नियमों में बँधा है । इसको बताने से बात बहुत लम्बी हो जायेगी । जो गलती इन महिला से हुयी । या उस किंकर्तव्यविमूढ परिस्थितियों में अक्सर सभी से हो ही जाती है । वो है । परमात्मा से आस्था हटकर भटकाव का शुरू हो जाना । दरअसल सुख की जिन्दगी में । मौजमस्ती की जिन्दगी में हम परमात्मा का कोई ख्याल ही नहीं करते । इसीलिये ये कहा जा सकता है कि दुख के समय फ़िर वो भी हमारा ख्याल क्यों करे ?

मेरा आपसे बारबार यही कहना है । कोई तांत्रिक मांत्रिक भले ही सच्चा हो । आप उससे कोई इलाज न करायें । और इस तरह के जगह जगह भटकाव से बचें । तथा इसके स्थान पर परमात्मा से अविरल अट्टू आस्था रखें । तो 99 % होनी भी टल जायेगी । अकाल मृत्यु टल जायेगी । अगर किसी तंत्र से भी इलाज होना आवश्यक होगा । तो आप सिर्फ़ परमात्मा से निरंतर प्रार्थना करें । पीङित से भी परमात्मा का सुमरन पूर्ण विश्वास से करायें । यकीन मानिये । जिस तरह के भी इलाज की जरूरत होगी । वो इलाज चलकर आपके घर खुद आयेगा । ऐसे हालात खुद बन जायेंगे । जिससे भला ही भला होगा । और तब कबीर को ये नहीं कहना होगा । सुख में सुमरन ना किया । दुख में करता याद । कह कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ।..यहाँ सिर्फ़ आपकी ही बात नहीं है । ज्यादातर लोग बात लाइलाज होने पर संतों से उपाय पूछते हैं । और उन्होंने जीवन में सही तरीके से पुण्य संचय भी नहीं किया होता । जो कोई उलटफ़ेर की सिफ़ारिश भी ऊपर की जाय । अगर मेरी बात मानों । तो सच्चे संतो को तलाश करना सीखो । इसके लिये परमात्मा से प्रार्थना करो । वह आपको सच्चे संत से मिलवाने की स्वतः युक्ति कर देगा । तब संत की तन मन धन से सेवा करते हुये । उससे परमात्मा का वास्तविक नाम जानें । उस नाम की भक्ति करें । तब आपके जीवन में ऐसी दुखद घटना दूर दूर तक नहीं हो सकती । यही किसी माँ बाप के लिये अपनी औलाद के प्रति सच्चा फ़र्ज है । यही किसी समर्थ औलाद का भी अपने माँ बाप के प्रति सच्चा कर्तव्य है । एक सच्चा रामभक्त अपनी पूर्व और आनेवाली मिलाकर 21 पीङियों का उद्धार कर देता है । और लाखों जन्म तक यश और ऐश्वर्य का भागी होता है ।