29 जनवरी 2011

मन को नियन्त्रण में करना

मन बेहद उपयोगी लेकिन बेहद चंचल और खुरा्फ़ाती किस्म का उपकरण है । इसके उपयोगी पक्ष भी असंख्य हैं । और जीव की सभी सांसारिक गतिविधियाँ भी इसी के माध्यम से संचालित हैं । लेकिन आदिकाल से ही इसने मनुष्य क्या किसी भी जीव को शान्ति से नहीं बैठने दिया । यहाँ तक कि रात में सोते समय भी यह स्वप्न सृष्टि के माध्यम से सबको नचाता ही रहता है । इसलिये जैसा कि कहते हैं अति हर चीज की बुरी होती है ।

अति का भला न बोलना । अति की भली न चुप ।
अति का भला न बरसना । अति की भली न धूप ।

तो इस मन के सदैव भागते रहने की अति से अच्छे अच्छे धीर गम्भीर इंसान भी विचलित हो जाते हैं । फ़िर साधारण जन के लिये क्या कहा जाय । और तब इसका परिणाम क्रोध । चिङचिङापन । निराशा । जीवन से ऊब । बैचेनी आदि नकारात्मक पक्ष को लेकर आता है ।..पर वास्तव में मन क्या इतना शक्तिशाली है । जो किसी के काबू में आयेगा ही नहीं । क्या मन को लगाम नहीं लगायी जा सकती ?

सुरति शब्द योग में सबसे पहले इसी मन के ही पर काटे जाते है । आत्मा को जो इसने जङ प्रकृति से विषय वासनाओं की रस्सी से बाँध दिया है । उसी रस्सी को ही हमेशा के लिये काट दिया जाता है । लेकिन सुरति शब्द योग एक विधिवत गुरु धारण करने की क्रिया है । और इसके वास्तविक रहस्य दीक्षित ( दीक्षा लेने के बाद ) होने के बाद ही पता चलते हैं । अतः जब तक इंसान सुरति शब्द योग के इस स्कूल में एडमिशन न ले । यह उसके लिये ग्यानवर्धन के अलावा विशेष उपयोगी नहीं है । और स्कूल में तमाम कारणों के चलते सभी एडमिशन नहीं ले पाते फ़िर क्या किया जाय ?

मैं दो सरल यौगिक प्रयोग आपको बताता हूँ । जिनको करने में कोई कठिनाई नहीं होगी । लेकिन इससे पहले यह जान लें कि आखिर आपका मन किस तरह आपको अशान्त स्थिति में पहुँचा देता हैं । जिस प्रकार एक कुशल गृहिणी की यह इच्छा रहती है । उसके घर का सभी सामान यथास्थान व्यवस्थित सुसज्जित सलीके से रखा हो । लेकिन चंचल बच्चे तौलिया इधर । जूते उधर । स्कूल बैग किधर । ब्रुश कहीं । मंजन कहीं । झाङू यहीं । कपङे वहीं । मौजे मिले नहीं । घर के सामान को पजल गेम की तरह अस्तव्यस्त कर देते हैं । किसी किसी महिला के पतिदेव बच्चों से भी चार कदम आगे ही होते हैं ।

तो मन का अशान्त हो जाना स्वाभाविक ही है । इसी एक उदाहरण से ही जीवन के किसी भी पक्ष । किसी भी महिला । व्यक्ति । बालक आदि के बारे में विचार किया जा सकता है । जिसके मूल में एक कारण होता है । अव्यवस्था । अस्त व्यस्तता । यानी मन में उमङते घुमङते विचारों का अति दबाब में आकर नियंत्रण रहित हो जाना ।

इस स्थित को आप इस तरह समझें कि बीस लोग आपको घेरकर कोई इधर खींच रहा हो । कोई उधर खींच रहा हो । और वह इंसान बेबस सा ( बिना केन्द्रक के ) घिसट रहा हो । इस स्थिति को समझने के लिये डिस्कवरी चैनल पर हिंसक पशुओं के बीच घिरे उनके शिकार निरीह और कमजोर जानवर का भी उदाहरण ले सकते हैं । मनुष्य जीवन में बलात्कार व्यवहारी पुरुषों से घिरी असहाय महिला और गुंडा तत्वों से घिरा कोई सज्जन पुरुष आदि से भी समझा जा सकता है ।

आगे ध्यान से समझें । अशान्ति क्यों हो रही है ? दरअसल आपकी गाङी बिना स्टेयरिंग ( फ़ेल ) बिना ब्रेक ( फ़ेल ) के चल रही है । कह सकते हैं । केंद्रक यानी नियंत्रण हट चुका है । अब मान लीजिये । किसी तरह स्टेयरिंग और ब्रेक ठीक हो जाँय । तो क्या मजाल कि गाङी आपकी इच्छा के बिना इंच भर भी हिल सके । ऊपर के उदाहरणों में कोई बलबान राइफ़लधारी इंसान आकर फ़ायर कर दे । तो हिंसक पशु । बलात्कारी पुरुष । और गुंडा तत्व सभी भागकर तितर वितर हो जायेंगे । और पीङित इंसान को मजबूत सहारा रूपी केन्द्रक मिल जायेगा ।

पहली क्रिया बेहद सरल है । जो एक संत द्वारा मुझे बतायी गयी और जिसका प्रयोग भी करके मैंने देखा । एक दर्पण लें  और मुँह खोलकर गले में लटकते काग को देखें । बहुत अधिक आधा मिनट देखें ।.. ये दर्पण आपके हाथ में होना चाहिये । ना कि टायलेट बाथरूम बेडरूम आदि में फ़िक्स दर्पण । और इसकी कोई गूढ वजह नहीं है । बस हाथ के दर्पण में आप सहजता से ठीक तरह से नजदीक से देख पायेंगे ।.. बस इतने ही उपाय से उत्पन्न बैचैनी शान्त हो जायेगी ।

ये बहुत इम्पोर्टेंट है । ये भी एक यौगिक क्रिया है अतः इसको आप खेल न बना लें  कि बारबार दर्पण ही देखने लगें । जो चीज लाभ करती है गलत व्यवहार से हानि भी करती है । इसलिये इसका सही तरीका यही है कि कुछ क्षण ही देखें । कुछ देर बाद फ़िर देख सकते हैं लेकिन लगातार न देखें और राहत मिलने पर अगली बार दर्पण के बजाय कल्पना दृष्टि से देखें । मतलब वहाँ काग पर ध्यान ले जायँ ।

लेकिन विक्षिप्त अर्धविक्षिप्त जैसी स्थिति में पहुँच चुके महिला पुरुष बच्चे आदि यदि समझाने से इसको देखना सीख जाते हैं । तो वो एक घंटे भी देखते रहें । उनको लाभ ही होगा । दिन में बीस बार भी देखने पर उनको हानि नहीं होगी । जबकि सामान्य इंसान को हो जायेगी । कारण बहुत सीधा और सरल है । जिसको
डाक्टरी भाषा में सही डोज कहा जाता है । सामान्य इंसान की परेशानी साधारण सर्दी जुकाम वाले ज्वर की तरह है । अतः उसकी दवा की खुराक थोङी ही होगी । जबकि विक्षिप्त श्रेणी के इंसान असाध्य रोगी की श्रेणी में है । अतः उसका नियमित और लम्बा इलाज होगा ।

चाहे साधारण इंसान हो या विक्षिप्त । इस तरीके का एक ही बैग्यानिक कारण है । आपका मन जो अनेक विचारों में उलझकर अलग अलग जगह फ़ँस गया है । इससे केन्द्रित होकर संतुलन में आ जाता है । और आपकी विचार संरचना स्वस्थ शान्त इंसान की तरह पुनः व्यवस्थित हो जाती है ।

दूसरा उपाय बेहद प्रभावशाली है । और आप कितना भी क्यों न करो । इससे हानि नहीं होगी । लाभ ही लाभ होगा । हमारे शरीर में दो स्थानों पर चबन्नी अठन्नी के साइज के दो गोल गढ्ढे से होते है । एक मुँह के अंदर तालू में । दूसरा सिर में । इसको भी तलुआ ही बोलते हैं । हमारी तरफ़ तो यही बोलते हैं । कहीं और । कुछ और बोलते हों । इसका पता नहीं । इन दोनों तलुओं में एक बङा फ़र्क होता है । मुँह का गढ्ढा आजीवन ही पैदा होने के समय से मृत्यु तक उसी स्थिति में यानी कमजोर रहता है । इस स्थान की परत बेहद नाजुक होती है । जबकि सिर का तलुआ उमर बङने के साथ साथ । हड्डी बङने से संकुचित भी हो जाता है । और यह स्थान मजबूत भी हो जाता है । जबकि शिशु अवस्था में तलुआ लप लप करता रहता है । तब अम्मा देशी घी की मालिश करती है । आ गयी याद ? ये दोनों स्थान योग में बेहद रहस्यमय और शक्तिप्रदाता हैं । लेकिन इस प्रकरण में सिर्फ़ सिर के तलुए की ही बात है ।

यह क्रिया भी बेहद सरल है । और सुरति शब्द योग की तरह इसमें भी कुछ नहीं करना होता है । बस इसमें आपको ये सोचना है । कि नाभि से लेकर सिर के मध्य । तलुआ या उसके आसपास । ( वैसे तो सिर का मध्य एक तरह से चोटी वाला स्थान भी है । ) तक एक सीधी सरल रेखा आपके शरीर के अंदर बीचोबीच हैं । और आप उसी को देख रहें हैं । इसमें दिक्कत मालूम पङे । तो रेखा के स्थान पर बाँस यानी बाम्बू की कल्पना कर लें । कि इस स्थान पर एक बम्बू लगा हुआ है । और आप किसी नट की तरह उसी पर बार बार चढ रहे हैं । और उतर रहें हैं । इसमें भी परेशानी हो । तो आप ये कल्पना कर सकते हैं कि आप इसी बाँस के सहारे आराम से स्थिर होकर खङे हुये हैं ।..लेकिन कामी भावना के महिला पुरुषों के साथ इस उपाय में तब दिक्कत आ सकती है । जबकि उनका ध्यान बारबार यौनांगों पर ही जाता हो । और इस तरह के महिला पुरुष इस कदर मजबूर होते हैं कि वे कहाँ हैं । इसकी परवाह किये बिना कुछ कुछ देर बाद लिंग योनि के पास खुजाने जैसी क्रिया करते रहते हैं । उनके लिये इस अभ्यास में नाभि के बजाय गुदा से सिर तक कल्पना करनी होगी ।

किसी भी मंत्र तंत्र से रहित ये सरल उपाय शीघ्र लाभ करते हैं । अनुलोम विलोम भी मन को शान्त कर देता है । पर इसके साथ समस्या यही है । कि एक तो इसको हरेक कोई ठीक से कर नहीं पाता । दूसरे ये किसी भी समय कर सकें । ऐसा नियम नहीं है । खाना से पेट भरा होने पर । धूम्रपान आदि किये होने पर । किसी के सामने बैठा होने पर इसको नहीं कर सकते । यह केवल खाली पेट सुबह शाम करना ही ठीक होता है । जबकि ऊपर के दोनों उपाय किसी भी स्थिति में किये जा सकते हैं ।

1 टिप्पणी:

ज्योति सिंह ने कहा…

bahut khushi hui yahan aakar ,bahut dhyaan se jeevan ki samsayon ko padhti rahi aur saath hi unke hal bhi dekhe ,ati sundar aur upyogi .