25 जनवरी 2011

इसलिये मेरे भाई ये दोनों ही गलती पर हैं ।

Dear Sir..I am sorry I can't read Hindi , I like to know about my future and the soul.. how can you help me to get a reading of me. I trust you will help me..( मि. रंजन राने । ई मेल से । )
dear mr rane...how are you..i hope fine .
according to your mail . i would like to inform you. that real name of god resides in your body. this name will be activated ( mean connected to god directly ) by saint . then you can know the super natural power and invisible mystery . it is very easy . if you can come to agra then i would like to help you as i can . in this regard , if you want to know more , then contact mr radharaman at this no. 0 97602 32151 thanx.. have a nice day .

स्वामी जी । एक बात का समाधान करें ।
ये पूजा-पाठ-ध्यान से तात्पर्य क्या है ? इसके निहितार्थ क्या हैं ? अगर कोई इंसान यह सब कुछ नहीं करता । न ही कभी मंदिर जाता है । मदिरापान भी करता है । लेकिन उसने कभी किसी से बदसलूकी नहीं की । किसी पराई स्त्री पर बुरी नजर नहीं डाली । किसी का रुपया नहीं हड़पा । किसी से छल-कपट नहीं किया । इसके ठीक विपरीत कोई इंसान ये सारे दुर्गुण संपन्न है । लेकिन पूजा-पाठ-ध्यान करता है । जैसा की आज के अधिकाँश साधू-सन्यासी करते हैं । तो आपकी नजर में कौन सही है । मोक्ष किसको मिलेगा ? अब बात को जलेबी न बनाईयेगा । सीधा जवाब चाहिए आपसे । बेनामी । पोस्ट । असली पूजा के रहस्य ??? । पर ।
मेरी बात..पूजा शब्द का गहन और गूढ अर्थ है । पूरा ( पू ) जानना ( जा ) । जानना और जाना का एक ही निहितार्थ है । मतलब कहीं जाने से ही उस जगह या चीज को जाना जा सकता है । पाठ का सामान्य वही अर्थ है । अध्ययन करना । ध्या का अर्थ दौङना या जाना न का अर्थ नहीं । यानी इसका गूढ अर्थ है । उस तरफ़ जाना । जहाँ जाने के बाद आपका भागना शान्त हो जाय । जो कि आप अनगिनत जीवन से भाग रहे हो । समस्त पूजा पद्धति का निष्कर्ष यही है । कि आप जो भटककर अपनी मूल पहचान भूल चुके हो । उसे फ़िर से जानने । प्राप्त करने का प्रयत्न । निहितार्थ के मायने यह है कि कालपुरुष ने सभी आत्माओं को अमरलोक से इस लोक के लिये बुलाया । और फ़िर काल और उसकी पत्नी माया ने इस महान शक्तिशाली अदभुत आत्मा को विभिन्न भोगों की विषय वासना में उलझाकर उसे तेजहीन करके बन्दी बना लिया । इसीलिये तमाम शास्त्र बन्धन मोक्ष की बात ही करते हैं ।
आपके मदिरापान वाले इंसान का उदाहरण के बारे में ..ये इंसान आपके दूसरे दुर्गुणी मगर पूजापाठ करने वाले से निसंदेह श्रेष्ठ है । आज के अधिकाँश साधु सन्यासी...नारी मरी गृह सम्पत्ति नासी । मूङ मुङाय भये सन्यासी । मेरी नजर में दोनों ही गलती पर है । इनमें मोक्ष किसी को नहीं मिलेगा । बात को जलेबी के बारे में..भाईसाहब हिन्दी भाषा और आध्यात्मिक मैटर को मैं अधिकाधिक सामान्य रूप से बताने की कोशिश करता हूँ । अगर मैं अपनी फ़ुल फ़ोर्म में विद्वान शैली में बताऊँ । तो इक्का दुक्का लोगों के पढने लायक ही ब्लाग रह जायेगा ।.. इसीलिये मैंने अपना परिचय सामान्य ही रखा । ताकि आप लोगों को मैं आपके बीच का ही इंसान नजर आऊँ । और आप अपने दिल की बात मुझसे सरलता से कह सको । ब्लाग में ज्यादातर चित्र मेरे गुरुदेव के हैं । कुछ और लोगों के हैं । मेरे मुश्किल से कुल आठ दस चित्र ही होंगे । ABOUT ME आदि सभी जगह गुरुदेव के ही चित्र हैं । मेरा तात्पर्य है कि इस अनमोल संत ग्यान को आप तक पहुँचाने के बाद भी मुझे सामान्य बने रहना ही सही लगता है । जबकि मैं चाहता । तो कोई हाईफ़ाई इमेज भी बना सकता था । इससे आप सहमत ही होंगे ?? या नहीं हैं ।..यह थी आपकी टू द प्वाइंट बात ।
आईये अब इस पर विस्तार से बातचीत करते हैं । एक स्कूल है । उसमें तीन तरह के छात्र हैं । एक आपके पहले इंसान जैसा..उसे किसी से कोई मतलब नहीं हैं । कुछ जानने सीखने की दिलचस्पी नहीं है । अपने में मस्त रहता है । ( एज मदिरापान ) । दूसरा..लापरवाह ढंग से पढाई कर रहा है । पढाई के नाम पर दिखावा कर रहा है आदि.. । ये दो आपके कमेंट के इंसान हैं । अब तीसरा इंसान मैं बता रहा हूँ । वह शिक्षा को सही ढंग से गृहण कर रहा है । नैतिक व्यवहार में भी ( शिक्षा के प्रभाव से ) श्रेष्ठ है । अब आप बताईये । परीक्षा में तीनों में किसका क्या रिजल्ट रहेगा ?? जाहिर है । आपके कमेंट वाले दोनों इंसान फ़ेल हो जायेंगे । तीसरा पास होकर जीवन को सफ़लता से जियेगा । अपनी मेहनत के बल पर आनन्द से जियेगा । जरा गहराई से सोचिये । स्कूल में ये तीन तरह के छात्र निश्चित होते हैं । जबकि तीनों के माँ बाप उसे अच्छी शिक्षा के लिये समान उद्देश्य के साथ सपने लिये स्कूल भेजते हैं । बिलकुल यही कहानी आपके प्रश्न औए पूजा को लेकर जीवन की है । आपने ग्यान द्वारा खुद को सफ़ल कर लिया । तो ठीक । वरना आपको 84 भुगतने जाना ही होगा । जिस प्रकार एक ही कक्षा के वे तीन छात्र । एक साहब । बन जाता है । और दूसरा मजदूरी करके जीवन बितायेगा । तीसरा धक्के खायेगा । जबकि स्कूल एक ही था । पढाई एक ही थी । इसलिये जीवन के इस स्कूल में हमने पशुवत समय गुजार दिया । तो निश्चय ही अगले जन्म में पशु बनकर बोझा ही ढोना होगा । आप इंटरनेट पर ब्लाग पढ लेते हो । इसका मतलब है । कुछ तो पढे लिखे हो । तब क्या आपने कक्षा सात आठ तक अनेको पाठयक्रमों में यह पाठ नहीं पढा ।..भोजन..नींद..मैथुन आदि यह तो पशु भी सफ़लता से कर लेते हैं । फ़िर मानव को सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ क्यों कहा गया है ??


अब यहाँ थोङा रहस्य है । कोई भी ये तर्क दे सकता है कि पशुओं की तुलना में मनुष्य आराम से सुख सुविधायें जुटाकर जीवन जीता है । इसलिये श्रेष्ठ है ।..लेकिन नहीं । बात इतनी ही नहीं है । मनुष्य को सभी योनियों ??? मतलब । देवता । राक्षस । यक्ष । किन्नर । गन्धर्व जैसी शक्तिशाली योनियों से भी श्रेष्ठ कहा गया है । इस तरह आपका ये तर्क फ़ेल हो जाता है । क्योंकि सुख । सुविधा । शक्ति । भोग । ऐश्वर्य आदि में ये लोग बहुत आगे होते हैं । फ़िर भी मनुष्य को इनसे भी श्रेष्ठ बताया गया है ।..बङे भाग मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सद गृन्थन गावा । साधन धाम मोक्ष का द्वारा । जेहि न पाय परलोक संवारा ।..तो सुर दुर्लभ यानी देवताओं के लिये भी दुर्लभ है । ये शरीर । वे भी लालसा करते हैं कि एक बार मनुष्य शरीर मिल जाय । क्यों ?? इसलिये क्योंकि केवल इसी शरीर में मोक्षप्राप्ति का दसवां द्वार है । देवताओं का मष्तिष्क अलग तरह का । केवल बृह्मान्ड सरंचना वाला ही होता है । जबकि मनुष्य के मष्तिष्क में पारबृह्म तक की बात होती है । केवल इसी शरीर के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति और खुद की ID जानी जा सकती है । WHO AM I ?
ये तो साधारण चिंतन से ही सोचा जा सकता है कि.. ( अगर कोई इंसान यह सब कुछ नहीं करता । न ही कभी मंदिर जाता है । मदिरापान भी करता है । लेकिन उसने कभी किसी से बदसलूकी नहीं की । किसी पराई स्त्री पर बुरी नजर नहीं डाली । किसी का रुपया नहीं हड़पा । किसी से छल-कपट नहीं किया । )..अगर ऐसे इंसान का मोक्ष हो सकता है । तो मोक्ष से सरल कुछ है ही नहीं । यानी एक वक्त की रोटी कमाने से भी सरल मोक्ष हो गया ?? और... ( इसके ठीक विपरीत कोई इंसान ये सारे दुर्गुण संपन्न है । लेकिन पूजा-पाठ-ध्यान करता है । जैसा की आज के अधिकाँश साधू-सन्यासी करते हैं । तो आपकी नजर में कौन सही है ? )...ऐसे लोगों को भी मोक्ष मिलने लगे । तो फ़िर सभी को ही मोक्ष मिल जायेगा । वास्तव में मोक्ष इतना आसान सौदा नहीं है । अगर ऐसा होता । तो ग्यान की समृद्ध परम्परा नहीं बनी होती । उसकी आवश्यकता ही क्या थी ? इसलिये मेरे भाई ये दोनों ही गलती पर हैं ।
वास्तव में प्रभु की कृपा समान रूप से सबके लिये बरस रही है । पर इंसान अपने व्यवहार में बरसात में रखे इन चार घङों के समान है । 1 साबुत और सीधा रखा हुआ घङा । 2 साबुत मगर तिरछा रखा हुआ । 3 सीधा मगर तली में फ़ूटा हुआ । 4 उल्टा रखा हुआ । अब बरसात का पानी किसमें भरेगा । 1 वाला पूरा आराम से भर जायेगा । 2 कुछ छीटों आदि के द्वारा थोङा ही पानी आयेगा । 3 पानी तो पूरी तरह आयेगा । मगर सब बह जायेगा । 4 इसके भरने का तो कोई सवाल ही नहीं ।..मनुष्य की अलग अलग सोच और भक्ति का मामला भी ठीक ऐसा ही है ।.. धन्यवाद । यदि आप किसी बिन्दु पर संतुष्ट न हुये हों । तो फ़िर से पूछ सकते हैं । अगर मैं आपकी शंका समाधान कर सका । तो मुझे खुशी ही होगी ।

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