04 जनवरी 2011

हाय..मेरी हंडिया..तू क्यों मर गयी..?

जय गुरुदेव की । धन्यवाद । राजीव जी । दरअसल 2008 के एन्डिंग से मेरी जिंदगी में भूचाल सा आ गया है । पहले मैं नेट पर चैटिंग करता था । और उसी दौरान 2007 में मेरी बात देहली की रहने वाली रीना गुलाटी से हुयी ।पहले तो हम सिर्फ़ नेट पर बातें करते थे । फ़िर कुछ समय बाद उसने अपना फ़ोन न० मुझे दिया । जिससे हम रोज फ़ोन पर बात करने लगे । हमारे बीच दोस्ती बहुत गहरी हो चुकी थी । सिर्फ़ दोस्ती । हम दोनों ने एक दूसरे को कभी देखा तक नहीं था । मैं तब रोज रात को हनुमान जी के मन्दिर जो काफ़ी पुराना है । ( अब नया और बडा बन गया है । ) अपने घर से वहां तक  नंगे पांव जाता था ।और वहां जाकर एकान्त में उनके सामने दिया , अगरबत्ती जलाकर वहीं बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करता था । और संजोग कहूं या क्या.. कि मैं जो कुछ भी उनसे कहता था । वो काम पूरा हो जाता था । जैसे रीना को जाब नही मिल  रही थी । तो जाब मिल गयी । और भी बहुत कुछ । लेकिन अचानक 2008 में जब मैंने रीना से बात करने के लिये फ़ोन लगाया तो कोई फ़ोन नहीं उठा रहा था । फ़िर 4-5 दिन बाद उसकी बहन ने फ़ोन उठाया । तो उससे मुझे पता चला कि रीना की डैथ हो चुकी है । आप समझ सकते हो । उस वक्त मुझ पर क्या गुजरी होगी । मेरा सबसे अच्छा दोस्त मुझसे छीन लिया गया था । उस वक्त तो मेरी जबान से शब्द ही नहीं निकल रहे थे । मैंने उसी वक्त मन में ठाना कि अब मैं आज के बाद कभी मंदिर  नहीं जाऊंगा । और उस दिन से आज तक मेरा गुस्सा तो  कुछ कम हुआ है । पर जिंदगी एकदम से बदल गयी है ।  { श्री विजय तिवारी । मुम्बई । ई मेल  से । } ( चाहत थी हमारी हंस के जिन्दगी बिताने की । जाने क्या थी दुश्मनी खुदा से हमारी ? जो छीन के खुशियां उन्हें सूझी हमें रुलाने की । )
*** छोड दे सारी दुनियां किसी के लिये । ये मुनासिव नहीं आदमी के लिये । प्यार से भी जरूरी कई काम है । प्यार सब  कुछ नहीं जिन्दगी के लिये..? ( यहां  मैंने इस गाने का उपयोग अवश्य किया है । पर ध्यान रहे । स्व रीना जी , विजय की सिर्फ़ एक अच्छी दोस्त थीं । ) विजय जी के इस ई मेल  के प्राप्त होने के बाद । इस सम्बन्ध में । मुझे दो लोगों की याद आ गयी । जिनमें एक झारखंड की युवा  ( 32 year )  विधवा महिला थी । जिनके पति का देहांत शादी के कुछ ही दिनों बाद हो गया था । उन दोनों लोगों में इतना प्रेम था कि मृत्यु के लगभग 10 साल बाद भी वो अपने पति को भुला न सकी थीं । हालांकि वो ये बात बखूबी जानती थी कि एक बार यहां से गया हुआ । कभी लौटकर ( उसी स्थिति में ) नहीं आता । पर वे अपने पति  को भुलाने में असमर्थ थीं । और उन्होंने दूसरी  शादी भी नहीं की । जो कि हालात के देखते कर लेना उचित थी । बात यहां तक होती । तो भी ठीक थी । वो ये जानना चाहती थी कि इस समय उनके पति कहां और किस स्थिति में हैं ?? इसी तलाश में उन्हें आगरा के पास ही एक  प्रसिद्ध धार्मिक शहर के किसी साधु व्यक्ति के बारे में । किसी ने बताया । जो उन्हें उनके पति की रूह स्थिति ( मृत्यु के 6 साल बाद । उस समय । ) से परिचित करा सकता था । वो उससे मिली । उस बन्ता साधु ( बनाबटी ने ) उनसे 3000 रु० ले लिये । और बातें बताकर टरका दिया । बाद में किसी ने मेरे बारे में बताया । तब वह मुझसे मिलीं । और बडी बैचेनी से वांछित उत्तर की तलाश में रहीं । वह उत्तर क्या था ??
इसे जानने से पहले दूसरे सज्जन की बात करते हैं । इनका नाम अमित था । और ये आगरा के ही रहने वाले हैं । अमित जी को मेरा परिचय इंटरनेट ( ब्लाग ) से ही मिला था । अमित जी ने मुझे  फ़ोन किया और लगभग एक मिनट बाद ही फ़ूट फ़ूटकर रोने लगे । उस वक्त श्री महाराज जी आगरा में ही थे । ये जानकर कि अमित आगरा से ही हैं । मैंने उन्हें घर पर बुला लिया । बीस मिनट बाद ही अमित मेरे घर पर आ गये और महाराज जी के पास लगभग तीन घंटे बैठकर शांत ( उस समय के अति दुख से दुखरहित ) होकर गये । अमित जी का मामला अति संवेदनशील था । वे अपने दोनों मासूम बच्चों ( एक 1 साल दूसरा 3 साल । ) के साथ आत्महत्या करना चाहते थे । और कभी के कर भी चुके होते । पर मासूम बच्चों को देखकर उनका दिल इस काम के लिये कांप जाता था ।..दरअसल अमित की पत्नी भी दो महीने पहले एक गम्भीर बीमारी से चल बसी थी । और अमित इसको स्वीकार करने को तैयार नहीं थे ? आखिर क्यों ? वो मुझे और अपने मासूम बच्चों को छोडकर चली गयी ? आखिर क्यों ? उसने एक बार भी इस बारे में नहीं सोचा ?.. और अगर वो चली गयी..तो मैं भी दोनों बच्चों के साथ उसके पास जाऊंगा..???  तब महाराज जी के शांत शीतल और ग्यानवाणी से उनका गहरा क्षोभ कम हुआ ।
*** हालांकि इसमें उपदेश देने जैसी कोई बात नहीं है । ये तो सबके ही साथ होता है । और होता रहेगा । पर असमय का विछोह वाकई दिल को चाक चाक कर देता है । संयोग के बाद वियोग की ये प्रभुलीला अच्छे अच्छे दिग्ग्जों को हिलाकर रख देती है । तोडकर रख देती है । आपने राजा भर्तहरि का किस्सा अवश्य सुना होगा । भर्तहरि अपनी पत्नी की आकस्मिक मत्यु के बाद वैराग्यवश बहुत बडे ग्यानी हुये । राजा भर्तहरि की पत्नी बेहद सुन्दर थी । भर्तहरि का अपनी रानी से बेहद प्रेम था । जब उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी । तो राजा का शोक किसी प्रकार से कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था । उनके गुरु को बेहद चिंता हुयी । क्योंकि उनके लाख समझाने पर भी भर्तहरि पत्नी की मृत्य का सच स्वीकारने को तैयार ही नहीं थे । और शमशान में भी जलती चिता के सामने हाय रानी..हाय रानी..मेरी रानी..मर गयी..करते हुये विलाप कर रहे थे । तब उनके गुरु ने एक उपाय किया । उनके पास मिट्टी की एक हंडिया , जिसमें वो भोजन आदि करते थे । थी । उसे फ़ोड दिया । और वो भी जोर जोर से रोने लगे । हाय..मेरी हंडिया..हाय ..मेरी हंडिया..हाय..मेरी हंडिया..हाय..मेरी हंडिया..तू क्यों मर गयी..? राजा ने अपना दुख भूलकर चौंककर उन्हें देखा । और उनसे बोला । गुरुजी..पागल हो गये..क्या..? जो मिट्टी की हंडिया के लिये रो रहे हो । मैं आपको सोने की हंडिया.. या हजारों नयी हंडिया दिला दूंगा । लेकिन गुरुजी रोते ही रहे..हाय ..मेरी हंडिया..हाय..मेरी हंडिया..तू क्यों मर गयी..? राजा को  गुस्सा आ गया । गुरूजी इतने ग्यानी होकर अग्यान की बात कर रहे हो..? मिट्टी की हंडिया एक दिन फ़ूटनी ही थी ?? अब दूसरी से व्यवहार करो । तब गुरूजी ने कहा..अरे मूरख , यही तो मैं तुझे समझा रहा हूं..कि रानी का समय पूरा हो गया..वो चली गयी..तुझे भी दूसरी रानी नहीं मिलेगी क्या..?
इसी क्रम में आपको गौतम बुद्ध की वो बात भी याद होगी । जिसमें एक औरत के एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गयी थी । और उसने गौतम बुद्ध के पास जाकर कहा कि आप इसे फ़िर से जीवित कर दो ? तब बुद्ध ने कहा । जीवित तो मैं कर दूंगा । पर इसके लिये कुछ..ऐसे घर के सरसों के दाने चाहिये । जिसमें कभी मृत्यु न हुयी हो । पुत्र को पुनः जिलाने की आस में वह औरत मत्युरहित घर की तलाश में घर घर फ़िरी । तब उसे पता चला कि उसका तो एक ही पुत्र मरा है । औरों के न जाने कितने कितने लोग काल कवलित हुये हैं । मत्यु ने कोई घर नहीं छोडा था ?? लोगों की अति दुख भरी विपदा सुन सुनकर वह अपना दुख भूल ही गयी ।
*** झारखंड की विधवा महिला को मृत्यु के बाद ( पति की स्थिति ) का अदृश्य सच जानने की  बेहद चाहत थी । और इसके लिये वो कोई भी साधना करने को तैयार थी ।..लेकिन..ये साधना बहुत कठिन बात थी..और यदि ये हो भी जाता..तो जो सच वो साधना से जानती..? उससे बेहतर यही था कि वो अपने ख्याली भ्रम में ही जीती । और..इस तरह वो इस जीवन में सुखी तो थी । अतः मैंने कहा । वो स्वर्ग में हैं ..?? कोऊ न काहू सुख दुख कर दाता । निज करि कर्म भोग सब भ्राता ।..आया है सो जायेगा । राजा रंक फ़कीर  । एक सिंहासन चढ चले । एक बंधे जंजीर ।..अर्थात..जो अपने जीवन में कर्मबंधन से मुक्त नहीं हो सका । वो  कैदी की भांति जंजीर ( हथकडी ) में जायेगा । और ग्यान भक्ति द्वारा मुक्त हुआ जीव सिंहासन पर आदर से जायेगा ।  यही सत्य है । यही सत्य है । यही सत्य है । राम राम । सलाम । सत श्री अकाल । ( ईसाई और अंग्रेज लोग हमारी तरह..राम राम । सलाम । के लिये क्या कहते हैं ? किसी बन्धु को मालूम हो । तो बताना । जय गुरुदेव की ।

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