06 दिसंबर 2010

पूरा संसार इसी सत्य को खोज रहा है ।

राजीव कुलश्रेष्ठ जी । आपके लेख में पिछले दो दिन से पढ रहा हूं । जिस सत्य की तलाश में मैं लगा रहता हूं । वह काफ़ी आपके लेखों में उजागर होता है । मैं भी सत्य को अनुभव करना चाहता हूं । मैं इस पर पिछले आठ सालों से लगा हुआ हूं । मैं आग्याचक्र पर ध्यान लगाता था । जिससे मुझे बडे बडे अचंभित करने वाले दृश्य की झलक भर दिखाई देती है । और टिन टिन की आवाज लगातार सी । मार्गदर्शन करें । सुनाई देती है । मैं इससे आगे बढ नहीं पा रहा हूं । जबकि तीन साल से बृह्मचर्य के नियम का पालन भी कर रहा हूं । परन्तु कभी कभी लगता है कि बेकार में अपना वक्त बरबाद कर रहा हूं । क्योंकि कभी कभी मन बहुत सा डिप्रेशन पैदा कर देता है । मन को कंट्रोल करने का उपाय बतायें । मैं भी ढाई अक्षर के महामन्त्र को चलते फ़िरते सुमिरन करना चाहता हूं । कृपया करके मार्गदर्शन करें । मुझे सुप्रीम राम का नाम बतायें । आपका एक जिग्यासु । निर्मल बंसल ।
***** केवल आप ही नहीं । पूरा संसार इसी सत्य को खोज रहा है । यधपि उनकी समझ में नहीं आता कि वे क्या खोज रहे हैं ? एक बैचेनी जो सफ़ल असफ़ल हरेक के अंदर होती है । वो यही है कि मैं कौन हूं । परमात्मा क्या है आदि ? वास्तव में बंसल जी ये सत्य बिना समर्थ गुरु के शरणागत हुये प्राप्त नहीं हो सकता । ये आपकी खुद से खुद की गलतफ़हमी है कि आप इस पर 8 सालों से लगे हुये हैं । वास्तव में आप कई जन्मों से लगे हुये हैं । परन्तु आपको माया के प्रभाव से ऐसा लगता है कि आप 8 सालों से ही लगे हुये हैं । आग्याचक्र पर जो आपको अनुभव होते हैं । वो आपके पूर्वजन्मों की अब तक की यात्रा ही है । आप 5 चक्र ऊपर उठ चुके हैं । आग्याचक्र गुरु का स्थान आ जाता है । जहां कोई समर्थ गुरु ही आपकी सहायता कर सकता है । स्त्री से संभोग न करना । वास्तव में बृह्मचर्य न होकर अपनी यौन भावनाओं को दमित करना है । आपने गांधीजी से सबक लिया होता । जो सोचते थे कि 25 साल ( कनफ़र्म नहीं अंदाज से ) बृह्मचर्य पालन करने से हरेक कोई उनकी बात मानने लगेगा । इतिहास गवाह है । उनका बृह्मचर्य फ़ेल हो गया । क्योंकि वो बृह्मचर्य था ही नहीं । बृह्म स्थिति में विचरण करने को बृह्मचर्य कहते हैं । हाँ यौन संयम से रहना निसंदेह बेहतर है । आप कोई भी कार्य करते हैं । उसका फ़ल अवश्य होता है । धीरे धीरे रे मना । धीरे से सब होय । माली सींचे सौ घडा । रुत आये फ़ल होय । मन को कंट्रोल नहीं किया जाता । बल्कि सदगुरु द्वारा डिसेबल कर दिया जाता है । गो गोचर जहाँ लगि मन जायी । सो सब माया जानों भाई । मन 40 kg weight होता है । ये साधना द्वारा सुमन ( फ़ूल ) जैसा बनाते हैं । फ़िर इस सुमन को भी अमन ( खाली ) बनाते हैं । फ़िर इस अमन को उनमन ( प्रभु की ओर ) बनाते हैं । तब कुछ बात बनती हैं । ढाई अक्षर के महामन्त्र को विधिवत दिया जाता है । सुप्रीम राम का नाम यानी ररंकार साधना से अंतर में प्रकट होता है । जहां लगि मुख वाणी कही । तँह लगि काल का ग्रास । वाणी परे जो शब्द है । सो सतगुरु के पास ।
बेनामी साधना में कामवासना का रोढा पर । Atmasathchhatkar keise hoga ।
आत्मसाक्षात्कार कैसे होगा ? @ बेनामी । आप मेरे ब्लाग्स में पहले इससे सम्बंधित लेखों का गहराई से अध्ययन करें । फ़िर जो प्रश्न उत्पन्न हों । उन्हें पूछें । वैसे मैं भाव हटते ही आत्मसाक्षात्कार हो जाता है । बेहद सरल है । पर इंसान को अपने मैं से बडा प्यार होता है । इसलिये आत्मसाक्षात्कार कठिन हो जाता है । मुहम्मद साहब से यही चूक हुयी थी । अधिक जानकारी के लिये आप महाराज जी से फ़ोन 0 9639892934 पर बात कर सकते हैं ।
कुलश्रेष्ठ जी ये ढाई अक्षर का महामन्त्र क्या है ? मैं भी जानना चाहता हूं । क्या उसका ध्यान वैश्णवीमुद्रा में किया जाता है ? यानी के आंख कान को बन्द करके अनहद आवाज को सुना जाता है । और ये भंवरगुफ़ा क्या है ? इसका स्थान कहां पर है ? त्रिकुटी का स्थान कहां से चालू होता है ? ध्यान कहां पर किया जाता है ? आग्याचक्र में गुरु का । या शीष से ऊपर । या ह्रदय में ? क्योंकि कबीर जी कहते हैं । मुझको कहां रे खोजे । मैं तो तेरे पास में । ढूंडे तो तुरन्त ही मिल जाऊं । मैं तो तेरी स्वांसो की स्वांस में । जिन खोजो तिन पाया । और मैं पायो । मैं तो सबकी स्वांसों की स्वांस में । कबीर जी की रचना कर नैनों दीदार में भी पांच शब्दों और उनके कमलों का वर्णन मिलता है । उसमें गुदा चक्र में गणेश जी । इन्द्री चक्र में बृह्मा सावित्री । नाभि में विष्णु लक्ष्मी । और ह्रदय में शिव शक्ति । और कंठ में अविध्या इन तीनों की मन और आंखो के पीछे आत्मदेव और उससे ऊपर आग्याचक्र में गुरु और उसके ऊपर निरंजन देव का स्थान माना गया है । निरंजन ही सुष्मना को रोककर बैठा हुआ है । जो किसी भी आत्मा को दसवें द्वार की ओर नहीं जाने देता । मैं भी उस महामन्त्र को जानना चाहता हूं । जिससे ये दसवां दरवाजा खुले । बस इसी की खोज में । आपका । निर्मल कुमार बंसल । भिलाई । c g फ़ोन न. 98264......?
ans-- ढाई अक्षर का महामन्त्र वास्तव में अंतर आकाश में गूंज रहा है । जो सच्चे गुरु द्वारा प्रकट किया जाता है । यह वाणी से जपा नहीं जाता । जैसा कि आप समझ बैठे हैं । वैश्णवीमुद्रा अभ्यास में बेहद सहायक होती है । पर मेरे अनुभव में । मेरे मंडल में । ज्यादातर साधक इससे शीघ्र छुटकारा पाकर सहज तरीके से ध्यान करते हैं । जो अत्यंत सरल है । लेकिन इसके बारे में हम बिना आपको अपने यहाँ के दीक्षा के नहीं बता सकते । क्योंकि हर मंडल का अपना नियम होता है । सभी साधनाएं गुप्त होती हैं । भंवरगुफ़ा अलौकिक ग्यान के रास्ते में मिलने वाला एक स्थान है । त्रिकुटी भी बहुत ऊँची स्थिति है । आप इससे बहुत नीचे की स्थिति ही जान लें । यही कम उपलब्धि नहीं हैं । ये सभी साधनाएं मरजीवा यानी जीते जी मरने का नाम है ।
बंसल जी । बिना समर्थ गुरु के समक्ष पूर्ण समर्पण किये हुये ये सब बहुत मुश्किल से प्राप्त होता है । करत कष्ट बहु पावत कोई । यह फ़ल साधन से नहि होई । तुम्हरी कृपा पाय कोई कोई । वास्तव में यह करने से ज्यादा समर्पण का मामला है । ध्यान करने की अनेक विधियां हैं । जो आपकी साधना के अनुसार होती है । इनमें विहंगम सर्वश्रेष्ठ है । आपने कबीर का जिक्र किया है । उन्हें पढा है । लेकिन ये आधा अध्ययन है । कबीर हो या राम या कृष्ण या कोई अन्य । सबने यही कहा है । पहले शिष्य बनो । यानी अपने अंदर ग्यान लेने की पात्रता पैदा करो । तब गुरु की तलाश करो । शबद सनेही गुरु मिल जाने पर वह अपने सच्चे होने का प्रमाण । किसी अलौकिक अनुभूति के द्वारा देगा । जब ऐसा हो जाय । तब आपको तन मन धन से पूर्ण समर्पण होना होगा । तब कहीं आगे की बात शुरू होती है । 10 वां द्वारा बहुत बडी बात है । यदि आपकी यात्रा होने लगेगी । तब कहीं इस पर विचार हो सकता है । एक शिष्य होने के नाते जितना बताने की मुझे आग्या है । उतना मैंने बता दिया है । अधिक जानकारी के लिये आप महाराज जी से फ़ोन 0 9639892934 पर बात कर सकते हैं । जिन्होंने पिछले सात सालों से मुझे अद्वैत ग्यान की विहंगम मार्ग साधना करायी है । जो मैंने संतो से सीखा । प्राप्त किया । नियमानुसार आपको अधिक से
अधिक बताने की कोशिश की । लेकिन चीनी की वास्तविक मिठास उसको खाकर ही जानी जा सकती है ।
किसी के द्वारा बातों से बताने से नहीं । जय गुरुदेव की । जय जय श्री गुरुदेव ।

3 टिप्‍पणियां:

pappu ने कहा…

raajiv ji, main august se apke articles padh rahi hun. and mujhe bahut kuch pata laga. apka koi bhi article november mein nahi aya. main har roj internet par apke blogs dekhti hun. please aap apne articles lagataar bejhte rahen.

pappu ने कहा…

raajiv ji, main ab tak sadharan gharelu pooja paath hi karti thi. lekin ab main divya sadhna ke bare mein jaanna chahti hun. mujhe apke us adhure article 'omiyo tara' ke poore hone ka bhi poora intezaar hai. aap wo article bhi likhiye jo apke six months ka anubhav tha problem wala. and sirf divya sadhna par koi lamba article likhen please. mujhe apke articles ka bahut intezaar rehta hai. bye.

Sanjeev kumar ने कहा…

Rajeev ji
Aapke likhe blogs stoies mujhe bhut psand thi. But ye sab contents delete Kyu KR diye h.