07 अक्तूबर 2010

ररा तो रब्ब आप है । ममा मोहम्मद जान ।




तन देवल बिच । आतम पूजा । देव निरंजन । और न दूजा ।
दीपक ज्ञान । पाँच कर बाती । धूप ध्यान खेवो । दिनराती ।
अनहद झालर । शब्द अखंडा । निसदिन सेव करै । मन पण्डा ।
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हाथ काम । मुख राम है । हिरदै सांची प्रीति । जन दरिया । गृह साध की । याही उत्तम रीति ।
ररा तो रब्ब आप है । ममा मोहम्मद जान । दोय हरफ के मायने । सब ही बेद कुरान ।
ररंकार मुख ऊचरै । पालै सील संतोष । दरिया जिनको धन्न है । सदा रहे निर्दोष ।
दाँत रहे हस्ती बिना । तो पौल न टूटे कोय । कै कर धारे कामिनी । कै खैलारां होय ।
साहिब में राम हैं । मैं उनकी दासी । जो बान्या सो बन रहा । आज्ञा अबिनासी ।
सांख योग पपील गति । विघन पड़ै बहु आय । बाबल लागै गिर पड़ै । मंजिल न पहुँचे जाय ।
भक्तिसार बिहंग गति । जहं इच्छा तहं जाय । श्री सतगुर इच्छा करैं । बिघन न ब्यापै ताय ।
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बिरहन का धर बिरह में । ता घट लोहु न माँस । अपने साहिब कारण । सिसके सांसी सांस ।
मच्छी पंछी साध का । दरिया मारग नांहि । इच्छा चालै आपणी । हुकुम धणी के मांहि ।
सुरत उलट आठों पहर । करत ब्रह्म आराध । दरिया तब ही देखिये । लागी सुन्न समाध ।
दरिया त्रिकुटी हद लग । कोई पहुँचे संत सयान । आगे अनहद ब्रह्म है । निराधार निर्बान ।
दरिया त्रिकुटी महल में । भई उदासी मोय । जहाँ सुख है तहं दुख सही । रवि जहं रजनी होय ।
एक एक तो ध्याय कर । एक एक आराध । एक एक से मिल रहा । जाका नाम समाध ।
राम नाम नहीं हिरदै धरा । जैसे पसुवा तेसै नरा ।
जन दरिया जिन राम न ध्याया । पसुआ ही ज्यों जनम गंवाया ।
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दरिया काया कारवी । मौसर है दिन चारि । जब लग सांस शरीर में । तब लग राम संभारि ।
सकल ग्रंथ का अर्थ है । सकल बात की बात । दरिया सुमरन राम का । कर लीजै दिन रात ।
दरिया सुमरे राम को । दूजी आस निवारि ।
कोई पंथ कबीर का । दादू का महाराज । सब संतन का बालमा । दरिया का सरताज ।
अनुभव झूठी थोथरी । निर्गुण सच्चा नाम । परम जोत परचे भई । तो धुआं से क्या काम ।
सतगुरु दाता मुक्ति का दरिया प्रेमदयाल । किरपा कर चरनों लिया मेटया सकल जंजाल ।

दुनिया भरम भूल बौराई ।


नारी जननी जगत की । पाल पोष दे पोस । मूरख राम बिसारि कै । ताहि लगावै दोस ।
नारी आवे प्रीतिकर । सतगुरु परसे आण । जन दरिया उपदेस दै । मांय बहन धी जाण ।
दरिया लच्छन साध का । क्या गृही क्या भेष । निहकपटी निपंख रहे । बाहर भीतर एक ।
बिक्ख छुडावे चाह कर । अमृत देवे हाथ । जन दरिया नित कीजिये । उन संतन को साथ ।
दरिया संगत साध की । सहजे पलटे बंस । कीट छांड मुक्ता चुगे । होय काग से हंस ।
दरिया संगत साध की । कलविष नासै धोय । कपटी की संगत किया । आपहु कपटी होय ।
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दुनिया भरम भूल बौराई ।
आतम राम । सकल घट भीतर । जाकी सुध न पाई । मथुरा कासी । जाय द्वारिका । अड़सठ तीरथ न्हावैं ।
सतगुर बिन । सोजी नहीं । कोई फिर फिर । गोता खावै ।
चेतन मूरत । जड़ को सेवै । बड़ा थूज । मत गैला । देह आचार । किये काहा । होई भीतर । है मन मैला ।
जप तप संजम । काया कसनी । सांख जोग । ब्रत दाना । या ते नहीं ब्रह्म से मैला । गुन अरु करम बंधाना ।
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मुसलमान हिंदू काहा । षट दर्शन रंक राव । जन दरिया निज नाम बिन । सब पर जम का डाव ।
मरना है रहना नहीं । या में फेर न सार । जन दरिया भय मानकर । अपना राम संभार ।
तीन लोक चौदह भुवन । राव रंक सुलतान । दरिया बंचे को नहीं । सब जंवरे को खान ।
जगत जगत कर जोड़ ही । दरिया हित चित लाय । माया संग न चालही । जावे नर छिटकाय ।
सुई डोरा साह का । सुरग सिधाया नांह । जन दरिया माया यहू । रही यहां की यांह ।

कुमारी गर्भ सम्भवम ( कुमारी के गर्भ से जन्मा )




RAKESH LAL पोस्ट श्री राजेश जी का संशय पर ।खोज यात्रा निरन्तर चल रही है । लेकिन कब तक ? कब तक ?ऐसी तिमिरगृस्त स्थिति में भी युगान्तर पूर्व विस्तीर्ण आकाश के पूर्वी क्षितिज पर एक रजत रेखा का दर्शन होता है । विश्व इतिहास साक्षी है । कि लगभग दो हजार वर्ष पूर्व । ऐसे समय जब कि सभी प्रमुख धार्मिक दर्शन अपने शिखर पर पहुंच चुके थे । यूनानी । सांख्य । वेदान्त । योग । यहूदी । जैन । बौद्ध । फारसी तथा अन्य सभी दर्शन और उनका सूर्य ढलने भी लगा था । मानवता आत्मिक क्षितिज पर बुझी जा रही थी । तब परमेश्वर पिता ने स्वयं को प्रभु यीशू ख्रीष्ट में देहधारी करके पूर्णवतार लिया । वह इसलिये प्रकट हुआ । ताकि मानव जाति के कर्मदण्ड तथा मृत्युबन्ध को उठाकर क्रूस की यज्ञस्थली पर अपने बलिदान के द्वारा स्वयं भोग ले । उसने ऋग्वेद के त्राता तथा । पितृतमः पितृगा । सारे पिताओं से भी श्रेष्ठ त्राणदाता परमपिता के सम्बोधन को स्वयं मानव देह मे अवतरण लेकर हमारे लिये नियुक्त पापजन्य मृत्यु को सहते हुए पूरा किया ।मोक्षदाता । प्रभु यीशू ख्राष्टः । निष्कलंक पूर्णवतार ।हमारे भारत देश आर्यावृत का । जनजन और कणकण अपने सृजनहार जीवित परमेश्वर का भूखा प्यासा है । वैदिक प्रार्थनायें तथा उपनिषदों की ऋचाएं । उसी पुरषोत्तम पतित पावन को पुकारती रही है । पृथ्वी पर छाये संकटो को मिटाने हेतु बहुतेरे महापुरुष । भविष्यवक्ता । सन्त । महन्त । या राजा महाराजा जन्मे । लेकिन पाप के अमिट मृत्युदंश से छुटकारा दिलाकर । पूरा पूरा उद्धार देने वाले निष्कलंक पूर्णवतार प्रेमी परमेश्वर की इस धरती के हर कोने में प्रतीक्षा थी ।तब अन्धकार मे डूबी एक रात के आंचल से भोर का सितारा उदय हुआ । स्वयं अनादि और अनन्त परमेश्वर ने । प्रथम और अन्तिम बार । पाप में जकड़ी असहाय मानवता के प्रति प्रेम में विवश होकर पूर्णवतार लिया । जिसकी प्रतीक्षा प्रकृति एवं प्राणीमात्र को थी । वैदिक ग्रन्थों का उपास्य । वाग वै बृह्म । अर्थात वचन ही परमेश्वर है । ( बृहदारण्यक उपनिषद । 1 3 29 4 1 2 ) । शब्दाक्षरं परमब्रह्म । अर्थात शब्द ही अविनाशी परमब्रह्म है । ( बृह्मबिन्दु उपनिषद । 16 ) । समस्त बृह्मांड की रचना करने । तथा संचालित करने वाला । परमप्रधान नायक । ( ऋगवेद 10 125 ) पापग्रस्त मानव मात्र को त्राण देने निष्पाप देह मे धरा पर आ गया ।ईशमूर्ति । ईशपुत्र । यीशु ख्रीष्ट ।प्रमुख हिन्दू पुराणों में से एक भविष्यपुराण ( संभावित रचनाकाल 7वीं शताब्दी ईसवी ) के प्रतिसर्ग पर्व । भरतखंड में इस निश्कलंक देहधारी का स्पष्ट दर्शन वर्णित है । जिसका संक्षिप्तिकरण इस प्रकार है ।
मोक्षद्वार । कहते हैं । कि महाभारत धर्मयुद्ध के बाद । राजसूर्य यज्ञ सम्पन्न करके । पांचों पांडव । महानिर्वाण प्राप्त करने को । अपनी जीवनयात्रा पूरी करते हुए । मोक्ष के लिये । हरिद्वार तीर्थ आये । गंगाजी के तट पर । हर की पैड़ी के । बृह्मकुण्ड में । स्नान के पश्चात । वे पर्वतराज हिमालय की सुरम्य कन्दराओं में चढ़ गये । ताकि मानव जीवन की एकमात्र चिरप्रतीक्षित अभिलाषा पूरी हो । और उन्हे किसी प्रकार मोक्ष मिल जाये ।हरिद्वार तीर्थ के बृह्राकुण्ड पर । मोक्षप्राप्ति का स्नान । पांडवों को अनन्त जीवन के कैवल्य मार्ग तक पहुंचा पाया । अथवा नहीं । इसके भेद तो मुक्तिदाता परमेश्वर ही जानता है । तो भी श्रीमदभागवत का यह कथन चेतावनी सहित कितना सत्य कहता है । मानुषं लोकं मुक्तीद्वारम । अर्थात यही मनुष्य योनि हमारे मोक्ष का द्वार है ।मोक्ष कितना आवश्यक । कैसा दुर्लभ ।मोक्ष की वास्तविक प्राप्ति । मानव जीवन की सबसे बड़ी समस्या । तथा एकमात्र आवश्यकता है । विवेक चूड़ामणि में । इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है । कि सर्वजीवों में मानव जन्म दुर्लभ है । उस पर भी पुरुष का जन्म । ब्राह्मण योनि का जन्म तो दुश्प्राय है । तथा इसमें दुर्लभ उसका । जो वैदिक धर्म में संलग्न हो । इन सबसे भी दुर्लभ वह जन्म है । जिसको बृह्म परमेश्वर तथा पाप तथा तमोगुण के भेद पहचान कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिल गया हो । मोक्ष प्राप्ति की दुर्लभता के विषय मे एक बड़ी रोचक कथा है । कोई एक जन मुक्ति का सहज मार्ग खोजते हुए । आदि शंकराचार्य के पास गया । गुरु ने कहा । जिसे मोक्ष के लिये परमेश्वर मे एकत्व प्राप्त करना है । वह निश्चय ही एक ऐसे मनुष्य के समान धीरजवन्त हो । जो महासमुद्र तट पर बैठकर । भूमि में एक गड्ढ़ा खोदे । फिर कुशा के एक तिनके द्वारा । समुद्र के जल की बूंदों को उठाकर । अपने खोदे हुए गड्ढे मे टपकाता रहे । शनैः शनैः जब वह मनुष्य सागर की सम्पूर्ण जलराशि इस भांति उस गड्ढे में भर लेगा । तभी उसे मोक्ष मिल जायेगा ।मोक्ष की खोजयात्रा और प्राप्ति ।आर्य ऋषियों । सन्तों । तपस्वियों की सारी पीढ़ियां मोक्ष की खोजी बनी रही । वेदों से आरम्भ करके । वे उपनिषदों तथा अरण्यकों से होते हुऐ पुराणों और सगुण । निर्गुण । भक्तिमार्ग तक मोक्षप्राप्ति की निश्चल और सच्ची आत्मिक प्यास को लिये बढ़ते रहे । क्या कहीं वास्तविक मोक्ष की सुलभता दृष्टिगोचर होती है ? पापबन्ध मे जकड़ी मानवता से सनातन परमेश्वर का साक्षात्कार जैसे आंखमिचौली कर रहा है ।
ईश मूर्तिह्न दि प्राप्ता नित्यशुद्धा शिवकारी । ईशामसीह इतिच मम नाम प्रतिष्ठतम ।अर्थात । जिस परमेश्वर का दर्शन । सनातन । पवित्र । कल्याणकारी एवं मोक्षदायी है । जो ह्रदय मे निवास करता है । उसी का नाम ईसामसीह । अर्थात अभिषिक्त मुक्तिदाता प्रतिष्ठित किया गया ।पुराण ने इस उद्धारकर्ता पूर्णवतार का वर्णन करते हुए । उसे पुरुष शुभम ( निश्पाप एवं परम पवित्र पुरुष ) बलवान राजा गौरांग श्वेतवस्त्रम ( प्रभुता से युक्त राजा निर्मल देहवाला श्वेत परिधान धारण किये हुए )ईशपुत्र ( परमेश्वर का पुत्र ) कुमारी गर्भ सम्भवम ( कुमारी के गर्भ से जन्मा ) और सत्यव्रत परायणम ( सत्यमार्ग का प्रतिपालक ) बताया है ।मुक्तिदाता । प्रभु यीशु ख्राष्ट के । देहधारी परमेश्वरत्व की उदघोषणा । केवल भारत के आर्यग्रन्थ ही नही करते । अति प्राचीन यहूदी ग्रन्थ । पुराना नियम । प्रभु ख्राष्ट के । देहधारण से 700 वर्ष पूर्व साक्षी देता है । जिसमे कोई पाप नहीं था । ( यशायाह 53 9 ) । जो कुमारी से जन्मेगा । तथा उसका नाम इम्मानुएल अर्थात परमेश्वर हमारे साथ में रखा जायेगा । ( यषायाह 7 14 ) । इस्लाम भी अपने प्रमुख ग्रन्थ । कुरआन शरीफ के । सूरा ए मरियम खण्ड में । प्रभू यीशू ख्राष्ट को । रुह अल्लाह । ( आत्मरुप परमेश्वर का देहधारण ) तथा उसकी कुमारी माता मरियम को । मनुष्यों के बीच सब नारियों मे परम पवित्र घोषित करते हैं । क्या शाश्वत और अद्वैत परमेश्वर देहधारी हुआ । उसके प्रकट प्रमाण और चिन्ह क्या होंगे । शास्त्र उसे पहचान की कुछ विशेषतायें इस प्रकार बताते हैं ।सनातन शब्द बृह्म । तथा सृष्टीकर्ता । सर्वज्ञ । निष्पापदेही । सच्चिदानन्द । त्रिएक पिता । महान कर्मयोगी । सिद्ध ब्रम्हचारी । अलौकिक सन्यासी । जगत का पापवाही । यज्ञपुरुष । अद्वैत तथा अनुपम प्रीति करने वाला । परमेश्वर के पवित्र वचन । बाइबल के नया नियम में । देहधारी परमेश्वर की । ये सभी तथा अन्य अनेक विशेषतायें । प्रभू यीशू ख्राष्ट के । पतित पावन व्यक्तित्व में । सम्पूर्णता सहित उपस्थित तथा विस्तृत प्रमाणों द्वारा स्वयं सिद्ध है ।मोक्ष । केवल यीशू ख्राष्ट में ।परमेश्वर का पवित्र वचन । प्रभु ख्राष्ट द्वारा प्रदत्त मोक्ष के विषय में इस प्रकार कहता है । पूर्व युग में परमेश्वर ने बाप दादो से थोड़ा थोड़ा करके और भांति भांति से भविष्यवक्ताओं द्वारा बातें करके । इन दिनों के अन्त में हमसे पुत्र ( त्रिएक परमेश्वर का देहधारी स्वरुप प्रभु ख्राष्ट ) के द्वारा बातें की । जिसे उसने ( परमेश्वर ) सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया । और उसी के द्वारा उसने सारी सृष्टि रची है । वह उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व की छाप है । मार्ग और सच्चाई और जीवन मै ही हूं । बिना मेरे द्वारा कोई पिता ( परमेश्वर ) के पास । अर्थात स्वर्ग में नही पहुंच सकता । अब जो ख्राष्ट यीशु मे है । उन पर दण्ड की ( पाप से उत्पन्न मृत्यु की ) आज्ञा नही है । क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है । परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभू ख्राष्ट यीशु में अनन्त जीवन है । इब्रानियो 1 । 1 । 3 । यहुन्ना 14 । 6 । रोमियो । 8 1 । 6 । 23 ।
प्रिय मित्र । क्या आप मोक्ष मार्ग के राही हैं ? क्या आपका प्राण सदा से जीवित परमेश्वर का प्यासा रहा है ? केवल प्रभु ख्राष्ट में आपके पापों से मुक्ति तथा परम शांति है । देहधारी परमेश्वर आपको इसी क्षण बुला रहा है । हे पृथ्वी के दूर दूर के देश के रहने वालो । तुम मेरी ओर फिरो । और उद्धार मोक्ष पाओ । क्योंकि मै ही ईश्वर हूं । और दूसरा कोई और नही है । जो कोई उस प्रभू यीशु ख्राष्ट पर विश्वास करे । वह नाश न होगा । परन्तु अनन्त जीवन पायेगा । यशायाह । 45 । 22 तथा यहुन्ना 3 । 16 । मुक्ति कहीं और नही । केवल प्रभू ख्राष्ट में है । मुक्ति पाने के लिये । आप कमरे में जांय । घुटने टेककर यीशुमसीह से प्रार्थना करें । ह्रदय की गहराइयों से पुकार कर कहें । कि यीशु मेरे पापों को क्षमा कर । आज से । मै तुझे अपना जीवन समर्पित करता हूं । आप आज से मेरे प्रभू और उद्धारकर्ता हैं । आज से मैं आपके बताये रास्ते पर चलूंगा । आप मुझे अपना दर्शन दें । मै आपको देखना चाहता हूं । यीशुमसीह को पाना बहुत सरल है । यीशु आपके पास आयेंगे । आपको गले से लगा लेंगे । तब आपको एक बिलकुल नया अनुभव होगा । आपको ऐसी अलौकिक शांति मिलेगी । जिसका अनुभव बता पाना कठिन है । उसको वर्णन नही कर सकते हैं । और आपकी सारी बीमारियां भाग जायेंगी । सारी शैतानी शक्ति आपसे दूर चली जायेंगी । आप नये जन्मे बच्चे सा अनुभव करेंगे । अभी तक आपने पढ़ा या सुना होगा । या किसी ने अपने ढ़ंग से बताया होगा । जो कि मात्र कपोल कल्पना है । मगर यीशुमसीह को आप जानने के लिये ऊपर बताये गये नियम के द्वारा प्रक्टिकल कर सकते है । और अनन्त जीवन जो कि इसी मनुष्य योनि मे है । प्राप्त कर सकते है । मानुशं लोकं मुक्तीद्वारम । अर्थात यही मनुष्य योनि हमारे मोक्ष का द्वार है । हमारी प्रार्थना है । कि परमेश्वर आपको इस विश्वास में स्थिर और सिद्ध करे । अश्रद्धा परम पापं श्रद्धा पापमोचिनी । महाभारत । शांतिपर्व । 264 15 19 । अर्थात अविश्वासी होना महापाप है । लेकिन विश्वास पापों को मिटा देता है । पंडित धर्मप्रकाश शर्मा । गनाहेड़ा रोड । पो. पुष्कर तीर्थ । राजस्थान । 305 022 । अधिक जानकारी के लिये लिखें । स्पीड द गुड न्यूज क्रूसेड । 3387 क्रिश्चियन कालोनी । करोल बाग । नई दिल्ली । 110005 ।