20 सितंबर 2010

तंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमों संसार । 1


vinay पोस्ट सहज योग साधिका मधु श्रीवास्तव पर ।बहुत अच्छा काम किया । आपने पतन के रास्ते से बचा लिया ।kapil पोस्ट सभी देवताओं में श्रेष्ठ कौन है ? पर ।MAIN BHAGWAAN KO NI MAANTA । MERA BLOG PAD KAR SHAYAD AAP BHI KUCH INFLUENSE HO JAAO । isitindya.blogspot.com ।
गजेन्द्र सिंह पोस्ट अगर आपको ब्लाग लिखने का शौक है...? पर ।badhia lekh likha hai aapne .....
vinay पोस्ट जानों । जानने से लाभ होता है । मानो मत । पर ।बहुत अच्छा वेग्यानिक तरीका था ।
ओमप्रकाश ग्रोवर पोस्ट क्या कुलदीप जी के प्रश्न का जबाब है । आपके पास ? 1 पर ।
आदरणीय श्री राजीव जी । आपका ब्‍लाग पढ़ा । आपने बड़ी गहन बातें लिखी । आपके ब्लाग में गुरूदेव कबीर की बाणी भी है । तंत्र का ज्ञान भी है । लेकिन कबीर साहब ने कहा है कि तंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमों संसार । संभव हो तो स्पष्ट करने का कष्‍ट करें । ओम ग्रोवर ।
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सम्मानीय ओमप्रकाश जी । यदि बहुत कम शब्दों में आपके प्रश्न का उत्तर दूं । तो आपने सतगुरु कबीर साहेब की जो बात लिखी है । तंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमों संसार । बिल्कुल सही है । लेकिन इसमें जो अर्थ है । यानी आपने इसका अर्थ ये लगाया है कि तंत्र मंत्र का कोई अस्तित्व ही नहीं है । यानी ये निराधार है । महज कल्पना है । तो ये बात सही नहीं है । आईये तंत्र मंत्र को देखते हैं । तंत्र यानी तन और त्र । यानी शरीर और तीन गुण । सत । रज । तम । इन्हीं तीन गुणों को प्रतीक रूप में बृह्मा विष्णु महेश कहा जाता है । यानी शरीर या किसी आकृति को आधार बनाकर किसी शक्ति का ( अस्त्र शस्त्र आदि रूप में ) निर्माण किया जाय । उदाहरण । जैसे कोई तांत्रिक कपडे या मिट्टी की गुडिया या पुरुष आकृति बनाकर उसे प्रतीक रूप में माध्यम मानते हुये तंत्र प्रयोग करे । इसको तंत्र कहते हैं । ये मैंने सिर्फ़ एक उदाहरण दिया है । किसी पेड की जड आदि में बनने वाली आकृति । किसी गुप्त स्थान पर बनाया गया चित्र । किसी को अपहरण या सम्मोहन द्वारा विवश करके सफ़ल तांत्रिक द्वारा तंत्र क्रिया की जा सकती है । इसके अलावा भी हजारों अन्य तरीके हो सकते है । जो प्रयोगकर्ता की रुचि और उसके ग्यान पर निर्भर है । अब मन्त्र की बात । इसमें भी वही बात है । मन और त्र । शेष वही तंत्र वाली बात । अंतर इतना है कि इसमें मांत्रिक की विकसित की गयी मानसिक शक्ति मंत्र या उसके संकल्प द्वारा मंत्र भाव से कार्य करती है दिव्य साधना DIVY SADHNA । यंत्र याने य ( यह । उद्देश्य ) और त्र । शेष वही तंत्र मंत्र वाला matter । अब आईये । इसको बैग्यानिक दृष्टिकोण से देखें । चाहें यंत्र तंत्र मंत्र कुछ भी हो । इसमें बिग्यान की तरह । पहला लक्ष्य । कार्य उद्देश्य । फ़िर इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु साधन और सुविधा । प्रयोगकर्ता का ग्यान और उसकी खुद की स्थिति । ये सब मिलकर कार्य करते हैं । इसको कर्मयोग और द्वैत ग्यान कहते हैं । यानी एक इंसान परमात्म शक्ति को यदि व्यवहारिक रूप से ( संत मत sant mat भक्तियोग जो सबसे श्रेष्ठ है ) किसी भी कारणवश ( उसकी रुचि नहीं है । ऐसे ग्यान के सम्पर्क में नहीं आया । दुर्भाग्य से सच्चे संत या सतगुरु से उसका भेंटा नहीं हुआ । या उसके संस्कार उसको प्रेरित कर रहें हैं । आदि लाखों कारण हो सकते हैं । क्योंकि सच्चे संत या सतगुरु कोटि जन्मों के पुण्य से मिलते हैं । और हरेक को नहीं मिलते । भले ही वह आपके बगल के मकान में रहते हों । परन्तु बिना हरि कृपा के आपको ग्यान नही मिलेगा । ) उपयोग में नहीं ला पा रहा । तब उसका दूसरा विकल्प यंत्र तंत्र मंत्र हैं । जो तुरन्त कार्य करते हैं । इसीलिये आदमी अपने अच्छे या बुरे कार्यों को सिद्ध करने के लिये इनकी तरफ़ आकृष्ट होता है । लेकिन ? इसमें एक बडा लेकिन भी लगा हुआ है । इस तरह की समस्त क्रियायें । समस्त साधनायें । चाहे वो अच्छे कार्य के लिये उपयोग हो । अथवा बुरे कार्य के लिये । अन्त में दुर्गति और लाखों वर्ष के लिये नरक में ले जाने वाली ही होती है । इसका कारण ? बताने के लिये बहुत बातें बतानी पडेगी । क्योंकि वह अभी बात का विषय नहीं है । इसलिये आपको कबीर के बारे में बताते हुये आगे बात करता हूं । क्रमशः । कृपया आगे पढने के लिये blog की साइड में । तंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमों संसार । 2 पर क्लिक करें ।

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