13 मार्च 2010

दीक्षा की तैयारी ?


एक बार एक सच्चे आत्मग्यानी संत थे । बहुत लोग उनकी सेवा करते थे । एक दूधवाला भी उनकी सेवा में रोजाना दूध पहुँचाता था । उसने देखा कि बहुत से लोग संत से ज्ञान ( दीक्षामंत्र ) लेते हैं । इससे प्रभावित होकर उसने सोचा कि मुझे भी संत से हँसदीक्षा लेनी चाहिये ।
उसने संत से कई बार कहा - महाराज जी ! मुझे भी दीक्षा देने की कृपा करें । मैं भी ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त करना चाहता हूँ ।
संत ने उत्तर दिया - अभी तुम्हें इंतजार करना होगा । अभी तुम्हारा समय नहीं आया है । ऐसा कहते कहते बहुत समय बीत गया । तब एक दिन दूधबाले ने हठ पकड़ ली कि महाराज जी आखिर मुझमें क्या कमी है ? जो आप मुझे दीक्षा नहीं देते हैं ।
आपको कृपा करके मुझे आज हँसदीक्षा देनी ही होगी । आज मैं आपकी कोई बात नहीं मानूँगा ।
संत ने कहा - ठीक है । मैं कल तुम्हें उत्तर दूँगा ।
संत रोजाना सुबह जब शौच आदि के लिए जाते थे । तो लौटते समय दूधवाले का घर पड़ता था । संत ने उस दिन अपने लोटे में थोडा सा गोबर डाल लिया । और उन्होंने दूधबाले के पास पहुंचकर कहा कि मेरे लोटे में थोङा दूध डाल दे ।

दूधवाला जब संत को दूध देने लगा । तब उसने देखा कि लोटे में गोबर पड़ा हुआ है ।
उसने कहा - महाराज जी ! आपके लोटे में तो गोबर पड़ा हुआ है । इसमें दूध कैसे डालूँ ?
संत ने कहा - कोई बात नहीं । तुम इसी में डाल दो ।
दूधबाला बोला - महाराज जी ! आप कैसी बात करते हो । इस तरह तो सारा दूध ख़राब हो जायेगा ।
संत ने फिर कहा - अरे कोई बात नहीं । तुम इसी में डाल दो ।
इस तरह दूधवाला बारबार कहने लगा कि महाराज गोबर में दूध डालना ठीक नहीं होगा । और संत जिद करते रहे कि इसी लोटे में दूध डालो ।
तब दूधबाला झुंझलाकर बोला - गोबर में दूध डालने से पूरा दूध ख़राब हो जायेगा ।
इस पर संत ने हँसकर कहा - इसी तरह से तेरे मन में संसार की गन्दगी रूपी गोबर भरा हुआ है । इसमें मैं अपना अनमोल प्रभु का आत्मज्ञान कैसे डाल दूँ ।
जब तक तेरे मन की सफाई नहीं हो जाती । तब तक तुझे ज्ञान कैसे दिया जा सकता है ?
अब दूधवाले की समझ में सारी बात आ गई । और वो संत के चरणों में गिर पड़ा । संत ने उसको आशीर्वाद दिया । और कहा - बेटा ! अब तेरी बुद्धि साफ़ हो गई । और अब तू ज्ञान लेने लायक हो गया ।

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